म्यूचुअल फंड हाउसेज 2024 की शुरुआत से ही इनवेस्टर्स को मल्टी-एसेट फंड में निवेश करने की सलाह दे रहे हैं। कई फंड हाउसेज ने पिछले महीनों में मल्टी-एसेट फंड लॉन्च किए हैं। ये फंड इनवेस्टमेंट के डायवर्सिफिकेशन में मदद करते हैं। इसका मतलब है कि ये इक्विटी, डेट और कमोडिटीज में निवेश करते हैं। इससे मार्केट के उतारचढ़ाव का ज्यादा असर इनवेस्टमेंट पर नहीं पड़ता है।
मल्टी-एसेट फंड के फायदे
टाटा एसेट मैनेजमेंट में प्रोडक्ट्स हेड शैली गंग ने अपने इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो में मल्टी-एसेट फंड (Multi Asset Fund) को शामिल करने के फायदों के बारे में बताया। उनका मानना है कि इस फंड का मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स करते हैं, जिनके पास कई एसेट क्लास में निवेश का अनुभव होता है। इसलिए इस फंड के ज्यादा रिटर्न देने की संभावना होती है। उन्होंने कहा, “टैक्टिकल इनवेस्टमेंट डिसिजेंस और पोर्टफोलियो की बेहतर बैलेंसिंग की वजह से मल्टी-एसेट फंड टैक्स के मामले में भी फायदेमंद हैं।”
मल्टी-एसेट फंड का मतलब क्या है?
ध्यान में रखने वाली बात है कि फंड मैनेजर्स लगातार मार्केट की स्थितियों और इकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर नजर बनाए रखते हैं। इस आधार पर वे अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश का एलोकेशन करते हैं। स्थिति के मुताबिक, इक्विटी, डेट और कमोडिटीज में निवेश का अनुपात तय होता है। उन्हें इस बात की जानकारी होती है कि कब किस एसेट क्लास की ग्रोथ ज्यादा रह सकती है।
उतारचढ़ाव वाले मार्केट में बेहतर प्रदर्शन
यह रणनीतिक फैसला फंड मैनेजर को उतारचढ़ाव वाले मार्केट में भी अच्छा रिटर्न हासिल करने में मदद करता है। साथ ही कैपिटल की वैल्यू में भी किसी तरह की कमी नहीं आती है। गंग ने कहा कि मल्टी-एसेट फंड खासकर उन इनवेस्टर्स के लिए बेहतर हैं, जो कई तरह के एसेट क्लास में निवेश करना चाहते हैं।
मल्टी-एसेट फंड में कितना करें निवेश?
गंग ने कहा कि अगर कोई निवेशक अपना 40 फीसदी पैसा हाइब्रिड फंड में डालता है तो उसे 10-20 फीसदी पैसा मल्टी-एसेट फंड में डालना चाहिए। इससे उसका इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो बैलेंस्ड और डायवर्सिफायड बना रहता है। हालांकि, निवेशक को यह समझने की जरूरत है कि मल्टी-एसेट फंड में निवेश करने से पहले उसे रिल्क लेने की अपनी क्षमता के बारे में जान लेना जरूरी है।
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निवेश से पहले रिस्क को समझना जरूरी है
गंग ने कहा, “डायवर्सिफिकेशन से रिस्क कम हो जाता है। लेकिन इससे किसी खास एसेट क्लास की वजह से आपका रिटर्न घट भी सकता है। इकोनॉमिक ट्रेंड्स की मॉनिटरिंग, इनफ्लेशन की तस्वीर और ग्लोबल मार्केट की स्थितियों पर आपको करीबी नजर बनाए रखनी पड़ती है। इसकी वजह यह है कि किसी एसेट क्लास के पिछले रिटर्न के आधार पर भविष्य में उसके रिटर्न का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। ”