भारतीय इक्विटी बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) और घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) के बीच ओनरशिप का अंतर दिसंबर तिमाही में अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया है क्योंकि एफआईआई ने अपनी बिकवाली जारी रखी है, जबकि घरेलू निवेशकों के पास भरपूर मात्रा में नकदी है जिसका उन्होंने इक्विटी की खरीदारी में इस्तेमाल किया है।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में लिस्टेड कंपनियों में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 12 साल के निचले स्तर 17.23 फीसदी पर आ गई है। इस बीच, घरेलू निवेशकों की बढ़ती भागीदारी ने कुल घरेलू हिस्सेदारी को 16.9 फीसदी तक पहुंचा दिया है। इसमें घरेलू म्यूचुअल फंड 9.93 फीसदी के ऑलटाइम हाई लेवल पर पहुंच गए हैं।
प्राइमइन्फोबेस के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर तिमाही के अंत में भारतीय इक्विटी में FIIs और DIIs ओनरशिप के बीच का अंतर मात्र 0.3 फीसदी तक रह गया था जो मार्च 2015 में दर्ज 10.3 फीसदी के अंतर से काफी कम है। बता दें कि मार्च 2015 में विदेशी हिस्सेदारी घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी से दोगुनी से भी ज्यादा थी।
इसके साथ ही, अब DIIs के पास भारतीय इक्विटी में FIIs के बराबर ही हिस्सेदारी है। एफआईआई की एसेट अंडर कस्टडी (AUC) 74.91 लाख करोड़ रुपये है जो सितंबर तिमाही में 81.88 लाख करोड़ रुपये थी। इस बीच,DIIs का एसेट अंडर कस्टडी 73.47 लाख करोड़ रुपये रहा जो पिछली तिमाही में 76.78 लाख करोड़ रुपये था।
तीसरी तिमाही के दौरान FIIs ने सेकेंडरी मार्केट में 1.56 लाख करोड़ रुपये के भारतीय शेयर बेचे जबकि प्राइमरी मार्केट में उन्होंने 55,582 करोड़ रुपये की खरीदारी की। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, इसके उलट म्यूचुअल फंड और दूसरी वित्तीय संस्थाओं समेत घरेलू निवेशकों ने 1.86 लाख करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।
दिसंबर तिमाही के दौरान दोनों बेंचमार्क इंडेक्सों सेंसेक्स और निफ्टी में 8.7 फीसदी और 9.7 फीसदी की गिरावट आई। इस दौरान प्राइवेट प्रमोटरों की हिस्सेदारी घटकर 41.08 फीसदी पर आ गई। यह बाजार में तेजी के बीच हिस्सेदारी बिक्री के कारण हुई। इस दौरान रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़कर 7.69 फीसदी के रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गई,जबकि हाई नेट वर्थ वाले निवेशकों (HNI) की भागीदारी तीन साल के उच्च स्तर 2.09 फीसदी पर पहुंच गई।