नई दिल्ली: भारतीय शेयर बाजार में उथल-पुथल के बीच निवेशकों की निगाहें अब दो बड़ी घटनाओं पर टिकी हैं। इनमें केंद्रीय बजट और आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक शामिल है। शेयर बाजार में अस्थिरता के कई कारण हैं। जैसे हाई वैल्यूएशन, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की ओर से भारी बिकवाली, कमजोर कमाई और चुनौतीपूर्ण ग्लोबल इकनॉमिक आउटलुक। बीएसई 500 में 400 से ज्यादा शेयर मंदी की चपेट में हैं। लगभग 200 शेयरों का मूल्य एक तिहाई कम हो गया है। वहीं, 95 शेयर 40% तक गिर गए हैं। सन फार्मा एडवांस्ड रिसर्च कंपनी (SPARC) के शेयर में सबसे ज्यादा 65% की गिरावट आई है। इन तीन घटनाओं से बाजार की दिशा तय हो सकती है।पिछले साल 27 सितंबर को अपने 52 हफ्तों के सबसे ऊंचे स्तर से सेंसेक्स लगभग 12% नीचे है। हालांकि, BSE 500 इंडेक्स में शामिल हर चौथा शेयर अपने 52 हफ्तों के सबसे ऊंचे स्तर से कम से कम 20% नीचे है। जब कोई इंडेक्स या शेयर अपने उच्चतम स्तर से 20% नीचे आता है तो उसे आमतौर पर मंदी के दौर में माना जाता है। लगभग 200 शेयरों ने अपने मूल्य का एक तिहाई हिस्सा खो दिया है। 95 शेयरों में तो 40% या उससे भी ज्यादा की गिरावट देखी गई है। SPARC के शेयरों में सबसे ज्यादा 65% की गिरावट दर्ज की गई है। कम से कम 9 शेयरों में 50% की गिरावट आई है।
मंदी के संकेतों के बीच फेडरल रिजर्व की बैठक के बाद निवेशक दो और प्रमुख घटनाओं पर नजर गड़ाए हुए हैं। इनका बाजार पर गहरा असर पड़ सकता है। ये घटनाएं हैं- केंद्रीय बजट और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की मीटिंग।
आ गया है फेडरल रिजर्व का फैसला
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व का पहला ब्याज दर संबंधी फैसला आ गया है। यह फेडरल ओपन मार्केट कमिटी (FOMC) की ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के बाद पहली बैठक थी। FOMC की 2025 में आठ बार बैठक होनी हैं। साथ ही यह किसी भी समय इमर्जेंसी बैठकें भी आयोजित कर सकता है। उम्मीद के अनुसार, जनवरी की बैठक में ब्याज दरों को स्थिर रखा गया है। हालांकि, पिछले हफ्ते दावोस स्विट्जरलैंड में विश्व आर्थिक मंच में व्यापारिक नेताओं से बात करते हुए ट्रंप ने कहा था कि वह कम ब्याज दरें चाहते हैं। फेड ने पिछले साल बेंचमार्क दर में पूरे एक फीसदी की कटौती की थी। FOMC की बैठक में में ब्याज दरों पर फैसला लिया जाता है। इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पड़ता है। उसका फैसला वैश्विक मुद्रा सप्लाई के साथ बाजार की धारणा को भी प्रभावित करता है।
यूनियन बजट का इंतजार
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को केंद्रीय बजट पेश करेंगी। यह ऐसे समय में हो रहा है जब जीडीपी विकास दर में गिरावट आई है। शहरी खपत कम है। कॉर्पोरेट कमाई सुस्त है। महंगाई चिंता का विषय बनी हुई है। उनसे कई उम्मीदें हैं। जैसे विकास और खपत को बढ़ावा देना, राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखना, करदाताओं को राहत देना और पूंजीगत व्यय बढ़ाना।
एक्सपर्ट्स के अनुसार, बाजार के लिए केंद्रीय बजट की घोषणाएं अपना महत्व खो रही हैं। इस साल, कहानी ज्यादा नहीं बदलेगी या बाजार की दिशा में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा। हालांकि, निवेशक बजट पर कड़ी नजर रखेंगे। कारण है कि इसका रक्षा, रेलवे, बैंकिंग, IT और ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ नई नियामक घोषणाओं पर असर पड़ेगा। एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि जब भी निफ्टी बजट से एक हफ्ते पहले एक फीसदी से ज्यादा गिरता है तो यह बजट के बाद हमेशा सकारात्मक रिटर्न के साथ तेजी से वापस उछलता है। इसलिए, अब गेंद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पाले में है।
आरबीआई की बैठक
कुछ विश्लेषक भारत में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों को पीछे धकेल रहे हैं। रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर गिरने से महंगाई की चिंताएं बढ़ रही हैं। भले ही एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में विकास धीमा है। उन्होंने रायटर को बताया कि कमजोर मुद्रा महंगे आयात के माध्यम से बढ़ी हुई महंगाई को बढ़ा सकती है। नवंबर में रायटर की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में ज्यादातर विश्लेषकों ने उम्मीद जताई थी कि भारतीय दरों में जल्द से जल्द फरवरी में कटौती की जाएगी। लेकिन, मुद्रा में तेजी से आई गिरावट ने कई विश्लेषकों को अपने अनुमान बदलने के लिए मजबूर किया है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 5-7 फरवरी को होगी। RBI के अनुमानों के अनुसार, रुपये में 5% की गिरावट कई महीनों में महंगाई को 35 आधार अंक तक बढ़ा सकती है। मॉर्गन स्टेनली का मानना है कि केंद्रीय बैंक 7 फरवरी की बैठक से उथले दर में नरमी का चक्र शुरू करेगा। लेकिन, तटस्थ रुख बनाए रखेगा।