Investor awareness : जब माधव (बदला हुआ नाम) अपने खाते के 50 लाख रुपये में से 6 लाख रुपये निकालने में असमर्थ रहे तो उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ धोखाधड़ी हुई है। तब तक माधव KKR MF नामक ऐप के जरिए 30 लाख रुपये का निवेश कर चुके थे। उनको विश्वास था कि इस ऐप का प्रबंधन एक बड़े ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज ग्रुप द्वारा किया जाता है।
माधव कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, बल्कि डॉक्टरों, स्टार्टअप हेड्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट और सरकारी अधिकारियों की तरह एक विवेकशील, निपुण पेशेवर है, जो स्टॉक-मार्केट में बड़ा मुनाफा कमाना चाह रहे थे, लेकिन ऐप्स के जरिए धोखाधड़ी का शिकार हो गए। माधव ने मनीकंट्रोल को बताया कि वह अब एक व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा है जिसमें इस धोखाधड़ी के लगभग 300 पीड़ित शामिल हैं। इनमें से कुछ ने कुछ करोड़ रुपये गंवा दिए हैं।
क्या है ये घोटाला ?
इस नए तरह के घोटाले में लोगों को विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के संस्थागत खातों तक पहुंच का वादा करके लाखों और करोड़ों रुपये का चूना लगाया जा रहा है। घोटालेबाज इस खातों के जरिए रियायती कीमतों पर शेयर खरीदने और आईपीओ में आवंटन प्राप्त करने का लालच देते हैं। उन्हें सोशल-मीडिया चैनलों के जरिए इस तरह का लालच दिया जाता है और उनका पैसा प्रोवेक्स और बेनलिट जैसे अलग-आलग नामों वाले ऐप्स के जरिए हड़प लिया जाता है।
बाजार नियामक सेबी ने भी 26 फरवरी को एक एडवाइजरी जारी कर निवेशकों को ऐसे घोटालों से सावधान रहने के लिए आगाह किया था।
यह समझने के लिए कि लोगों से लाखों-करोड़ों रुपये कैसे हड़प लिए जाते हैं, मनीकंट्रोल ऐसे ही एक व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल हो गया। इस ग्रुप में ऐसे लोग थे जिनके साथ ऐसी धोखाधड़ी हुई है। ग्रुप के लोगों के साथ लंबी बातचीत से यह पता चला यह धोखा हम में से सबसे बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ भी हो सकता है।
यह इस बड़े घोटाले की कार्यप्रणाली पर एक नजदीकी नजर है। डालने पर पता चलता है कि इसका एक सामान्य टेम्पलेट है। इसमें हमेशा एक “प्रोफेसर” होता है जो इस पूरे घोटाले का मास्टर माइंड होता। वह अक्सर ऐसा व्यक्ति होता हो कठिन परिस्थियों से निकल कर अमेरिका के वित्तीय सेवा उद्योग में बड़ा मुकाम हासिल करने वाला होता है। फिर उसकी कहानी भारत के लिए योगदान करने की इच्छा पर खत्म होती है जिसके लिए वह निवेश की सलाह दोने के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाता है।
मनीकंट्रोल ने घोटाले के तह में जाने के लिए जो ग्रुप ज्वाइन किया उसमें भी एक प्रोफेसर संजय शर्मा थे जिनका दावा था कि उनका जन्म 1979 में दिल्ली में हुआ था, उन्होंने 2001 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर के लिए अमेरिका चले गए, मेरिल लिंच में शामिल हुए, 20 वर्षों तक वॉल स्ट्रीट में काम किया। अंततः अपने जैसे लोगों की मदद करने के लिए भारत वापस आ गए।
ऐसे तथाकथित प्रोफेसरों के ग्रुप में ‘टीचर के असिस्टेंट’ या TA भी होते हैं, जो ग्रुप के सदस्यों और प्रोफेसर के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं, ये ग्रुप के सदस्यों के प्रश्नों को प्रोफेसर के सामने रखते हैं और इससे भी बड़ी बात यह है कि वे ग्रुप के ऐसे सदस्यों को खोजते है जिनको निवेश के लिए ललचाया जा सकता है।
इन धोखाधड़ी की शिकार हुए विनीता (बदला हुआ नाम) ने मनीकंट्रोल को बताया उन्हें वही टीए दूसरे ग्रुप में भी मिला जिसमें उन्हें निवेश के लिए आमंत्रित किया गया था। बता दें कि विनीता कॉमर्श ग्रेजुएट और टीचर हैं। इन घोटालेबाजों से अपनी 2 लाख रुपये की अधिकांश पूंजी वसूलने में कामयाब रही थीं। पैसे ट्रांसफर करने से पहले विनीता ने गूगल पर अपने ग्रुप में प्रोफेसर का नाम खोजा था। इससे ही उनको घोटालेबाजों को पहचाने में सहायता मिली थी।
घोटाले बाजों को इस समूह में ऐसे लोग भी सामिल होते जो प्रोफेसर के पक्ष में महौल बनाते है। ये लोग खुद को इच्छुक निवेशक बताते हैं और शेयर बाजार के बारे में प्रोफेसर के ज्ञान, कठिन बातों को समझाने के उसको आसान तरीके, उसकी उदारता और उसकी प्रतिभा की सराहना करते रहते हैं। ये इस बात को बार-बार दोहराते रहते हैं कि प्रोफेसर के चलते ही उनको कई गुना मुनाफा कमाने में मदद मिलती है।
ग्रुप ज्वाइन करने के पहले महीने में माधव इस ग्रुप में बहुत कम दिलचस्पी रखने वाले पर्यवेक्षक माात्र थे। उन्हें इस पर संदेह भी लेकिन ग्रुप में प्रोफेसर के प्रशंसकों की भारी संख्या देखकर अंतत: वे भी निवेश के लिए तैयार हो गए।
लेकिन यह इस घोटाले के काम आने वाला पहला लीवर है। दूसरे चरण में कुछ मुनाफे वाले स्टॉक बताए जाते हैं। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी बसंत (बदला हुआ नाम) को एक इंस्टाग्राम पोस्ट पर क्लिक करने के बाद ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप में इनवाइट किया गया। वह जिज्ञासावश मल्टीबैगर्स की तलाश में इस ग्रुप में शामिल हो गए।
ये ग्रुप पूरी तरह से बेकार भी नहीं होते। ये लोगों को बांधे रखने के लिए वे सुबह-शाम स्टॉक आइडिया देते हैं। बसंत ने ग्रुप द्वारा सुझाए गए प्रत्येक स्टॉक पर 1-3 फीसदी कमाया। उनके पास ग्रुप द्वारा सुझाया एक स्टॉक अभी भी बना हुआ है। यहां तक कि विनीता के पिता, जिन्होंने उसे और उसकी बहन को समूह से परिचित कराया था, ने भी महसूस किया कि ग्रुप के सुझाए स्टॉकों में वास्तव में तेजी आ रही थी।
जब सुझाए गए स्टॉक उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं देते हैं, तो प्रोफेसर शाम को एक सत्र आयोजित करते हैं ताकि चार्ट और बाजार की गहरी समझ के साथ विस्तार से समझाया जा सके कि स्टॉक्स में गड़बड़ कहां हुए। बसंत ने कहा, ”यह मेरे लिए सीखने का अनुभव था।” इस तरह एक बार विश्वास जम जाने पर शुरू होता है घोटालेबाजों का असली खेल
एक दिन बसंत के ग्रुप टीए ने उन्हें इस्टीट्यूशनल एकाउंट के लिए साइन अप करने के लिए कहा। उनको इस पर कुछ शक था। लेकिन उन्होंने जांच करने का फैसला किया और दिए गए लिंक पर क्लिक किया और पाया कि इससे एक ऐप शुला जिसने उनसे उनका पैन नंबर, आधार नंबर, फोन नंबर और नाम मांगा। तब उनको लगा कि नहीं अब बहुत हो गया। उन्होंने इस व्हाट्सएप ग्रुप पर अखबारों में प्रकाशित ऐसे घोटालों के बारे में चेतावनी देने वाले लेख पोस्ट कर दिए। इस पर उनकी पोस्ट कुछ ही सेकेंड में डिलीट कर दी गई और उन्हें तुरंत ग्रुप से बाहर कर दिया गया।
ये घोटालेबाज संभावित निवेशकों को फंसाने के लिए नकद उपहार, हवाई टिकट, होटल में ठहरना जैसे चारे का भी इस्तेमाल करते हैं। माधव ने अधिक रुचि के साथ समूह के पोस्ट का अनुसरण करना शुरू किया। उन्होंने प्रोफेसर के लाइव सत्र में भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होंने देखा कि इन सत्रों के दौरान लोग नकद पुरस्कार जीत रहे थे। इसमें एक स्पिनिंग व्हील को घुमाना शामिल था और अगर पहिया किसी ऐसे नंबर पर रुकता था जिसका दर्शक ने अनुमान लगाया था, तो वह 100 रुपये से 2,000 रुपये के बीच कुछ भी जीत सकता था। माधव ने इस तरह कुल 3,000 रुपये जीते। इससे उनका संदेह कुछ हद तक कम हो गया। अगर ये लोग घोटालेबाज होते तो पैसा क्यों देते? इस बीच, उन्हें ‘आवंटन’ के लिए आवेदन करने के लिए कॉल आ रहे थे, जिससे उन्हें इस्टीट्यूशनल खातों से बड़ा मुनाफा हासिल करने में मदद मिलेगी।
बाद में उन्होंने छोटी रकम निवेश की। लेकिन ग्रुप के बारे में उनका संदेह फिर भी बना रहा। ग्रुप में रहते हुए उन्होंने देखा कि ग्रुप के सदस्यों को मुंबई के सहारा होटल में एक सम्मेलन के लिए बुलाया जा रहा था और हवाई टिकट और रहने की पेशकश की जा रही थी। विनीता को भी तब संदेह होने लगा जब ग्रुप ने घोषणा की कि वे हाई टिकट निवेशकों के लिए ताज महल मुंबई में एक सम्मेलन कर रहे हैं। विनीता ने ऐसी किसी भी बुकिंग के बारे में जांच करने के लिए होटल में फोन किया और पाया कि वहां कोई बुकिंग नहीं थी, फिर भी वह अनिर्णय की स्थिति में थीं।
आख़िरकार विनीता को अपनी पूंजी का कुछ हिस्सा निकालने की अनुमति दी गई थी और जब ऐप क्रैश हो गया तो ग्रुप ने इसे फिर से शुरू कर दिया था। इससे विनीता का विश्वास कुछ बहाल हुआ क्योंकि तब तक वे विनीता के पैसे लेकर नहीं भागे थे। ग्रुप पर बताया गया कि यह एक साइबर हमला था ।
दोस्त बन के डाला गया चारा
जब टीए के बार-बार कहने के बावजूद माधव ‘आवंटन’ के लिए आवेदन नहीं कर रहे थे, तो टीए ने सुझाव दिया कि वह बिना कोई पैसा दिए आवेदन करें। माधव से कहा गया कि उन्होंने एक लॉटरी जीती है जिससे वे बिना कोई पैसा दिए ‘आवंटन’ के लिए आवेदन कर सकते हैं। माधव ने इसके लिए मना कर दिया। लेकिन तुरंत ही उन्हें समूह के दूसरे लोगों के फोन आने लगे। वे माधव से पूंछ रहे थे कि क्या उन्हें ‘आवंटन’ मिला है। उन्होंने अफसोस जताया कि उन्हें ‘आवंटन’ क्यों नहीं मिला। इस तरह फोन करने वाले चार-पांच लोग में एक ऐसा भी था जो दोस्त जैसा करीबी बन गया। खुद को ध्रुव कहने वाले इस व्यक्ति ने कहा कि बैंकिंग सेक्टर से उसका एक दूसरा दोस्त इस तरह के अवसर के तलाश में रहता है। ध्रुव ने यह भी कहा कि उसे विश्वास नहीं हो रहा है कि माधव इस मौके का फायदा नहीं उठा रहा है।
आख़िरकार माधव ने 10,000 रुपये लगाने का फैसला किया। यह ज़्यादा बड़ा एमाउंट नहीं था लेकिन उसने तेजी से पैसा कमाना शुरू कर दिया। कम से कम केकेआर एमएफ ऐप तो यही दिखा रहा था। उनके स्टॉक हर दिन 5 फीसदी रिटर्न दे रहे थे। माधव ने दूसरी साइटों पर भी स्टॉक के प्रदर्शन की जांच की।
छोटी निकासी की अनुमति, बड़ी निकासी पर दिखाया ठेंगा
माधव ने 3 लाख रुपये का निवेश करने के बाद धोखाधड़ी के लिए एक बार फिर ऐप का परीक्षण करने का फैसला किया। उन्होंने 50,000 रुपये निकालने की कोशिश की और उन्हें इसकी इजाजत दे दी गई। इसके बाद तो माधव का हौसला बढ़ गया। उन्होंने बताया कि उसके बाद, 20-25 दिनों में उन्होंने ब्लॉक डील्स से मुनाफा कमाने के लिए 30 लाख रुपये का निवेश किया। इन डील्स में कथित तौर पर संस्थागत निवेशक भाग ले रहे थे। उनके यह कहा गया था ये ब्लॉक डील बाजार से 15-20 फीसजी कम भाव पर किए जाएंगे। ये बड़े ऑर्डर थे और रिटेल निवेशक इनमें ऐप के माध्यम से साइन अप करके भाग ले सकते थे।
विनीता को भी छोटी-छोटी किश्तों में मुनाफा निकालने की अनुमति दी जा रही थी। लेकिन उन्होंने देखा कि ये ट्रांसफर तमाम अजीब तरह के खातों जैसे चांद ज्वैलर्स, परी फैशन आदि से किए जा रहे थे। यह देखकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि सब कुछ ठीक नहीं है और उन्हें अपना पैसा निकालना शुरू करना होगा।
डराने और धमकाने के दौर से हटा आखिरी पर्दा
जब विनीता ने और पैसे लगाने में अनिच्छा दिखाई तो टीए ने उसे फोन किया और धमकी दी कि उसे ऐप से ब्लॉक कर दिया जाएगा। टीए ने कहा कि विनीता ग्रुप के लिए कोई पैसा नहीं कमा रही थी। लेकिन ऐप में अभी भी विनीता की पूंजी के 30,000 रुपये फंसे हुए थे। वहीं, मुनाफे के साथ ऐप पर शेष राशि 8 लाख रुपये थी। बता दें कि ग्रुप में एक प्रॉफिट शेयरिंग क्लॉज दिया गाय। इसके तहत निवेशकों से आम तौर पर उनके मुनाफे के 20 फीसदी की मांग की जाती है। ऐसे में उन्होंने विनीता से 8 लाख रुपये निकालने के लिए 1.45 लाख रुपये ट्रांसफर करने को कहा। विनीता ने सुझाव दिया कि वे 1.45 लाख रुपये में बेचे जा सकने वाले शेयरों को उसके डीमैट में स्थानांतरित कर दें, वह उसे बेच देगी और उन्हें भुगतान कर देगी। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया और जोर देकर कहा कि वह पहले उन्हें भुगतान करें। तब विनीता अंततः ग्रुप और ऐप से बाहर हो गई। लेकिन 6.5 लाख रुपये छोड़ने का फैसला विनीता को लिए कठिन साबित हुआ होगा।
माधव भी अपने 50 लाख रुपये का मुनाफ़ा निकालना चाहता थे। लेकिन उन्होंने उस पैसे को वापस लेने के लिए प्रॉफिट शेयरिंग के हिस्से के रूप में और पैसे जमा करने के लिए कहा गया। माधव भी विनती की कि उसना सारा पैसा इस निवेश में फंसा हुआ है और वह मुनाफा हासिल होते ही भुगतान कर देंगे। लेकिन उनसे कहा गया कि अगर उन्होंने भुगतान नहीं किया तोउन्हें ऐप से ब्लॉक कर दिया जाएगा और आखिरकार घोटाला सामने आ गया। इस निवेश के लिए माधव ने एक दोस्त से 20 लाख रुपये का कर्ज लिया था।