Rupee impact on stock market: भारतीय रुपये में अमेरिकी डॉलर की तुलना में गिरावट का सिलसिला जारी है। डॉलर के मुकाबले रुपया रोज ऑल टाइम लो बना रहा है। रुपये में जारी इस गिरावट ने निवेशकों की चिंता को बढ़ा दिया है। इस बीच, मंगलवार (14 जनवरी) को डॉलर के मुकाबले रुपया 86.57 प्रति डॉलर पर लगभग सपाट कारोबार कर रहा था।
रुपये में गिरावट के चलते शेयर बाजार पर दबाव बढ़ा है। सोमवार (13 जनवरी) को डॉलर के मुकाबले यह फिसलकर 86 रुपये प्रति डॉलर को लांघ गया। रुपये में करीब दो साल के दौरान यह एक दिन में आई सबसे बड़ी गिरावट थी। क्रूड ऑयल (Crude Oil) की कीमतों में तेजी और डॉलर के मजबूत होने की वजह से रुपया लगातार लुढ़कता जा रहा है। रुपये में लगातार जारी गिरावट का असर देश के फोरेक्स रिजर्व पर भी पड़ा है। भारत का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व 3 जनवरी को समाप्त सप्ताह में घटकर 634.6 अरब डॉलर रह गया है। यह 10 महीने में सबसे कम और सितंबर में हाईएस्ट लेवल से 70 अरब डॉलर घटा है।
भारतीय रुपये का रियल इफेक्टिव रेट (REER) अक्टूबर, 2024 के 107.20 से बढ़कर नवंबर, 2024 में 108.14 हो गया। इसका मतलब कि नवंबर में रुपये का वैल्यूएशन मंथली बेसिस पर 0.9 प्रतिशत बढ़ा। आरईईआर मुद्रास्फीति समयोजित मुद्रा की अपनी समकक्ष मुद्राओं के साथ व्यापार – एवरेज वेटेज वैल्यू को दर्शाता है। इसे आमतौर पर बाहरी प्रतिस्पर्धा का इंडिकेटर माना जाता है।
10 साल में 40% गिरा रुपया
डॉलर के मुकाबले रुपया पिछले 10 साल में 40 प्रतिशत से ज्यादा गिर चुका है। 18 जनवरी, 2015 को रुपया 61.61 रुपये प्रति डॉलर पर था। यह अब 86 रुपये के पार निकल गया है। इस अवधि के दौरान डॉलर में लगभग 41% की गिरावट आई है। पिछले पांच साल में डॉलर की तुलना में रुपया 22% गिरा है। जबकि बीते दो साल में डॉलर की तुलना में रुपये में 6.50% की गिरावट आई है। वहीं, पिछले एक साल में यह 4.40% गिरा है।
क्यों गिर रहा है रुपया? (Why rupee is falling)
स्वस्तिक इंवेस्टमार्ट में रिसर्च प्रमुख संतोष मीणा कहते हैं, डॉलर इंडेक्स और यूएस बॉन्ड यील्ड में बड़े उछाल की वजह से रुपया गिर रहा है। विदेशी निवेशकों (FIIs) की निकासी और इमर्जिंग मार्केट्स की करेंसी में गिरावट ने रुपये पर और दबाव डाला है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच रुपये कब तक गिरेगा, यह बताना फिलहाल मुश्किल है। हालांकि, यह रुपये में गिरावट का अंतिम चरण हो सकता है। साथ ही भविष्य में डॉलर इंडेक्स संभावित रूप से स्थिर हो जाएगा।
वहीं, मास्टर कैपिटल सर्विसेज लिमिटेड में डायरेक्टर पल्का अरोरा चोपड़ा का कहना है कि रुपये के गिरावट का सबसे बड़ा कारण यूएस फेड की ब्याज दरों में बढ़ोतरी, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और डॉलर में मजबूती हैं। इसके अलावा हाई इन्फ्लेशन, ट्रेड डेफिसिट और आर्थिक सुस्ती जैसे घरेलू कारक भी शामिल हैं।
शेयर बाजार पर क्यों पड़ता है असर?
पल्का अरोरा चोपड़ा ने कहा कि भारतीय रुपये में गिरावट शेयर बाजार पर काफी प्रभाव डाल सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे निवेशकों के सेंटीमेंट प्रभावित हो सकते हैं। गिरता रुपया अक्सर बाजार में अनिश्चितता पैदा करता है। इससे निवेशक अधिक सतर्क हो जाते हैं और शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ जाती है।
उन्होंने बताया कि कमजोर रुपया आम तौर पर विदेशी निवेशकों (FIIs) को डिमोटिवेट करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश पर मिलने वाला रिटर्न कम हो जाता है। इसकी वजह से विदेशी निवेशक इक्विटी मार्केट से पैसा निकालते हैं और स्टॉक की कीमतों में गिरावट देखने को मिलती है।
रूपये में गिरावट का बाजार को फायदा या नुकसान?
संतोष मीणा के अनुसार, रुपये में गिरावट से आईटी, फार्मा और केमिकल्स जैसे सेक्टर्स को फायदा मिल सकता है। मगर ऑइल मार्किटिंग और अविसेहन कंपनियों पर इसका नेगेटिव असर पड़ सकता है। ये सेक्टर्स इम्पोर्ट पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है। वहीं, चोपड़ा ने कहा कि रुपये के गिरावट से आईटी, कपड़ा, रत्न और आभूषण और निर्यात फार्मास्यूटिकल्स जैसे एक्सपोर्ट केंद्रित सेक्टर्स को रेवेन्यू में वृद्धि से लाभ होता है।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज में कमोडिटी एंड करेंसी हेड अनुज गुप्ता ने बताया कि आमतौर पर गिरता रुपया शेयर बाजारों के लिए नेगेटिव होता है। इससे इम्पोर्ट बिल बढ़ सकता है और करेंट अकॉउंट डेफिसिट भी बढ़ सकता है। रुपये में गिरावट और डॉलर में मजबूती के कारण एफपीआई डॉलर में निवेश कर सकते हैं और डॉलर की मांग बढ़ सकती है।