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लेख: सेंसेक्स के लिए है लाख टके का सवाल, नए साल में कैसी रहेगी बाजार की चाल

भारत का शेयर बाजार पिछले कई वर्षों से लगातार ऊपर उठता जा रहा है। वर्तमान में भी इसके लिए कई पॉजिटिव संकेत हैं। पहला कि देश में वित्तीय स्थिरता है। महंगाई नियंत्रण में है और रिजर्व बैंक ने ब्याज दर स्थिर रखी हुई है। दूसरा कि IT एवं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस में हमारी साख बरकरार है और इन क्षेत्रों में हमारे लिए नए अवसर खुलते जा रहे हैं। तीसरा कि पर्यटन एवं स्वास्थ्य में हमारी आय सुदृढ़ है। और चौथा कि सरकार की तरफ से इन्फ्रास्ट्रक्चर में लगातार निवेश जारी है, विशेषकर सड़कों, स्पेस, डिफेंस और रिन्यूएबल एनर्जी।FPI की बेरुखी: इन सकारात्मक संकेतों के बावजूद बीते समय में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने अपना हाथ कुछ खींचा है। वर्ष 2023 की तुलना में 2024 में पोर्टफोलियो फॉरेन इन्वेस्टमेंट लगभग आधा आया है। कारण यह है कि भारत की GDP ग्रोथ सुस्त पड़ रही है। विदेशी निवेशक केवल भारत की ही स्थिति को नहीं देखते बल्कि वे दूसरे देशों से तुलना करते हैं और यदि उन्हें वहां कमाई के अवसर ज्यादा दिखते हैं तो वे उधर मुंह मोड़ लेते हैं। अभी उनका भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य पर भरोसा नहीं बन रहा है।

खैर, 2025 में सेंसेक्स की दिशा नीचे दी गई बातों पर निर्भर करेगी।
– GDP ग्रोथ की स्थिति क्या रहती है। वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में हमारी विकास दर 8.1% थी, जो 2023-24 की दूसरी तिमाही में 5.4% रह गई। वित्त वर्ष 2024-25 के अग्रिम अनुमान में इसके गिरकर 6.4% पर आने का अनुमान लगाया गया है। यह गिरावट जारी रही तो हमारी कंपनियों का माल कम बिकेगा, उनके लाभ दबाव में आएंगे और शेयर बाजार टूटेगा।

– अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया है कि अगले 5 वर्षों में भारत की ग्रोथ रेट 6.1% रहेगी। इसलिए यदि विकास दर इससे अधिक रहती है तो हम मान सकते हैं कि हम अपेक्षा से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। यदि ग्रोथ रेट 6.1% से कम रहती है तो हमें मानना चाहिए कि हम अपेक्षा से कम विकास दर हासिल कर रहे हैं और यह शेयर मार्केट के लिए नकारात्मक होगा।

– सेंसेक्स की चाल कंपनियों के प्रदर्शन पर निर्भर करती है, जो GDP ग्रोथ रेट पर निर्भर करता है। अर्थव्यवस्था तीव्र गति से बढ़ती है तो कंपनियां अधिक लाभ कमाती हैं और शेयर बाजार उछलता है, नहीं तो गिरता है।

– 2025 में सेंसेक्स की दिशा का एक और बिंदु अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की पॉलिसी का है। ट्रंप ने ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का नारा दिया है। वह अमेरिकी उद्योगों को चीन एवं अन्य देशों से वापस अपने देश लाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि अमेरिकी कंपनियां चीन में उत्पादन कर अमेरिका में आयात करने के स्थान पर अमेरिका में ही उत्पादन करें। साथ-साथ वह अमेरिका में होने वाले आयातों पर आयात कर बढ़ाना चाहते हैं, जिससे ऐसे सामान महंगे हो जाएं और घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन मिले। ट्रंप ग्लोबलाइजेशन से पीछे हटना चाहते हैं। यदि वह इन नीतियों को वास्तव में पूरी ताकत से लागू करते हैं तो भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

– अमेरिकी उद्योगों की घर वापसी से भारत से फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट वापस जाएगा। भारत की ग्रोथ कमजोर पड़ेगी। अमेरिका द्वारा आयात कर बढ़ाने से भारत के लिए निर्यात करना कठिन हो जाएगा। भारत की निर्यातक कंपनियों के लाभ दबाव में आएंगे। ऐसे में भारत के शेयर मार्केट पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। लेकिन यदि केंद्र सरकार ने घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन दिया तो इस नकारात्मक प्रभाव की आंशिक भरपाई हो जाएगी और ग्लोबलाइजेशन से पीछे हटने के बावजूद हमारा शेयर बाजार टिका रह सकता है।

– आज पश्चिमी देश चीन का सामना करने को तैयार हैं। वे चीन से आयात घटाना चाहते हैं। अमेरिका में आयात करने वाले मेरे एक जानकार व्यापारी ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व तक वे 100% माल चीन से आयात करते थे, जो वर्तमान में 50% चीन एवं 50% भारत से आयात कर रहे हैं। इसलिए अमेरिका के साथ पश्चिमी देशों ने चीन से माल आयात करने में कटौती की तो उसका भारत को लाभ मिलेगा और हमारे शेयर मार्केट में सुधार होगा। इसके विपरीत यदि उन्होंने बिजनेस ऐज यूज्युअल की नीति को अपनाया तो चीन आगे रहेगा और हमारे शेयर मार्केट में उछाल नहीं आएगा। जियोपॉलिटिक्स का दूसरा बिंदु यूक्रेन, गाजा पट्टी, सीरिया और ताइवान में युद्ध व अस्थिरता का है। इन युद्धों के होने से विश्व व्यापार में गिरावट आएगी और भारतीय शेयर मार्केट भी लुढ़केगा।

– अंतिम विषय क्लाइमेट चेंज का है। हम देख रहे हैं कि सूखा और बाढ़ जैसी घटनाएं वैश्विक स्तर पर बढ़ रही हैं। यदि दूसरे देशों में ऐसी घटनाएं होती हैं तो भारत के निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा। यदि भारत में ऐसी घटनाएं होती हैं तो हमारी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जैसे- उत्तर भारत में सूखा पड़ जाए तो गेहूं-धान का उत्पादन कम होगा। हमें तब महंगे गेहूं-चावल का आयात करना होगा। जनता की क्रय शक्ति महंगा आटा-चावल खरीदने में खप जाएगी और उनके लिए फ्रिज-बाइक आदि खरीदना कठिन हो जाएगा। हमारे गांवों से बहुत मांग उत्पन्न नहीं होगी, जिससे हमारी कंपनियों के मुनाफे में कटौती होगी।

नए साल में भारतीय शेयर बाजार की दिशा इन बातों से तय होगी। इनके प्रति निवेशकों को सजग रहना चाहिए। अगर इन बिंदुओं पर सकारात्मक संकेत मिलते हैं तो सेंसेक्स एक लाख का स्तर छू सकता है।

(लेखक आर्थिक विषयों के जानकार हैं)

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