हर चुनी गई नई सरकार के लिए शुरुआती छह महीने का समय ‘हनीमून पीरियड’ की तरह होता है। सरकार इस दौरान कामकाज के लिए जमीन तैयार करती है। अपनी पॉलिसी बनाती है। तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए यह हनीमून पीरियड काफी छोटा था। सरकार के पास पहले से तैयार पॉलिसी थी और पॉलिसी को लागू करने के लिए अपने लोग थे। ऐसे में आम लोग सरकार से जल्द नतीजे चाहते हैं। खासकर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद तो यह बेकरारी और बढ़ गई है।
आर्थिक गतिविधियों घटने का असर
सिर्फ आम लोग ही नहीं उद्योग जगत भी जल्द नतीजे चाहता है। खासकर ऐसे वक्त जब आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ने के संकेत दिख रहे हैं। 435 लिस्टेड कंपनियों का मानना है कि FY25 में जुलाई-सितंबर के दौरान रेवेन्यू ग्रोथ बीती 16 तिमाहियों में सबसे कम रह सकती है। Zerodha के फाउंडर नितिन कामत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा है कि ज्यादातर सेक्टर्स में न सिर्फ रेवेन्यू ग्रोथ नाममात्र की रही है बल्कि प्रॉफिट का भी बुरा हाल है। इस साल सितंबर तक प्रॉफिट ग्रोथ घटकर निगेटिव में आ गई है। यह जून 2023 तिमाही में 44 फीसदी थी।
इंटरेस्ट रेट घटाने की बढ़ रही मांग
सरकार भी चिंतित है। यूनियन कैबिनेट के कई सीनियर मिनिस्टर्स इस बात का संकेत दे चुके हैं कि RBI को अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में नरमी लानी चाहिए। इससे उद्योग जगत को सस्ता कर्ज उपलब्ध होगा, जिससे आर्थिक गतिवधियां बढ़ेगी। हाल में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बैंकिंग सम्मेलन में कहा था कि कारोबार की ग्रोथ के लिहाज से इंटरेस्ट रेट काफी ज्यादा है। उन्होंने कहा था, “बॉरोइंग की कॉस्ट काफी ज्यादा है। ऐसे वक्त जब हम इंडस्ट्री की क्षमता में इजाफा चाहते हैं तब इंटरेस्ट रेट का एफोर्डेबल होना जरूरी है।”
महंगाई पर आरबीआई का ज्यादा फोकस
सीतारमण से पहले कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल ने एक ऐसे कार्यक्रम में इंटरेस्ट रेट में कमी की जरूरत बताई थी, जिसमें खुद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास मौजूद थे। उनका मानना था कि ग्रोथ बढ़ाने के लिए इंटरेस्ट रेट में कमी जरूरी है। इन सबके बावजूद दास को इंटरेस्ट रेट में कमी की जरूरत नहीं लगती। पिछले हफ्ते केंद्रीय बैंकों के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि ग्रोथ जितना जरूरी है उतना ही जरूरी कीमतों में स्थिरता लाना है। इनफ्लेशन कम होने से सेविंग्स और निवेश बढ़ता है, जो ग्रोथ के लिए सबसे जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा था कि ज्यादा इनफ्लेशन से सबसे ज्यादा मुश्किल गरीब लोगों को होती है।
आर्थिक गतिविधि में सुस्ती की असल वजह महंगाई
दास का कहना सही है। गोयल की दलील के बावजूद यह साफ है कि हाई इनफ्लेशन का असर डिमांड पर पड़ रहा है। इसका असर न सिर्फ गरीब लोगों पर पड़ रहा है बल्कि दूसरे लोगों पर भी पड़ रहा है। स्कूटर-मोटरसाइकिल और कारों की बिक्री के डेटा से पता चलता है कि मिडिल क्लास भी हाई इनफ्लेशन की वजह से दबाव में है। नोमुरा के एक इंडेक्स से FY25 की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ सुस्त रहने का अनुमान जताया गया है। ग्रामीण इलाकों में महंगाई का ज्यादा असर डिमांड पर दिख रहा है। इसका पता FMCG कंपनियों के रेवेन्यू को लेकर गाइडेंस में कमी से चलता है।
बाटा के चप्पलों की बिक्री बताती है इकोनॉमी का हाल
हाल में एक इंटरव्यू में Bata India के एमडी और सीईओ गुंजन शाह ने कहा था कि लोअर मीडिल क्लास और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उपभोक्ताओं पर इनफ्लेशन का काफी ज्यादा असर पड़ा है। इस वजह से बाटा की बिक्री में सुस्ती दिखी है। साथ ही बाटा के सस्ते की जगह महंगे प्रोडक्ट्स खरीदने के ग्राहकों के ट्रेंड पर भी महंगाई का असर दिखा है। बाटा ऐसी कंपनी है, जिसके जूते-चप्पल हर भारतीय के पैरों में देखने को मिलते हैं। जब बाटा के जूते-चप्पल की बिक्री में सुस्ती दिख रही है तो इसका मतलब है कि एक आम भारतीय भी महंगाई की मार से परेशान है।