सरकार ने स्टॉक मार्केट्स में लिस्टेड सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (सीपीएसई) की कैपिटल रीस्ट्रक्चरिंग गाइडलाइंस बदल दी है। नई गाइडलाइंस शेयर बायबैक और डिविडेंड्स पर भी लागू होंगी। सरकार ने कैपिटल मार्केट्स की स्थितियों को देखते हुए यह कदम उठाया है। इससे पहले सरकार ने शेयर बायबैक और डिविडेंड के लिए 2016 में गाइडलाइंस जारी की थी। उसके बाद से कैपिटल मार्केट्स में बड़ा बदलाव आया है।
फाइनेंशियल सेक्टर के सीपीएसई के लिए अलग नियम
नई गाइडलाइंस में कहा गया है कि एनबीएफसी जैसे फाइनेंशियल सेक्टर के CPSE को अपने प्रॉफिट का कम से कम 30 फीसदी न्यूनतम सालाना डिविडेंड के रूप में देना होगा। दूसरे सीपीएसई को अपने प्रॉफिट का कम से कम 30 फीसदी या नेटवर्थ का 4 फीसदी (दोनों में से जो ज्यादा) एनुअल डिविडेंड के रूप में देना होगा। नई गाइडलाइंस फाइनेंशियल ईयर 2024-25 से लागू हो गई है।
पहले सरकार की तरफ से जारी गाइडलाइंस में क्या था
इससे पहले सीपीएसई के लिए केंद्र सरकार की 2016 में आई गाइडलाइंस में कहा गया था कि सीपीएसई को अपने प्रॉफिट का 30 फीसदी या नेटवर्थ का 5 फीसदी (दोनों में से जो ज्यादा) डिविडेंड के रूप में देना होगा। तब एनबीएफसी जैसे फाइनेंशियल सेक्टर के सीपीएसई के लिए अलग गाइडलाइंस जारी नहीं की गई थी। नई गाइडलाइंस के मुताबिक, ऐसे सीपीएसई को शेयर बायबैक करना होगा, जिनके शेयरों का मार्केट प्राइस पिछले छह महीनों में लगातार बुक वैल्यू से कम रहा है, जिनका नेटवर्थ कम से कम 3,000 करोड़ रुपये से कम है और जिनका बैंक बैलेंस 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
सीपीएसई को बोनस इश्यू पर भी विचार करने का निर्देश
सरकार ने सीपीएसई को बोनस शेयर इश्यू करने पर विचार करने को भी कहा है। सरकार ने कहा है कि जिन सीपीएसई का डिफाइंड रिजर्व और सरप्लस उनके पेड-अप इक्विटी शेयर कैपिटल के बराबर या 20 गुना से ज्यादा है, उन्हें बोनस शेयर इश्यू करने पर विचार करना चाहिए। इसके अलावा शेयरों के स्प्लिट के बारे में भी नई गाइडलाइंस में निर्देश दिया गया है। इसमें कहा गया है कि ऐसे लिस्टेड सीपीएसई जिनके स्टॉक का मार्केट प्राइस पिछले छह महीनों में लगातार उनके फैस वैल्यू के 150 गुना से ज्यादा रहा है, उन्हें शेयरों के स्प्लिट पर विचार करना चाहिए।
दो स्टॉक स्प्लिट के बीच तीन साल का गैप जरूरी
नई गाइडलाइंस में यह भी कहा गया है कि लगातार दो स्टॉक स्प्लिट के बीच कम से कम तीन साल का अंतर (Cooling Period) होना चाहिए। सरकार तीन साल के बाद नई गाइडलाइंस की समीक्षा करेगी। इनमें बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलाव किया जा सकता है।