नई दिल्ली: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारतीय बाजारों से तेजी से पैसा निकाल रहे हैं। अक्टूबर में इन निवेशकों ने 1,13,858 करोड़ रुपये और नवंबर के पहले पखवाड़े में 22,420 करोड़ निकाले हैं। यह जानकारी एनएसडीएल के आंकड़ों से मिली है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं। हालांकि, आम धारणा के उलट इसमें चीन बहुत बड़ा फैक्टर नहीं है।जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार डॉ. वीके विजयकुमार का कहना है, ‘एफपीआई की लगातार बिकवाली के पीछे तीन कारण हैं। पहला, भारत में हाई वैल्यूएशन। दूसरा, आय में गिरावट की आशंका। तीसरा, ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी।’
वाटरफील्ड एडवाइजर्स के सीनियर डायरेक्टर विपुल भोवर ने कहा, ‘कमजोर आय, अन्य बाजारों की तुलना में ऊंचे मूल्यांकन और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी जैसे ग्लोबल आर्थिक प्रभावों ने एफआईआई की बिकवाली को जन्म दिया है।’
IPO ने खींचा है ध्यान
दिलचस्प बात यह है कि नवंबर में अब तक कैश मार्केट से 32,351 करोड़ रुपये निकालने के बावजूद एफपीआई ने प्राइमरी मार्केट में 9,931 करोड़ रुपये का निवेश किया है। स्विगी और हुंडई जैसे बड़े आईपीओ ने उनका ध्यान खींचा है।
भोवर ने कहा, ‘सेकेंडरी मार्केट में एफआईआई की ओर से की जा रही कुछ बिक्री की भरपाई प्राइमरी मार्केट में बड़े आईपीओ के माध्यम से खरीदारी ने की है। उम्मीद है कि कैलेंडर वर्ष के अंत में एफआईआई अपनी बिकवाली कम कर देंगे।’
ट्रंप इफेक्ट भी बिकवाली की वजह
एफपीआई स्ट्रैटेजी को प्रभावित करने वाला एक अन्य प्रमुख फैक्टर ट्रंप इफेक्ट है। विजयकुमार के मुताबिक, ‘ट्रंप की जीत ने अमेरिका में इक्विटी और बॉन्ड दोनों बाजारों को प्रभावित किया है। ट्रंप की ओर से वादा किए गए कॉर्पोरेट टैक्स कटौती और उनकी व्यापार समर्थक नीतियों के सकारात्मक प्रभाव की उम्मीदों पर इक्विटी में तेजी आई है। ट्रंप के नेतृत्व में संभावित रूप से बढ़ते राजकोषीय घाटे की चिंताओं से बॉन्ड बाजार प्रभावित हुआ है।’
बढ़ती अमेरिकी बॉन्ड यील्ड भारत जैसे उभरते बाजारों पर और दबाव डाल रही है। विजयकुमार ने कहा, ’10-साल वाले अमेरिकी बॉन्ड की यील्ड में 4.42% की तेज बढ़ोतरी का उभरते बाजारों के लिए नकारात्मक प्रभाव है। यह डेट मार्केट में एफपीआई की बिकवाली में भी दिखाई दे रहा है।’
रणनीति में किया है बदलाव
एफपीआई अपने स्थानीय दांवों में भी फेरबदल कर रहे हैं। भोवर ने कहा, ‘इस साल, एफपीआई उन मैच्योर रीजन में अपना वेटेज कम कर रहे हैं जहां विकास दर हमारी सामान्य जीडीपी के करीब है। वे ज्यादा ग्रोथ वाले व्यवसायों को पूंजी आवंटित कर रहे हैं।’
हालांकि, ऑटोमोबाइल, मेटल और मैन्यूफैक्चरिंग जैसे कुछ उद्योगों के लिए चुनौतियां बनी हुई हैं। ये ग्लोबल कमोडिटी मूल्य में उतार-चढ़ाव और बुनियादी ढांचे के खर्च में उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। नियामक बदलाव कुछ राहत ला सकते हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि भविष्य में एफपीआई प्रवाह का रुख काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत व्यापक आर्थिक स्थिरता कैसे बनाए रखता है और कॉर्पोरेट आय में सुधार कैसे करता है।
(डिस्क्लेमर: इस विश्लेषण में दिए गए सुझाव व्यक्तिगत विश्लेषकों या ब्रोकिंग कंपनियों के हैं, stock market news के नहीं। हम निवेशकों को सलाह देते हैं कि किसी भी निवेश का निर्णय लेने से पहले प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श कर लें क्योंकि शेयर बाजार की परिस्थितियां तेजी से बदल सकती हैं।)