फ्लैट खरीदने में ग्राहक को बिल्डर के एग्रीमेंट लेटर पर हस्ताक्षर करना होता है। यह एक कानूनी डॉक्युमेंट है, जिसमें शामिल नियम और शर्तें बिल्डर और ग्राहक दोनों पर लागू होती हैं। आम तौर पर इसका मकसद ग्राहक के हितों की सुरक्षा करना है। लेकिन बिल्डर इसमें ऐसी कई शर्तें शामिल करते हैं, जो उनके हितों की सुरक्षा से जुड़ी होती हैं। आम तौर पर किसी ग्राहक के लिए एग्रीमेंट में शामिल सभी नियम और शर्तों को पढ़ना और समझना मुश्किल होता है। फिर भी, ग्राहक को निम्निलिखित बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
1. प्रोजेक्ट की बुनियादी बातें
ग्राहक को एग्रीमेंट लेटर पर हस्ताक्षर करने से पहले प्रोजेक्ट के नाम और पत्ते को चेक कर लेना चाहिए। एग्रीमेंट लेटर में इन दोनों चीजों का उल्लेख जरूरी है। उसके बाद आपका फ्लैट नंबर भी इसमें होना चाहिए। फ्लैट का साइज, कारपेट एरिया, सुपर बिल्ट-अप एरिया का स्पष्ट उल्लेख एग्रीमेंट लेटर में होना चाहिए। उसके बाद सबसे अहम पेजशन डेट है। इसका मतलब उस तारीख से है जब बिल्डर फ्लैट ग्राहक को सौंपेगा। आम तौर पर पजेशन में देर होने पर बिल्डर ग्राहक को मुआवजा देते हैं। इस बात का उल्लेख भी एग्रीमेंट लेटर में होना चाहिए।
2. पेमेंट शिड्यूल
पेमेंट का प्लान स्पष्ट होना चाहिए। इसमें एडवान्स अमाउट, इंस्टॉलमेंट के साथ ही हर पेमेंट की ड्यू डेट होनी चाहिए। ग्राहक को इस बात पर खास ध्यान देना जरूरी है कि क्या एग्रीमेंट लेटर में ऐसी कोई शर्त है जिसमें कहा गया है कि बिल्डर के पास किसी समय फ्लैट की प्राइस बढ़ाने का अधिकार होगा। अगर ऐसी शर्त है तो उसे समझना जरूरी है। आम तौर पर ग्राहक को ऐसी शर्तों के बारे में पता नहीं होता है। फिर बाद में प्राइस बढ़ाने के बाद बिल्डर इस शर्त का हवाला देता है।
3. टाइटल और ओनरशिप
बिल्डर जिस जमीन पर अपार्टमेंट बना रहा है, उसका मालिकान हक उसके पास होना चाहिए। ग्राहक उस जमीन का डॉक्युमेंट देखकर इस बारे में निश्चिंत हो सकता है। इससे बाद में किसी तरह के कानूनी विवाद की आशंका नहीं रह जाती है। ग्राहक को यह भी देखना जरूरी है कि बिल्डर के पास अपार्टमेंट या फ्लैट बनाने के लिए सभी तरह के एप्रूवल हैं या नहीं। कई बार एप्रूवल से पहले ही बिल्डर ग्राहकों को फ्लैट बेचना शुरू कर देते हैं। बाद में फिर ग्राहक को दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
4. फ्लैट का स्पेसिफिकेशन
एग्रीमेंट लेटर में इस बात का उल्लेख होता है कि बिल्डर किस तरह के कंस्ट्रक्शन मैटेरियल का इस्तेमाल फ्लैट बनाने के लिए करेगा। इसके अलावा फ्लोरिंग, फिटिंग्स और इलेक्ट्रिकल फिक्सचर्स के बारे में जानकारी होती है। एग्रीमेंट लेटर में इन बातों का उल्लेख होने से ग्राहक बिल्डर को बताई गई मैटेरियल क्वालिटी के इस्तेमाल के लिए दबाव बना सकता है।
5. पजेशन का प्रोसेस
ग्राहक को फ्लैट के पजेशन प्रोसेस को समझ लेना भी जरूरी है। पजेशन प्रोसेस से कई तरह की औपचारिकताएं जुड़ी होती हैं। इसके अलावा यह भी चेक करने की जरूरत है कि एग्रीमेंट लेटर में फ्लैट के मेंटेनेंस के बारे में किस तरह की शर्तें हैं। इसकी वजह यह है कि पजेशन के बाद भी फ्लैट में कई तरह के रिपेरिंग वर्क की जरूरत पड़ती रहती है।
6. लेआउट में बदलाव
कई बार अपार्टमेंट या फ्लैट के लेआउट में बिल्डर को बदलाव करना पड़ता है। वह किस-किस तरह का बदलाव कर सकता है, इस बात का उल्लेख एग्रीमेंट लेटर में शामिल होना जरूरी है। इससे वह अपनी मर्जी के हिसाब से लेआउट में बदलाव नहीं कर पाएगा।
7. रेरा कंप्लायंस
प्रोजेक्ट का रेरा में रजिस्टर्ड होना बहुत जरूरी है। एग्रीमेंट लेटर में रेरा का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। ग्राहक बिल्डर से रेरा के रजिस्ट्रेशन के डॉक्युमेंट्स भी देखने के लिए मांग सकता है। रेरा में रजिस्ट्रेशन से बिल्डर रेरा के नियमों को मानने के लिए बाध्य होता है। साथ ही जरूरत पड़ने पर बिल्डर की शिकायत रेरा में की जा सकती है।
8. स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन
ग्राहक को यह जानना जरूरी है कि फ्लैट की रजिस्ट्रेशन कॉस्ट और स्टैंप ड्यूटी का खर्च कौन उठाएगा। आम तौर पर फ्लैट खरीदार यानी ग्राहक यह खर्च उठाता है। लेकिन इस बात का स्पष्ट उल्लेख एग्रीमेंट में होना जरूरी है।
9. सुविधाएं और कॉमन एरिया
अपार्टमेंट के कॉमन एरिया जैसे लॉबी, लिफ्ट और पार्किंग स्पेस के मेंटेनेंस की जिम्मेदारी बिल्डर की होती है। इस बात का उल्लेख एग्रीमेंट में होना जरूरी है। अगर यह जिम्मेदारी बिल्डर की नहीं है तो इस बात का उल्लेख एग्रीमेंट लेटर में होना चाहिए कि इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। इसके अलावा ग्राहक को जिम, स्विमिंग पूल जैसी सुविधाओं से जुड़ी शर्तें भी चेक कर लेना चाहिए।
10. बिल्डर लायबिलिटी
अपार्टमेंट या फ्लैट के इंश्योरेंस की जिम्मेदारी बिल्डर की होती है। एग्रीमेंट लेटर पर साइन करने से पहले यह चेक कर लेना जरूरी है कि कंस्ट्रक्शन फेज में उसने अपार्टमेंट का इंश्योरेंस कराया है या नहीं।