सीएलएसए ने चीन पर अपना ओवरवेट नजरिया वापस ले लिया है। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बीच एक बार फिर भारत पर ‘ओवरवेट’ रुख की सिफारिश की है। चीन के प्रोत्साहन उपायों की वजह से सीएलएसए ने अपने एशिया पैसिफिक आवंटन में चीन पर ‘ओवरवेट’ रुख अपना लिया था और भारत में अपने निवेश को कम कर दिया था।
हालांकि अमेरिकी चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत ने ब्रोकरेज फर्म को फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। उसने चीन को अब ‘इक्वल वेट’ रेटिंग दी है जबकि भारत को सबसे बड़ा ‘ओवरवेट’ किया है। सीएलएसए का मानना है कि चीन की ताजा आर्थिक चिंताओं (इनमें अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव और संपत्ति की घटती कीमतें भी शामिल) से चीन के इक्विटी बाजार पर दबाव बरकरार रहेगा।
सीएलएसए ने एक रिपोर्ट में कहा है कि इसके विपरीत भारत को उसकी मजबूत आर्थिक वृद्धि और अपेक्षाकृत कम व्यापार जोखिम के कारण अधिक आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में देखा जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप का दूसरा कार्यकाल व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि का संकेत देता है, ठीक ऐसे समय में जब निर्यात का चीन के विकास में सबसे बड़ा योगदान है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही ट्रंप प्रशासन अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ने के डर से शुल्क दरों पर ज्यादा सख्त कदम नहीं उठाए, लेकिन व्यापारिक लड़ाई में किसी भी तरह का इजाफा चीनी इक्विटी परिसंपत्तियों और उसकी मुद्रा के लिए बड़ी मुसीबत होगा। ऐसा इसलिए भी कि चीन की आर्थिक वृद्धि 2018 की तुलना में अब निर्यात पर अधिक निर्भर हो गई है।
नैशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के प्रोत्साहन से अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं होगा। इसके अलावा, अमेरिका में ऊंचा यील्ड और मुद्रास्फीति के अनुमान फेड के लिए गुंजाइश कम कर रहे हैं। सीएलएसए ने कहा कि चीन के नीति निर्माताओं को अपस्फीति, संपत्ति की कीमतों में गिरावट, युवा बेरोजगारी में वृद्धि, परिवारों के आत्मविश्वास में कमी, रियल एस्टेट निवेश में ठहराव जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
इसके विपरीत भारत ट्रंप की प्रतिकूल व्यापार नीति से सबसे कम प्रभावित होने वाले क्षेत्रीय बाजारों में से एक नजर आ रहा है। भारत को लेकर अहम जोखिम निर्गमों से पूंजी जुटाने की भरमार है जिनकी बाजार में बाढ़ आ गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में अक्टूबर के बाद से विदेशी निवेशकों की भारी शुद्ध बिकवाली देखी गई है, जबकि इस वर्ष हमने जिन निवेशकों से मुलाकात की, वे भारत में कम निवेश की स्थिति से निपटने के लिए विशेष रूप से ऐसे खरीद अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। घरेलू तौर पर जोखिम सहन करने की क्षमता मजबूत बनी हुई है जो विदेशी चिंताओं को कम कर दे रही है। हालांकि मूल्यांकन महंगा है, लेकिन अब थोड़ा अधिक आकर्षक लग रहा है।’