महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के सामने वोटों के समर्थन वाली एक ऐसी पेशकश आई है जिससे विपक्षी नेता परेशान ही होंगे। दरअसल ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड ने महाराष्ट्र में विपक्षी MVA को सपोर्ट करने की बात तो कही है लेकिन अपनी डिमांड की एक लिस्ट भी पकड़ा दी है। उलेमाओं की इस डिमांड लिस्ट में बीजेपी के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर बैन की मांग भी शामिल है। ये खबर चर्चा के केंद्र में आ चुकी है। आइए कुछ पॉइंट्स में समझते हैं कि उलेमा बोर्ड की इस डिमांड से विपक्ष को फायदा होगा या नुकसान?
1-ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड की स्थापना 1989 में हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों में शांति कायम करना बताया गया है। महाराष्ट्र के चुनाव में उलेमा बोर्ड ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए MVA के पक्ष में समर्थन देने की घोषणा की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बोर्ड की महाराष्ट्र विंग ने महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के पास 17 मांगों की लिस्ट भेजी है।
इसके अलावा मांगों में ये बातें शामिल हैं- मुस्लिमों को 10% आरक्षण मिले, वक्फ संशोधन बिल 2024 रद्द हो, इमामों-मौलानाओं को 15000 रु./महीना मिले, मुस्लिमों को पुलिस भर्ती में प्राथमिकता मिले।
2-कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा भी किया जा रहा है कि कांग्रेस और शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी द्वारा इन मांगों को मान भी लिया गया है। लेकिन इस ‘वोटों की डील’ में सबसे ज्यादा परेशानी उद्धव ठाकरे को हो सकती है। भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़कर कांग्रेस और शरद पवार से हाथ मिलाने वाले उद्धव ठाकरे पर पहले भी हिंदुत्व के मुद्दे से पलटी मारने के आरोप लगते रहे हैं। इस डील से इन आरोपों पर पुख्ता मुहर भी लग जाएगी। मुस्लिम समुदाय का वोट उद्धव गुट को कितना मिलेगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन पार्टी को हिंदू वोटों का नुकसान हो सकता है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने जब शिवसेना से अपनी राहें अलग की थीं तब भी हिंदुत्व की विचारधारा से समझौते के आरोप उद्धव गुट पर लगे थे। अब इस विधानसभा चुनाव में अगर उद्धव की तरफ से हिंदू वोट छिटकता है तो इसका सीधा फायदा शिंदे कैंप को हो सकता है। यानी 2022 से शुरू हुई शिवसेना के ‘असली वोटबैंक’ की लड़ाई अब अपने अंत की तरफ बढ़ सकती है और फायदे में एकनाथ शिंदे रह सकते हैं।
3-महाराष्ट्र के चुनाव में मुकाबला मुख्य रूप से दो राजनीतिक धड़ों के बीच में है। एक तरफ सत्ताधारी महायुति है तो दूसरी तरफ विपक्षी महाविकास अघाड़ी। पहले से माना जा रहा था कि सत्ताधारी पक्ष में बीजेपी और हिंदूवादी चेहरे एकनाथ शिंदे के होने की वजह से मुस्लिम वोट बड़ी संख्या में विपक्षी गठबंधन को मिल सकता है। लेकिन उलेमा बोर्ड की तरफ से इस तरह की सीधी पेशकश की खबरों के बीच ‘काउंटर पोलराइजेशन’ की स्थिति भी बन सकती है, जिसका विपक्षी गठबंधन को बड़ा नुकसान हो सकता है।
4-सत्ताधारी गठबंधन में सबसे बड़े दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं ने बीते दिनों में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे का इस्तेमाल शुरू किया है। पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस नारे का इस्तेमाल किया फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग स्वरूप में ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ जैसे नारे का इस्तेमाल किया। एक तरफ जहां विपक्षी गठबंधन लगातार जातीय जनगणना की मांग कर रही है तो दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से वोटों के एकजुट होने की अपील की जा रही है। बीजेपी के नारों की जमकर व्याख्या हो रही है। विश्लेषक इसे अलग रूप में परिभाषित कर रहे हैं तो बीजेपी नेता इसकी अपनी व्याख्याएं दे रहे हैं। लेकिन महाराष्ट्र चुनाव में उलेमा बोर्ड ने विपक्षी गठबंधन के समर्थन के लिए जो शर्तें रखी हैं उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे का इस्तेमाल और तेज कर सकती है।
5-महाराष्ट्र से ठीक पहले हुए हरियाणा चुनाव में विपक्ष के लिए बने कई नैरेटिव बहुत बुरी तरह ध्वस्त हुए हैं। महाराष्ट्र चुनाव विपक्ष के लिए एक बड़ा मौका है, जहां वह जीत हासिल कर देशभर में संदेश दे सकता है। लेकिन जीत से इतर अगर हार मिलती है तो इसका असर भी पूरे देश में होगा। उलेमा बोर्ड की मांगों का खामियाजा अगर विपक्ष को उठाना पड़ता है तो चुनाव बाद की एनालिसिस में विश्लेषक इस पॉइंट को जरूर रखेंगे। एक मिथक यह भी टूटेगा कि कोई मजबूत संगठन किसी दल को ऐसे सीधे तौर पर मदद देकर चुनाव जिता या हरा सकता है।