अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की है। अब ब्याज दर 4.50% से 4.75% के बीच रहेंगी। इससे पहले 18 सितंबर को फेड ने इंटरेस्ट रेट्स में 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की थी।
सितंबर की कटौती करीब 4 साल बाद की गई थी। उससे पहले फेड ने मार्च 2020 बाद सितंबर 2024 में इंटरेस्ट रेट्स में कटौती की थी। इन्फ्लेशन पर काबू पाने के लिए अमेरिका के सेंट्रल बैंक ने मार्च 2022 से जुलाई 2023 के बीच 11 बार ब्याज दरों में इजाफा किया था।
पिछले साल फेडरल रिजर्व ने अपने पॉलिसी डिसीजन में लगातार तीसरी बार ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखा था। 26 जुलाई 2023 को फेड ने बाजार की उम्मीदों के मुताबिक पॉलिसी रेट को 5.25%-5.5% की रेंज में जस-का-तस रखा था।
हालांकि, फेड ने ये भी संकेत दे दिया था कि 2024 में दरों में कटौतियां देखने को मिलेंगी और ये कम होकर 4.6% तक आ सकती हैं। फेड ने महंगाई से निपटने के लिए मार्च 2022 से दरों को बढ़ाना शुरू किया था। पिछले साल जुलाई तक बढ़कर ये दरें 23 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं।
फेडरल रेट्स तय करती हैं कि कि बैंक एक-दूसरे से दिए गए लोन पर एक रात में कितना ब्याज लेंगे। लेकिन अक्सर यह कंज्यूमर डेट, मॉर्गेज, क्रेडिट कार्ड्स और ऑटो लोन्स को भी प्रभावित करता है।
ब्याज दरों में कटौती का क्या असर हो सकता है…
- शेयर मार्केट एनालिस्ट्स का मानना है कि इंटरेस्ट रेट्स में बड़ी कटौती होने से शेयर बाजार में तेजी आ सकती है।
- ज्यादा कटौती से अमेरिका की आर्थिक सेहत को लेकर भी चिंता पैदा हो सकती है, जिससे निवेशकों का हौसला सुस्त पड़ सकता है।
- कम कटौती (करीब 25bps) से मार्केट में निराशा हो सकती है, क्योंकि बाजार ब्याज दर में ज्यादा कटौती की उम्मीद लगा रहा है।
- इंटरेस्ट रेट्स में कटौती में देरी से जॉब मार्केट की रफ्तार धीमी हो सकती है। इसलिए सेंट्रल बैंक को सावधानी से काम करने की जरूरत होगी।
- रिपोर्ट्स के मुताबिक फेड ऑफिसर्स ने संकेत दिया है कि अब इन्फ्लेशन के बजाय लेबर मार्केट के आंकड़े उनके डिसीजन में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
महंगाई से लड़ने का शक्तिशाली टूल है पॉलिसी रेट
किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है।
पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है।
इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।