Net profit growth: भारतीय कंपनियों ने FY25 की दूसरी तिमाही में अब तक कमजोर नतीजे जारी किए हैं। जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान इन कंपनियों के नेट प्रॉफिट में 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई, जो कि पिछली 17 तिमाहियों में सबसे धीमी है। कंपनियों के मुनाफे में इस गिरावट की मुख्य वजह सुस्त रेवेन्यू ग्रोथ और बढ़ती ब्याज और डेप्रिसिएशन कॉस्ट है। ACE इक्विटीज के अनुसार सितंबर तिमाही में 694 लिस्टेड कंपनियों के कुल नेट प्रॉफिट में सालाना केवल 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। यह जून 2020 तिमाही के बाद से सबसे धीमी ग्रोथ है। यह जून तिमाही में 15 फीसदी की ग्रोथ और एक साल पहले 29 फीसदी की ग्रोथ से भी काफी कम है।
सितंबर तिमाही में कैसे रहे भारतीय कंपनियों के नतीजे
मनीकंट्रोल डेटा से पता चलता है कि सितंबर तिमाही में नेट सेल्स ग्रोथ 8.04 फीसदी रही, जो पिछली तिमाही में 8.4 फीसदी से कम है। यह सिंगल-डिजिट रेवेन्यू ग्रोथ की लगातार छठी तिमाही है। सितंबर तिमाही में ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 22.03 फीसदी रहा, जो छह तिमाहियों में सबसे धीमी ग्रोथ है, जबकि जून तिमाही में यह 23.05 फीसदी था। इस एनालिसिस में बैंक, फाइनेंशियल सर्विसेज और ऑयल एंड गैस कंपनियां शामिल नहीं हैं, जो अलग-अलग रेवेन्यू मॉडल को फॉलो करती हैं।
त्योहारी सीजन होगा अहम
एनालिस्ट्स को कंज्यूमर गुड्स की कंपनियों के लिए उम्मीद से थोड़े कमजोर नतीजे आने की उम्मीद है, जिसमें शहरी मांग में कमी के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में पॉजिटिव ग्रोथ देखने को मिल सकती है। त्योहारी सीजन रिकवरी के लिए अहम होगा। कमोडिटी की बढ़ती लागत के कारण कंपनियां कीमतों में बढ़ोतरी पर विचार कर सकती हैं, जिससे वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में रेवेन्यू ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा। इस बीच, ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स की तेज ग्रोथ पूरे इंडस्ट्री में ट्रेडिशनल ट्रेड ग्रोथ को चुनौती दे रही है।
FMCG सेक्टर का कैसा रहा प्रदर्शन
शहरी FMCG मांग में कमी और ग्रामीण क्षेत्रों में धीमी रिकवरी के बीच HUL के Q2 नेट प्रॉफिट में 2.4 फीसदी की गिरावट आई, जबकि रेवेन्यू में 2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। वॉल्यूम ग्रोथ 3 फीसदी रही। अगर कमोडिटी की कीमतें स्थिर रहती हैं, तो कंपनी को कम सिंगल-डिजिट प्राइस में बढ़ोतरी की उम्मीद है। DMart की पैरेंट एंटिटी एवेन्यू सुपरमार्ट्स को भी सेम-स्टोर सेल्स ग्रोथ में कमी का सामना करना पड़ा, जो ब्लिंकिट और स्विगी इंस्टामार्ट जैसे क्विक कॉमर्स प्लेयर्स से बढ़ते कंपटीशन के कारण हुआ।
ऑटो सेक्टर पर भी दबाव
इस बीच, मारुति सुजुकी ने दूसरी तिमाही के नेट प्रॉफिट में 17 फीसदी की गिरावट दर्ज की, जो त्योहारी बिक्री में नरमी, अधिक इन्वेंट्री और 10 लाख रुपये से कम के सेगमेंट में कमजोर मांग के कारण हुआ। चेयरमैन आरसी भार्गव ने इस सेगमेंट में गिरावट को एक प्रमुख चिंता के रूप में बताया। इसके साथ ही टैक्स बेनिफिट में कमी और डेट म्यूचुअल फंड पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन में बदलाव से भी प्रॉफिट में कमी आई।
IT फर्मों के नतीजे मजबूत, लेकिन..
आईटी फर्मों ने मजबूत नतीजे पेश किए, लेकिन वे सतर्कता के साथ आशावादी बने रहे, जो कि अनिश्चितताओं को दिखाता है। हालांकि डिस्क्रेशनेरी स्पेंडिंग पूरी तरह से नहीं बढ़ा है, लेकिन मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की एक रिपोर्ट में मॉडर्नाइजेशन और सेलेक्टिव डिस्क्रेशनेरी स्पेंडिंग में धीरे-धीरे बढ़ोतरी की उम्मीद जताई गई है, साथ ही अमेरिकी बैंकिंग रिकवरी में भी तेजी जारी है।
हेल्थकेयर, मैन्युफैक्चरिंग और ERP मॉडर्नाइजेशन में भी ग्रोथ की उम्मीद है, क्योंकि क्लाइंट कॉस्ट कटिंग से बचत को फिर से निवेश कर रहे हैं। हालांकि, कुछ सेक्टर्स और रीजन नरम बने हुए हैं: कम्युनिकेशन और हाई-टेक में वृद्धि धीमी रही, यूरोपीय ऑटो की कमजोरी ने मैन्युफैक्चरिंग को प्रभावित किया।
सीमेंट और केमिकल कंपनियों पर प्राइसिंग प्रेशर
सीमेंट कंपनियों ने प्राइसिंग प्रेशर के कारण धीमी वॉल्यूम ग्रोथ और रियलाइजेशन में गिरावट देखी। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स ने ऑपरेटिंग प्रॉफिट के अनुमानों को पूरा नहीं किया, कच्चे माल की लागत में उतार-चढ़ाव के कारण C&W में मार्जिन प्रभावित हुआ।
केमिकल कंपनियों को भी प्राइसिंग प्रेशर का सामना करना पड़ा, साथ ही एंड-यूज इंडस्ट्रीज में सीमित रिकवरी हुई। एनालिस्ट्स ने कहा कि केमिकल कंपनियों के मैनेजमेंट को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में पहली छमाही की तुलना में सुधार होगा, हालांकि ग्रोथ गाइडेंस अस्पष्ट बना हुआ है।
कमजोर नतीजों पर एक्सपर्ट्स की राय
वेल्थमिल्स सिक्योरिटीज में इक्विटी स्ट्रैटेजी के डायरेक्टर क्रांती बाथिनी ने कहा कि दूसरी तिमाही की आय और मैनेजमेंट की टिप्पणियां बाजारों के लिए निराशाजनक रहीं। रेवेन्यू में नरमी का कारण आम चुनाव, अनियमित मानसून और कई राज्यों में बाढ़ को माना जा सकता है, जिससे मांग में कमी आई है। इसके अलावा, सरकार के कैपिटल एक्सपेंडिचर में कमी और आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती करने में विफलता ने भी सेंटीमेंट को और कमजोर किया है।