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सेंसेक्स का प्राइस टू अर्निंग मल्टीपल 12 महीने में सबसे कम

सूचकांक का वर्तमान मूल्यांकन 10 साल के औसत मूल्यांकन 24.1 गुना से करीब 5 फीसदी कम है, जिसे बहुत सामान्य नहीं कहा जा सकता। पिछले 10 साल में सेंसेक्स का मूल्यांकन 10 साल के औसत से नीचे केवल 19 मौकों पर गया है।

दूसरी ओर सितंबर तिमाही में सेंसेक्स कंपनियों की प्रति शेयर आय (ईपीएस) 1.2 फीसदी बढ़ी है। सूचकांक की ईपीएस 3,446.8 रुपये रही, जो सितंबर के अंत में 3,406.1 रुपये थी।

बेंचमार्क सेंसेक्स आज 1.18 फीसदी टूटकर 78,782 पर बंद हुआ। शुक्रवार को यह 79,724 पर बंद हुआ था। अतीत में इसके पीई मल्टीपल को देखते हुए सेंसेक्स का वर्तमान मूल्यांकन निचले स्तर पर है।

उदाहरण के लिए पिछले 5 साल में सूचकांक का पीई मल्टीपल सबसे कम 19 गुना (कोविड के दौरान) और सबसे अधिक 34.4 गुना रहा है। जब भी सूचकांक का पीई मल्टीपल 10 साल के औसत से नीचे आया है, सूचकांक ने अच्छी वापसी की है, जैसे कि 2016, 2020, 2022 और 2023 में।
हालांकि मूल्यांकन घटने के बावजूद बाजार के विश्लेषकों को फिलहाल तेजी की उम्मीद नहीं है।

सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी में शोध एवं इक्विटी स्ट्रैटजी के सह-प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘बीते समय की तुलना में मौजूदा मूल्यांकन आकर्षक लग सकता है मगर कंपनियों की आय से तुलना करें तो वर्तमान पीई अभी भी ऊंचा बना हुआ है। चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में लगातार दूसरी तिमाही में कंपनियों की आय वृद्धि कम रही है और आगे आय के अनुमान भी नरम दिख रहे हैं। इससे आगे शेयर भाव और इक्विटी मूल्यांकन में और कमी आने के आसार हैं।’

सिन्हा ने बताया कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अभी तक जितनी कंपनियों के नतीजे जारी किए हैं, उनका कुल मुनाफा पिछले साल की समान तिमाही की तुलना में करीब 4 फीसदी कम है। गैर-वित्तीय कंपनियों का शुद्ध मुनाफा पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही की तुलना में 22 फीसदी कम है।

मौजूदा दौर 2015 और 2016 की अवधि जैसा ही है। उस दौरान कॉरपोरेट आय में लगातार गिरावट आई थी। इसलिए जनवरी 2015 से नवंबर 2016 के बीच सेंसेक्स के अंतर्निहित ईपीएस में 15 फीसदी की गिरावट आई थी। इससे सेंसेक्स में फरवरी 2015 के सर्वोच्च स्तर से करीब 24 फीसदी की गिरावट आई।

विश्लेषकों का मानना है कि इस बार भी उपभोक्ता मांग में कमी के कारण कॉरपोरेट आय में अधिक गिरावट दिख सकती है। उपभोक्ता मांग भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा घटक है। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में डूबते ऋण की समस्या बढ़ रही जबकि वह भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा घटक है।

मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज के विश्लेषकों ने वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के नतीजों की अंतरिम समीक्षा में कहा है, ‘कंपनियों की आय वृद्धि घटी है। हमारे नमूने में शामिल केवल 62 फीसदी कंपनियों का मुनाफा ही अनुमान के अनुरूप या उससे अधिक रहा है। खपत मांग कमजोर बनी हुई है जबकि बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा (बीएफएसआई) की संपत्तियों की गुणवत्ता पर दबाव दिख रहा है।’

हाल के हफ्तों में इक्विटी मूल्यांकन में गिरावट के बावजूद शेयर बाजार के लिए सकारात्मक घटनाक्रम के अभाव के कारण गिरावट का जोखिम बढ़ गया है।

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