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शेयर बायबैक के टैक्स के नए नियमों का असर शेयरहोल्डर्स और कंपनियों पर किस तरह पड़ेगा?

शेयर बायबैक से जुड़े टैक्स के नए नियम 1 अक्टूबर से लागू हो गए हैं। नए नियमों का ऐलान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यूनियन बजट में किया था। नए नियम में टैक्स का बोझ कंपनी की जगह अब शेयरहोल्डर्स पर आ गया है। अब शेयर बायबैक से होने वाले गेंस को डिविडेंड माना गया है। इसका मतलब है कि अब इस पर शेयरहोल्डर के टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगेगा। पहले इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 115क्यूए के तहत कंपनी को टैक्स चुकाना पड़ता था। उसे करीब 23.29 फीसदी टैक्स देना पड़ता था।

टैक्स चुकाने की जिम्मेदारी शेयरहोल्डर्स पर 

एक्सपर्ट्स का कहना है कि नए नियम में शेयरहोल्डर्स की टैक्स लायबिलिटी बढ़ गई है। कई शेयहोल्डर्स के लिए टैक्स रेट पहले कंपनियों की तरफ से चुकाए जाने वाले 23.29 फीसदी से ज्यादा हो गया है। सबसे ज्यादा टैक्स स्लैब में आने वाले लोगों को शेयर बायबैक से होने वाले मुनाफे पर 30 फीसदी से ज्यादा टैक्स चुकाना होगा। इस वजह से ऐसे शेयरहोल्डर्स के लिए शेयर बायबैक का अट्रैक्शन खत्म हो गया है।

 

टैक्स की वजह से रिटर्न घट जाएगा

शेयर बायबैक पर टैक्स चुकाने की जिम्मेदारी शेयरहोल्डर्स पर आ जाने की वजह से टैक्स के बाद उसका रिटर्न घट गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब शेयरहोल्डर्स के लिए शेयर बायबैक के मुकाबले डिविडेंड ज्यादा फायदेमंद है। इस वजह से कई इनवेस्टर्स अपनी इनवेस्टमेंट स्ट्रेटेजी में भी बदलाव कर सकते हैं। वे उन कंपनियों के शयरों में निवेश में दिलचस्पी दिखा सकते हैं, जो ज्यादा डिविडेंड देती हैं।

कंपनियां टैक्स पेमेंट के पैसे का दूसरी जगह करेंगी इस्तेमाल

नए नियमों का असर कंपनियों पर भी पड़ेगा। अब कंपनियां शेयर बायबैक पर टैक्स पेमेंट के पैसे का इस्तेमाल दूसरी जगह कर सकती हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंपनियों अब इस पैसे का इस्तेमाल अपनी ग्रोथ स्ट्रेटेजी के लिए कर सकती हैं। वे बिजनेस के विस्तार, अधिग्रहण और नए प्रोडक्ट के डेवलपमेंट पर यह पैसा खर्च कर सकती हैं। इससे उनकी बैलेंसशीट में भी मजबूती आएगी। क्रेडिट रेटिंग और फाइनेंशियल रेशियो में भी इम्प्रूवमेंट आ सकता है।

कंपनियों की बैलेंसशीट पर पड़ेगा असर

कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि शेयर बायबैक शेयरहोल्डर्स के लिए फायदेमंद नहीं रह जाने के चलते कंपनियां अब कंपनियां इस पर होने वाले खर्च का इस्तेमाल आरएंडडी, टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन और कर्ज चुकाने के लिए कर सकती हैं। इसका कंपनी की वित्तीय सेहत पर भी अच्छा असर पड़ेगा।

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