आरबीआई ने 9 अक्टूबर को रेपो रेट में बदलाव नहीं किया। केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सुबह 10 बजे मॉनेटरी पॉलिसी के नतीजे पेश किए। आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक 7 अक्टूबर को शुरू हुई थी। इस बैठक में रेपो रेट को 6.5 फीसदी पर बनाए रखने का फैसला लिया गया। केंद्रीय बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का फैसला अनुमान के मुताबिक है। एक्सपर्ट्स ने अक्टूबर की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में रेपो रेट में किसी तरह का बदलाव नहीं होने का अनुमान व्यक्त किया था। यह लगातार 10वीं बार है जब आरबीआई ने रेपो रेट में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है।
इनफ्लेशन पर आरबीआई का फोकस बरकरार
पिछले महीने अमेरिका के केंद्रीय बैंक Federal Reserve ने इंटरेस्ट रेट में 50 बेसिस प्वाइंट्स की कमी थी। इससे इंडिया सहित दूसरे देशों में इंटरेस्ट रेट में कमी होने की उम्मीद बढ़ गई थी। लेकिन, RBI ने अगस्त में अपनी मॉनेटरी पॉलिसी (Monetary Policy) में यह साफ कर दिया था कि इंटरेस्ट रेट में कमी का उसका फैसला घरेलू इकोनॉमी की स्थितियों पर निर्भर करेगा। केंद्रीय बैंक ने पिछले कई महीनों से रिटेल इनफ्लेशन को काबू में करने पर अपना फोकस बनाए रखा है। इसके नतीजे दिखे हैं। रिटेल इनफ्लेशन आरबीआई के 4 फीसदी के टारगेट के करीब आ गया है।
दिसंबर में आरबीआई रेपो रेट घटा सकता है
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर सितंबर और अक्टूबर में रिटेल इनफ्लेशन काबू में बना रहता है तो केंद्रीय बैंक दिसंबर में इंटरेस्ट रेट में कमी का फैसला ले सकता है। आरबीआई हर दो महीने पर अपनी मॉनेटरी पॉलिसी की समीक्षा करता है। अक्टूबर के बाद उसकी अगली मॉनेटरी पॉलिसी दिसंबर में आएगी। इसमें रेपो रेट में कमी हो सकती है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि आरबीआई रेपो रेट में एक बार में 50 बेसिस प्वाइंट्स की कमी करने के बजाय दो बार में 25-25 बेसिस प्वाइंट्स की कमी करेगा।
इकोनॉमी की ग्रोथ पर भी केंद्रीय बैंक की नजरें
इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ आरबीआई के अनुमान से कम रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एक तरफ आरबीआई पर रिटेल इनफ्लेशन का काबू में करने का दबाव है तो दूसरी तरफ आर्थिक वृद्धि दर को बनाए रखने की चिंता है। इंडियन इकोनॉमी पिछले कई साल से दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी बनी रही है। कोविड की महामारी खत्म होने पर इंडियन इकोनॉमी ने जबर्दस्त ग्रोथ दिखाई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसमें सरकार और आरबीआई की पॉलिसी का बड़ा हाथ है। आरबीआई की मॉनेटी पॉलिसी की तारीख दुनियाभर में हो चुकी है।