लगातार दो माह तक खरीदार रहने के बाद अप्रैल में विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल बन गए और उन्होंने 8,700 करोड़ रुपए मूल्य के शेयर बेचे. मॉरीशस के साथ कर संधि में संशोधन से उपजी चिंताओं और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल लगातार बढ़ने से रुख में यह बदलाव देखने को मिला. डिपॉजिटरी के आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने मार्च में 35,098 करोड़ रुपए और फरवरी में 1,539 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया था. लेकिन अप्रैल में यह रुझान पलट गया और FPI ने 8,700 करोड़ रुपए की शुद्ध निकासी कर ली.
2024 के पहले 4 महीनों में FPI का कैसा रहा हाल?
वर्ष 2024 के पहले चार महीनों में भारतीय शेयर बाजार में FPI का कुल शुद्ध निवेश 2,222 करोड़ रुपए और ऋण या बॉन्ड बाजार में 44,908 करोड़ रुपए रहा है. आंकड़ों के मुताबिक, FPI ने भारतीय इक्विटी से 8,671 करोड़ रुपए की शुद्ध निकासी की. स्मॉलकेस प्रबंधक और फिडेलफोलियो के संस्थापक किसलय उपाध्याय ने कहा कि विदेशी पूंजी की यह निकासी मार्च में भारी निवेश के बाद संतुलन साधने, लंबी अवधि के बॉन्ड में अल्पकालिक लाभ मिलने की संभावना और चुनावों के पहले निवेशकों के ‘इंतजार करने और नजर रखने’ का रुख अपनाने का नतीजा है.
मॉरीशस टैक्स ट्रीटी का भी असर
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के शोध प्रबंधक एवं सह निदेशक हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि मॉरीशस के रास्ते भारत में आने वाले निवेश से संबंधित कर संधि में संशोधन भी विदेशी निवेशकों को थोड़ा परेशान कर रहा है. इसके अलावा अनिश्चित वृहद-आर्थिक स्थिति और ब्याज दर दृष्टिकोण के साथ वैश्विक बाजारों से कमजोर संकेत उभरते बाजारों के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. इसके अलावा तेल जैसे जिंसों की कीमतों में वृद्धि और अमेरिका में महंगाई की ऊंची दर ने नीतिगत दर में फेडरल रिजर्व के कटौती करने की उम्मीदें कम कर दी हैं. इससे बॉन्ड प्रतिफल में तेजी आई है जो FPI को लुभा रही है.
FPI की बिक्री को DII, रीटेल संभाल रहे हैं
सकारात्मक कारक यह है कि शेयर बाजारों में सभी FPI की बिक्री घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII), एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स) और खुदरा निवेशकों द्वारा अवशोषित की जा रही है. यही एकमात्र कारक है जो FPI की बिक्री पर हावी हो सकता है. समीक्षाधीन महीने के दौरान FPI ने शेयरों के अलावा ऋण बाजार से भी 10,949 करोड़ रुपए निकाले.
अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में तेजी का दिख रहा असर
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा, ‘‘‘इक्विटी और ऋण बाजार दोनों में नए सिरे से FPI बिक्री के पीछे वजह अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल का बढ़ना है. अमेरिकी 10-वर्षीय बॉन्ड पर प्रतिफल लगभग 4.7 फीसदी है जो विदेशी निवेशकों के लिए बेहद आकर्षक है.’’ इस निकासी से पहले विदेशी निवेशकों ने मार्च में 13,602 करोड़ रुपए, फरवरी में 22,419 करोड़ रुपए और जनवरी में 19,836 करोड़ रुपए का निवेश किया था. इस तेजी को जेपी मॉर्गन सूचकांक में भारत के सरकारी बॉन्ड को जगह देने की घोषणा से दम मिला.