भारतीय निवेशकों पर इस समय ऐसा लग रहा है, जैसे मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा है। यहां तक कि SEBI भी उन दबाव बना रहा है और उनमें अनुशासन लाने के लिए F&O सेगमेंट पर शिंकजा कस रहा है। हालांकि फिलहाल यह बाजार के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात नहीं है। बाजार के लिए असल चिंता है मिडिल ईस्ट में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता तनाव, जिसने क्रूड ऑयल के मार्केट में खलबली मचा दी है। साथ ही चीन भी एक नई चुनौती बनकर उभरा है। इस सबके बीच एक्सपर्ट्स को RBI में उम्मीद की किरण दिख रही है। क्या है यह उम्मीद और बाजार के सामने किस किस तरह के खतरे हैं, आइए जानते हैं
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव से शेयर बाजार सहमा हुआ है। बाजार को डर है कि अगर दोनों देशों के बीच बड़े स्तर पर युद्ध हुआ तो ग्लोबल स्तर पर व्यापर और सप्लाई में दिक्कतें आएंगी। इसका सबसे पहला असर क्रूड ऑयल पर पड़ेगा और ये अभी से दिखने भी लगा है। पिछले कुछ दिन में ही क्रूड ऑयल की कीमतें लगभग 7% तक बढ़ गई हैं। अब इसके दाम के 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने की भविष्यवाणियां की जा रही है, जो भारत जैसे क्रूड ऑयल खरीदने करने वाले देशों के लिए चिंता की बात है।
युद्ध से क्रूड ऑयल का पूरा मार्केट चरमरा सकता है। उससे भी बुरी बात यह होगी कि ईरान गुस्से में आकर होर्मुज स्ट्रेट के रास्ते को बंद कर दे। यह एक संकरा सा समुद्री रास्ता है, जहां से ईरान, ईराक और सऊदी अरब जैसे अपना एक्सपोर्ट करते हैं। होर्मुज स्ट्रेट के रास्ते से दुनिया के लगभग 20% तेल का व्यापार होता है, और इसके बंद होने से पूरी दुनिया की सप्लाई चेन चरमरा सकती है। तेल के दाम बढ़ने का सीधा असर भारत के इंपोर्ट बिल, महंगाई दर और फ्यूल की कीमतों पर पड़ेगा। इन सभी का शेयर बाजार नेगेटिव असर हो सकता है।
यही पर भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका अहम हो जाती है। क्योंकि ये सभी कारण मिलकर बाजार को उतना प्रभावित नहीं कर सकते, जितना RBI अपने फैसले से कर सकती है। RBI के मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी की अगले हफ्ते 9 अक्टूबर को बैठक होने वाली है। हाल ही में RBI ने बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाने की कोशिशें की हैं। लेकिन मौजूदा ग्लोबल हालातों को देखते हुए अधिकतर इकोनॉमिस्ट का यही मानना है ब्याज दरों में किसी भी तरह कटौती की उम्मीद करना अभी सही नहीं होगा। यहां तक कि RBI अपनी पॉलिसी की भाषा में भी किसी तरह की नरमी नहीं दिखाएगा। उनका यह भी कहना है कि भारत इन स्थितियों से निपटने के लिए पहले से बेहतर तैयार है और इसीलिए मिडिल ईस्ट का बाजार पर लंबा रहने की उम्मीद नहीं है।
अब बात करते हैं चीन की। शी जिनपिंग के नए आर्थिक ऐलानों ने वहां के शेयर बाजार में जान फूंक दी है। यहां तक कि उसने विदेशी निवेशकों को भी चीन के प्रति अपना विचार बदलने के मजबूर किया है। सबसे अहम बात यह है कि चीन ने आगे भी कई आर्थिक पैकेज के ऐलान करने का दरवाजा खुला रखा है, जिसने उसके बाजार को फोकस में ला दिया है। चूंकि चीन का बाजार इस समय भारत के मुकाबले काफी सस्ता है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि विदेशी निवेशक भारत से निकलकर चीन की ओर रुख कर सकते हैं।
ऐसे में शेयर बाजार की मौजूदा गिरावट रिटेल निवेशकों के धैर्य की परीक्षा ले सकती है। पिछले कुछ समय से रिटेल निवेशकों ने बाजार को संभालने में अहम भूमिका निभाई है। अगर ये भी पीछे हटते हैं, तो बाजार में करेक्शन का दौर शुरू हो सकता है। यह करेक्शन तब तक रह सकता है, चीन को लेकर विदेश निवेशकों में उत्साह कम न हो जाए। हालांकि अभी राहत की बात यह है कि विदेशी फंड्स अभी चीन के उपायों से बड़े स्तर पर उत्साहित नहीं है। शायद वे पहले इन उपायों का असर देखना चाहते हैं।
लेकिन इस पूरे मामले के चलते बाजार को एक पुरानी हकीकत का फिर से रूबरू करना पड़ रहा है। वो हकीकत यह है कि विदेशी निवेशकों के लिए लंबे समय से चीन ही फेवरेट मार्केट रहा है। भारत को वो लंबे समय से प्लस वन के तौर पर देखते रहे हैं। ऐसे में अगर चीजें उनके फेवरेट मार्केट के पक्ष में जाती हैं, तो उनके लिए प्लस वन को छोड़ना आसान विकल्प हो सकता है। ऐसे में फिलहाल निवेशक चाइनीज मार्केट और मिडिल ईस्ट की दोधारी तलवार के बीच फंसे दिखाई दे रहे हैं।