बजाज हाउसिंग फाइनेंस (बीएचएफ) ने 6,650 करोड़ रुपये का आईपीओ पेश किया था। कंपनी को 3.2 लाख करोड़ रुपये के शेयरों के लिए बोली मिली। क्वालिफायड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (क्यूआईबी) का कोटा 209 गुना सब्सक्राइब हुआ। 16 सितंबर को प्रति शेयर 70 रुपये के इश्यू प्राइस के मुकाबले बीएसई और एनएसई पर कंपनी के शेयर 150 रुपये पर लिस्ट हुए। कारोबार के अंत में शेयर 165 रुपये पर क्लोज हुए। इस आईपीओ में निवेशकों ने जबर्दस्त दिलचस्पी दिखाई। हालांकि, इससे पहले भी आईपीओ में निवेशकों की जबर्दस्त दिलचस्पी देखने को मिली है। एसएमई आईपीओ में भी निवेशक खूब दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे कुछ स्टॉक्स में बुलबुला बनने के आसार दिख रहे हैं।
वैल्यूएशन बढ़ने की बड़ी वजह ज्यादा लिक्विडिटी
सवाल है कि क्या निवेशकों को मार्केट में इस बुलबुले को देखते हुए सावधानी बरतनी चाहिए? इस साल का जवाब ना या हां में देना मुश्किल है। कुछ डेटा को समझने की कोशिश करते हैं। पिछले 10 साल में Nifty कंपनियों की अर्निंग्स की कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) 9.5 फीसदी रही है। इसके मुकाबले निफ्टी का औसत रिटर्न 12.8 फीसदी रहा है। इसका मतलब है कि निफ्टी कंपनियों की अर्निंग्स की ग्रोथ के मुकाबले निफ्टी का रिटर्न ज्यादा रहा है। इसकी वजह बढ़ती लिक्विडिटी है। इंडिया में इस ट्रेंड के आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। इसकी वजह यह है कि परिवारों की सेविंग्स का पैसा अब शेयरों में जा रहा है।
कंई कंपनियों की वैल्यूएशन फंडामेंटल्स के मुकाबले ज्यादा
क्या ऐसे में कम पी/ई वाले स्टॉक्स में निवेश करना ठीक रहेगा? कई बार कम पी/ई को किसी शेयर की कम वैल्यूएशन का संकेत माना जाता है और ज्यादा पीई को उसके मंहगा होने का संकेत माना जाता है। लेकिन, हर मामले में यह सिद्धांत काम नहीं करता। कई बार कुछ बिजनेस की वैल्यूएशन उसके फंडामेंटल्स के मुकाबले बढ़ जाती है। उसके शेयर के प्राइस प्रीमियम पर उपलब्ध होते हैं। इसकी वजह यह है कि ज्यादा संख्या में निवेशक उस स्टॉक्स में निवेश करना चाहते हैं। इसी तरह अच्छी अर्निंग्स ग्रोथ के बावजूद कम पी/ई का मतलब कंपनी के बिजनेस में निवेशकों का कम भरोसा हो सकता है।
अर्निंग्स ग्रोथ जारी रहने पर वैल्यूएशन हाई बनी रहती है
ऐसे कई स्टॉक्स हैं, जिनकी कीमतें साफ तौर पर ज्यादा होती हैं। दरअसल, कई वजहों से निवेशक ऐसे शेयरों को खरीदना चाहते हैं। इनमें कंपनी का अच्छा मैनेजमेंट, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, टेक्नोलॉजी का ज्यादा इस्तेमाल जैसी वजहें हो सकती हैं। अगर किसी कंपनी की अर्निंग्स बढ़ रही है तो उसके शेयरों की रेटिंग घटने की उम्मीद नहीं होती है। ऐसे कई स्टॉक्स हैं जो आज से 9 साल पहले भी महंगे माने जाते थे और आज भी महंगे बने हुए हैं।
अच्छी क्वालिटी वाली कंपनियों के शेयर महंगे
शेयरों की रेटिंग तब घटाई जाती है जब अर्निंग्स के मामले में कंपनी का प्रदर्शन खराब रहता है। खासकर जब अर्निंग्स की ग्रोथ लगातार घट रही होती है। इसलिए निवेशकों को भविष्य में होने वाली अर्निग्स पर फोकस करने की जरूरत है न कि ज्यादा वैल्यूएशन की वजह से निराश होने की। निवेशक का फोकस अच्छी क्वालिटी के शेयरों में निवेश पर होना चाहिए। गवर्नेंस का हाई स्टैंडर्ड, खास बिजनेस मॉडल, मजबूत मैनेजमेंट जैसी चीजें किसी कंपनी को उस कैटेगरी में जगह बनाने में मदद करती हैं, जिसमें निवेशक ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। निवेशक को लंबी अवधि में कंपाउंडिंग के फायदे के लिए अर्निंग्स ग्रोथ पर ध्यान रखना चाहिए।