अमेरिका ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में अप्रत्यक्ष तरीके से रूस की मदद के मामले में यूरोप और एशिया की कई कंपनियों और लोगों पर नई पाबंदियों का ऐलान किया है। यह कार्रवाई उन कंपनियों पर की गई है, जिन पर रूसी सैन्य गतिविधियों के लिए प्रोडक्ट और सर्विसेज मुहैया कराने का आरोप है। अमेरिकी विदेश विभाग ने खास तौर पर चीन से रूस को एक्सपोर्ट किए जाने वाले ऐसे आइटम को लेकर चिंता जताई है, जिनका मकसद सैन्य मकसद के लिए किया जा सकता है। हालिया पाबंदी के तहत चीन की उन कंपनियों पर कार्रवाई की गई है, जिन्होंने रूस को शिपिंग मशीन टूल्स और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स का एक्सपोर्ट किया। अमेरिका ने इस साल जून में भी चीन की कुछ ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई की थी, जिन्होंने रूस को सेमीकंडक्टर बेचा था।
रूस से रिश्ता रखने वाली इन कंपनियों पर कार्रवाई के अलावा अमेरिका ने उन देशों पर भी कार्रवाई की चेतावनी दी है, जो अपने देशों में रूसी बैंकों की शाखाएं खोलने की इजाजत देंगे। अमेरिका का मानना है कि इस तरह की शाखाओं से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की युद्ध की फाइनेंसिंग की कोशिशों को बढ़ावा मिल सकता है। अमेरिका का कहना है कि इन शाखाओं को खोलने की अनुमति देने वाले देशों को पाबंदियों का सामना करना पड़ सकता है।
क्या पाबंदियों से वाकई में परेशानी होगी?
चीन ने इन पाबंदियों की आलोचना करते हुए कहा कि वह अपने कारोबारों की सुरक्षा के लिए हरमुमकिन उपाय करेगा। रूस अब तक अपने नए दोस्त चीन के साथ मिलकर अमेरिकी पाबंदियों के असर से बचने में सक्षम रहा है। जब अमेरिका ने यूक्रेन पर हमले के बाद प्रमुख रूसी बैंकों को डॉलर का इस्तेमाल करने से रोका, तो चीन और अमेरिका ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि दोनों देशों के बीच भुगतान में किसी तरह की दिक्कत नहीं हो।
दोनों देश ऐसा फाइनेंशियल और ट्रेड सिस्टम डिवेलप करने की कोशिश कर रहे हैं, जिस पर अमेरिकी पाबंदियों की छाया नहीं पड़े। इसके तहत ट्रेड और फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन को बिना किसी बाधा के जारी रखने के लिए नॉन-डॉलर पेमेंट सिस्टम बनाने की भी बात है। इसके अलावा, भारत और रूस अपनी-अपनी करेंसी द इंडियन रूपी (INR) और द रसियन रूबल (RUB) के लिए ‘डायनामिक रेफरेंस रेट’ के प्रस्ताव पर भी विचार कर रहे हैं। प्रस्तावित सिस्टम का मकसद दोनों देशों के बीच फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन का सिलसिला जारी रखना और रूस पर अमेरिकी पाबंदियों के असर को कम करना है।