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SEBI प्रमुख फिर से सवालों के घेरे में, हिंडनबर्ग के बाद अब इस नई रिपोर्ट से बढ़ेगी टेंशन?

 

सेबी (SEBI) की मुखिया माधवी पुरी बुच (Madhabi Puri Buch) फिर से सवालों के घेरे में हैं। माधवी पुरी बुच पर सेबी के अपने सात साल के कार्यकाल के दौरान कंसल्टेंसी फर्म से रेवन्यू कमाना जारी रखा था। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी। माधवी पुरी बुच ने 2017 में सेबी को ज्वाइन किया था। और मार्च 2022 में उन्हें सेबी प्रमुख बनाया गया था।

रॉयटर्स ने कंपनियों के रजिस्ट्रार के यहां उपलब्ध कागजों की जांच में पाया है कि अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड से पिछले सात सालों में 442,025 डॉलर कमाए थे। यह सेबी के संभावित नियमों का उल्लंघन है। कंपनी में बुच की हिस्सेदारी 99 प्रतिशत थी। रॉयटर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि उनके द्वारा देखे गए दस्तावेजों के अनुसार इन रेवन्यू का अडानी ग्रुप से लिंक करने की कोई जानकारी सामने नहीं आई।

क्या कहते हैं सेबी के नियम?

सेबी के 2008 के नियमों के अनुसार कोई भी अधिकारी ऐसा पोस्ट नहीं होल्ड कर सकता है जिससे उससे प्रॉफिट हो रहा हो या फिर सैलरी मिल रही हो या अन्य पेशेवर शुल्क लिया जा रहा है। माधवी पुरी बुच ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद कहा था कि कल्सटेंसी फर्म की जानकारी सेबी को दी गई थी। 2019 में उनके पति यूनिलीवर से रिटायर होने के बाद इस कंसल्टेंसी बिजनेस को संभाल रहे थे। बता दें, रॉयटर्स की रिपोर्ट पर अभी तक माधवी पुरी बुच या सेबी का कोई बयान नहीं आया है।

क्या है मामला?

अमेरिकी शॉर्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में 2 कंसल्टेंसी फर्म की बात कही थी। रिपोर्ट के अनुसार सिंगापुर की अगोरा पार्टनर्स और इंडिया की अगोरा एडवाइजरी का संचालन माधवी पुरी बुच और उनके पति कर रहे थे। हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में सिंगापुर कंपनी रिकॉर्ड के आधार पर कहा था कि माधवी पुरी बुच ने अगोरा पार्टनर्स की अपनी पूरी हिस्सेदारी को मार्च 2022 में अपनी पति को ट्रांसफर कर दिया था। लेकिन उनकी इंडियन कंसल्टेंसी फर्म में हिस्सेदारी थी।

माधवी पुरी के टीम के सदस्य रहे सुभाष गर्ग ने कही ये बातें

देश के टॉप ब्यूरोक्रेट रहे और माधवी पुर बुच के समय पर सेबी के सदस्य रहे सुभाष चंद्र गर्ग ने इस पूरे प्रकरण को नियमों का गंभीर उल्लघंन बताया है। सेबी बोर्ड ज्वाइन करने के बाद उनके फर्म में हिस्सेदारी रखने को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है। उनके घोषणा के बाद इसे जारी रखने की अनुमति भी नहीं दी जा सकती थी।

नाम ना जाहिर करने की शर्त पर एक व्यक्ति ने रॉटर्स को बताया कि साल भर में एक बार पूरी जानकारी देने की जरूरत थी। लेकिन बोर्ड के सदस्यों की जानकारी ना तो बोर्ड के सामने पेश की गई और नहीं जांच किया गया।

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