फाइनेंस बिल, 2024 में पार्टनरशिप फर्मों और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) के लिए एक अच्छा प्रावधान शामिल है। यह प्रावधान फर्म के वर्किंग पार्टनर्स के रेम्यूनरेशन की लिमिट से जुड़ा है। सरकार ने इस रेन्यूनरेशन की लिमिट बढ़ाने के लिए टैक्स के नियमों में संशोधन किया है। इसका लाभ पार्टनरशिप फर्मों और एलएलपी को मिलेगा। आइए इस संशोधन को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।
किसी पार्टनरशिप फर्म (Partnership Firm) या एलएलपी (LLP) के पार्टनर्स के रेम्यूनरेशन (सैलरी) से जुड़े टैक्स के नियम इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 40 में शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि रेन्यूनरेशन यानी सैलरी का पेमेंट सिर्फ वर्किंग पार्टनर्स को किया जा सकता है। रेम्यूनरेशन का अमाउंट और उसके कैलकुलेशन का तरीका पार्टनरशिप डीड में एप्रूव्ड होना चाहिए। पार्टनर की सैलरी की लिमिट भी सेक्शन 40 में बताई गई है। अगर कोई पार्टनरशिप फर्म या एलएलपी इस लिमिट से ज्यादा पेमेंट बतौर सैलरी पार्टनर्स को करता है तो उसे इस खर्च पर डिडक्शन करने की इजाजत नहीं होगी। उसे इस पर टैक्स चुकाना होगा।
पहले लिमिट क्या थी?
1. पहले 3,00,000 रुपये के बुक ऑफ प्रॉफिट का 90 फीसदी और लॉस की स्थिति में 1,50,000 रुपये, दोनों में से जो ज्यादा होगा।
2. बाकी बुक प्रॉफिट के 60 फीसदी के रेट से।
नियम में संशोधन के बाद कितनी हो गई है लिमिट?
फाइनेंस बिल, 2024 में पार्टनरशिप फर्म में वर्किंग पार्टनर्स की सैलरी के पेमेंट के लिए उपर्युक्त उस लिमिट को बढ़ा दिया गया है, जिस पर उसे डिडक्शन की इजाजत है। फाइनेंस बिल में बेस लिमिट को प्रॉफिट के 3 लाख से बढ़ाकर 6 लाख रुपये कर दिया गया है और रेम्यूनरेशन की लिमिट को बढ़ाकर 3,00,000 रुपये कर दिया गया है।
संशोधन के बाद लिमिट निम्नलिखित हो गई है:
1. पहले 6 लाख रुपये के बुक प्रॉफिट का 90 फीसदी या लॉस की स्थिति में 3,00,000 रुपये, दोनों में से जो ज्यादा होगा
2. बाकी बुक प्रॉफिट के 60 फीसदी के रेट से।
उपर्युक्त संशोधन एसेसमेंट ईयर 2025-26 से लागू होगा। इसका मतलब है कि यह करेंट फाइनेशियल ईयर से लागू हो जाएगा। चूंकि, ज्यादातर पार्टनरशिप फर्म की पार्टनरशिप डीड में पहले के प्रावधान शामिल हैं, जिससे उन्हें इसमें नए संशोधन के हिसाब से बदलाव करना होगा। इसके लिए उन्हें अपने टैक्स एडवाइजर्स से संपर्क करना चाहिए। यह ध्यान में रखना जरूरी है कि अगर पार्टनरशिप फर्म अपनी पार्टनरशिप डीड में बदलाव नहीं करती है तो वह संशोधित नियम का फायदा नहीं उठा सकेगी।
(लेखक सीए हैं और इनकम टैक्स से जुड़े मामलों के एक्सपर्ट हैं)