Privatisation Plans: मोदी सरकार में अब तक विनिवेश पर जोर रहा है लेकिन अब सामने आ रहा है कि स्ट्रैटेजी में बदलाव हो सकता है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि सरकार की योजना अब 200 से अधिक सरकारी कंपनियों का मुनाफा बढ़ाने की है। इससे पहले सरकार ने वर्ष 2021 में 60 हजार करोड़ डॉलर की सरकारी कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी को निजी हाथों में सौंपने का ऐलान किया था। हालांकि फिर इस साल लोकसभा चुनाव और फिर चुनाव के बाद बीजेपी को पूर्ण बहुमत की बजाय गठबंधन में मोदी सरकार की वापसी के चलते इस योजना को झटका लगा। खास बात ये भी है कि इस साल फरवरी में जो अंतरिम बजट पेश हुआ था, उसमें विनिवेश के आंकड़े नहीं दिए गए थे और यह दस साल से अधिक समय में पहली बार हुआ था।
क्या हो सकता है मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में?
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट 23 जुलाई को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी। सूत्रों के मुताबिक निजीकरण की बजाय अब सरकारी कंपनियों का मुनाफा बढ़ाया जाएगा। इसके लिए इन कंपनियों को उन जमीनों की बिक्री हो सकती है जिनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इसके अलावा उनके एसेट्स का मोनेटाइजेशन हो सकता है। सरकार का लक्ष्य इस वित्त वर्ष 2025 में 2400 करोड़ डॉलर जुटाने की है और फिर इन पैसों को कंपनियों में फिर से निवेश करने की है। इसके अलावा कंपनियों के लिए शॉर्ट टर्म की बजाय पांच साल के परफॉरमेंस और प्रोडक्शन टारगेट फिक्स किए जाएंगे।
इसके अलावा जिन कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक है, उनमें सक्सेशन प्लानिंग लाने की योजना है जिसके तहत 2.30 लाख मैनेजर्स को सीनियर रोल के लिए तैयार करने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी। अभी सरकारी कंपनियों में टॉप एग्जीक्यूटिव्स की सरकार नियुक्ति करती है। सरकार की योजना मैनेजर्स की ट्रेनिंग, कंपनी के बोर्ड में प्रोफेशनलों की नियुक्ति और वित्त वर्ष 2025/26 से हाई परफॉरमेंस के लिए इंसेंटिव लाने की है।
निजीकरण की कोशिश कहां तक सफल रही?
वर्ष 2021 में सरकार ने दो बैंक, एक इंश्योरेंस कंपनी के साथ-साथ स्टील, एनर्जी और फार्मा सेक्टर की घाटे में चल रही कंपनियों को बेचने का ऐलान किया था। हालांकि सिर्फ एयर इंडिया ही टाटा ग्रुप को बेची जा सकी। इसके अलावा एलआईसी में महज 3.5 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री हुई है। कुछ और कंपनियों में भी शेयरों की बिक्री हुई है। सरकार ने कुछ कंपनियों के बिक्री का फैसला भी वापस ले लिया। तेल मंत्री हरदीप पुरा ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारत पेट्रोलियम को बेचने की अब कोई योजना नहीं है क्योंकि इसे जितने में बेचना था, उतना यह मुनाफा कमा ले रही है।
स्ट्रैटेजी में बदलाव की क्या है वजह?
एक तो सरकार के निजीकरण की कोशिशों को अच्छा रिस्पांस नहीं मिला जिसके चलते स्ट्रैटेजी में बदलाव के आसार दिख रहे हैं। इसके अलावा फिच रेटिंग एजेंसी की स्थानीय शाखा इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा का कहना है कि सस्ती कीमत में सरकारी कंपनियों को बेचने के आरोपों से घिरी सरकारी कंपनियों की बिक्री को संसद में पीएम मोदी के कम बहुमत के बाद आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। सुनील के मुताबिक निजीकरण एक राजनीतिक लड़ाई में बदल सकती है जिसकी भरपाई बहुत मुश्किल हो सकती है और उन्हें इसके लिए राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।
सरकारी कंपनियों की कैसी है हैसियत?
निजीकरण और हिस्सेदारी बेचने की कोशिशो में दिक्कतों के बावजूद सुधार की उम्मीद पर पिछले एक साल में सरकारी कंपनियों का ओवरवैल्यूएशन मार्केट वैल्यूएशन दोगुना से अधिक हो गया है। सरकारी कंपनियों को ट्रैक करने वाला BSE PSU Index एक साल में 100 फीसदी बढ़ा है। हालांकि कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटी के संजीव प्रसाद का कहना है कि अधिकतर सरकारी स्टॉक्स के वैल्यूएशन फंडामेंटल से मैच नहीं हो रहे हैं और मौजूदा मार्केट कैप को सही दिखाने के लिए उन्हें अपने कारोबार में ताबड़तोड़ बढ़ोतरी करनी होगी। केयरऐज रेटिंग्स ने पिछले हफ्ते कैलकुलेशन किया था कि अगर सरकारी कंपनियों में सरकार हिस्सेदारी बेचती है तो मौजूदा मार्केट कैप के हिसाब से यह 11.5 लाख करोड़ रुपये जुटा सकती है।