NSE Collateral List: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया। इसमें इंट्राडे या डेरिवेटिव ट्रेडिंग में मार्जिन फंडिंग के लिए कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल होने वाले सिक्योरिटीज की एलिजिबिलिटी को सख्त कर दिया है। इसके अलावा अभी इस लिस्ट में 1730 एलिजिबल सिक्योरिटीज हैं जिसमें से 1010 को बाहर कर दिया गया। बाहर होने वाले स्टॉक्स में अदाणी पावर, यस बैंक, सुजलॉन, भारत डायनेमिक्स और पेटीएम जैसे दिग्गज शेयर हैं। एनएसई का कहना है कि 1 अगस्त से सिर्फ उन्हीं शेयरों को कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा जिनकी पिछले 6 महीने में कम से कम 99 फीसदी दिनों में ट्रेडिंग हुई हो और जिनका इंपैक्ट कॉस्ट 1 लाख रुपये के ऑर्डर वैल्यू पर 0.1 फीसदी तक हो।
अब यहां कई सवाल उठते हैं, जैसे कि एनएसई को यह कदम उठाने की जरूरत क्यों पड़ी, इसका असर क्या होगा, मार्जिन फंडिंग क्या है, शेयरों को गिरवी क्यों रखते हैं, कोलेटरल क्या है और इंपैक्ट कॉस्ट क्या है? इन सभी सवालों के जवाब एक-एक करके यहां दिए जा रहे हैं।
सबसे पहले समझते हैं कि मॉर्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी (MTF) क्या है और ट्रेडिंग के लिए शेयरों को गिरवी रखने की जरूरत क्यों पड़ती है। मार्केटिंग की एक स्ट्रैटेजी है ‘अभी खरीदो, पेमेंट बाद में’, बस इसी तरह से एमटीएफ में भी निवेशकों को ट्रेडिंग के लिए जरूरी पैसों का कुछ हिस्सा ही चुकाना पड़ता है और बाकी पैसा ब्रोकर लोन की तरह दे देती है। जैसे कि मान लें कि 100 रुपये के भाव वाले 1 हजार शेयरों की ट्रेडिंग करनी है तो 1 लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी। अब या तो आप पूरे एक लाख रुपये अपने पास से लगाएं या 30 फीसदी यानी 30 हजार रुपये खुद का लगाएं और बाकी 70 फीसदी यानी 70 हजार रुपये ब्रोकर से लोन के रूप में मिल जाएगा। इस पर ब्रोकर ब्याज वसूलती है।
कोलेटरल का मतलब क्या है?
मार्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी के जरिए ट्रेडर्स या निवेशक अपने पास पड़े पैसों से अधिक वैल्यू के शेयरों को खरीद सकते हैं। इसके लिए ब्रोकर लोन देता है। हालांकि जैसे बैंकों से लोन लेने पर कुछ गारंटी जमा करनी पड़ती है, वैसे ही यहां भी लोन के बदले ब्रोकर पर शेयर या कोई और सिक्योरिटीज गिरवी रखनी पड़ती है। अब मान लेते हैं कि जो शेयर कोलेटरल के तौर पर रखे गए हैं, उसके भाव नीचे आते हैं तो ट्रेडर्स/इनवेस्टर्स को और कोलेटरल देना पड़ेगा या मार्जिन के हिसाब से अपनी पोजिशन हल्की करनी होगी।
इंपैक्ट कॉस्ट क्या है?
एनएसई के सर्कुलर के तहत अदाणी पावर, यस बैंक, सुजलॉन, हुडको, भारत डायनेमिक्स, भारती हेक्साकॉम, आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर, एनबीसीसी, गो डिजिट, टाटा इन्वेस्टमेंट, पेटीएम, आईनॉक्स विंड, ज्यूपिटर वैगन्स, केआईओसीएल, ज्योति सीएनसी ऑटोमेशन, जेबीएम ऑटो, हैटसन एग्रो प्रोडक्ट, तेजस नेटवर्क्स जैसे 1010 स्टॉक्स को 1 अगस्त से कोलेटरल के लिए एलिजिबल स्टॉक्स की लिस्ट से चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाएगा। इस लिस्ट में सिर्फ वे ही शेयर होंगे, जिनकी पिछली 6 महीने में कम से कम 99 फीसदी कारोबारी दिनों में ट्रेडिंग हुई हो। इसके अलावा 1 लाख रुपये के ऑर्डर वैल्यू का इंपैक्ट कॉस्ट 0.1 फीसदी तक हो। इंपैक्ट कॉस्ट किसी शेयर के लिए पहले से तय ऑर्डर साइज पर ट्रांजैक्शन की लागत है।
NSE के फैसले का क्या होगा असर? और क्यों लिया यह फैसला?
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के पूर्णकालिक निदेशक आशीष राठी ने सीएनबीसी-टीवी18 से बातचीत में कहा कि स्टॉकब्रोकर्स का एमटीएफ बुक 73500 करोड़ रुपये से अधिक का है। उनका मानना है कि कोलेटरल लिस्ट में बदलाव से कुछ खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि एमटीएफ स्टॉक्स पर एक्सपोजर यानी कि MTF बुक में कोई बदलाव नहीं होगा और जो बदलाव होगा, वह गिरवी रखे शेयरों पर चरणबद्ध तरीके से पड़ेगा। इसका मतलब हुआ कि ट्रेडर्स/इनवेस्टर्स ने जो शेयर गिरवी रखे हैं, अगर एनएसएई की कोलेटरल एलिबिजल लिस्ट में वे नहीं हैं, तो उसे बदलना होगा। ट्रेडर्स/इनवेस्टर्स इन शेयरों को ब्रोकर के पास गिरवी रखता है और फिर ब्रोकर इसे क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास अकाउंट बैलेंस मेंटेन करने के लिए गिरवी रख देता है।
एनएसई ने यह फैसला यह सुनिश्चित करने के लिए लिया है ताकि सिर्फ हाईली लिक्विड और स्टेबल स्टॉक्स ही कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल हो सकें। इससे क्लियरिंग हाउस और फाइनेंशियल सिस्टम का रिस्क कम होगा।
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