सरकार 200 से ज्यादा सरकारी कंपनियों में जरूरी बदलाव कर उनका मुनाफा बढ़ाने की कोशिश करेगी। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की पहले की पॉलिसी में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। पहले सरकार ने सरकारी कंपनियों के निजीकरण का प्लान बनाया था। सरकार के सूत्रों ने यह जानकारी दी। सरकार ने 2021 में सरकारी कंपनियों के प्राइवेटाइजेश का ऐलान किया था। लेकिन, लोकसभा चुनावों की वजह से यह प्रक्रिया सुस्त पड़ गई थी। लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपने दम पर सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिली। इससे यह माना जा रहा है कि सरकारी कंपनियों के निजीकरण की कोशिश को विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इस महीने की 23 तारीख को यूनियन बजट पेश करेंगी। इसमें सरकारी कंपनियों के बारे में नए प्लान का ऐलान हो सकता है। इनमें इन कंपनियों की उन जमीनों को बेचने का प्रस्ताव होगा, जो बेकार पड़ी हैं। इसके अलावा कुछ एसेट्स का मॉनेटाइजेशन भी कर सकती है। इस मसले से जुड़े दो अफसरों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कुछ मसलों के बारे में बाद में फैसला होगा। सरकार इससे 24 अरब डॉलर रुपये जुटाना चाहती है। इसका इस्तेमाल इन कंपनियों में निवेश के लिए होगा। सरकार सरकारी कंपनियों के लिए पांच साल का प्रोडक्शन और परफॉर्मेंस टारगेट तय कर सकती है।
अधिकारियों ने अपने नाम जाहिर नहीं होने की शर्त पर यह जानकारी दी, क्योंकि उन्हें इस तरह की चर्चा के बारे में बताने की इजाजत नहीं है। इस बारे में पूछने पर फाइनेंस मिनिस्ट्री ने कोई जवाब नहीं दिया। इस साल 1 फरवरी को सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया था। इसमें सरकार ने विनिवेश का कोई टारगेट नहीं दिया था। एक दशक से ज्यादा समय में पहली बार ऐसा हुआ था। एक सूत्र ने बताया कि सरकार अंधाधुंध एसेट बेचने की जगह सरकारी कंपनियों की वैल्यू में इजाफा करना चाहती है।
सूत्रों ने बताया कि सरकार उन कंपनियों के लिए सक्सेशन प्लानिंग शुरू करना चाहती है, जिनमें उसकी 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। साथ ही 2,30,000 मैनेजर्स को प्रशिक्षण देकर सीनियर रोल के लिए तैयार करने का प्लान है। अभी सरकार सरकारी कंपनियों के टॉप एग्जिक्यूटिव्स की नियुक्ति करती है। सरकार ने 2021 में ज्यादातर सरकार कंपनियों को बेचने के प्लान का ऐलान किया था। इनमें दो बैंक, एक इंश्योरेंस कंपनी भी शामिल थे।