हाल में सोशल मीडिया पर एक म्यूचुअल फंड इनवेस्टर का पोस्ट काफी वायरल हुआ था। पिछले वीकेंड यानी 22-23 जून को आई इस पोस्ट में दावा किया गया था कि फिनेटक प्लेटफॉर्म ग्रो (Groww) पर किया गया निवेश फंड हाउस तक नहीं पहुंचा। ग्रो का इस पर कहना था कि किसी तरह का फ्रॉड नहीं हुआ है। फिनटेक प्लेटफॉर्म ने कहा कि ग्राहक का पैसा नहीं कटा और म्यूचुअल फंड ट्रांजैक्शन भी नहीं हुआ।
इस मामले में सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जिसमें वेल्थ-टेक प्लेटफॉर्म पर निवेशकों की चिंताओं को साझा किया गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस घटना से क्या सबक हासिल किया जा सकता है?
मामला क्या है?
Groww के एक यूजर ने 2020 में पराग पारिख म्यूचुअल फंड में निवेश किया था। यूजर के मुताबिक, यह ट्रांजैक्शन सफल रहा और इसे फोलियो नंबर भी मिल गया। हालांकि, हाल में जब रकम को रिडीम करने की कोशिश की गई है, तो यूजर ने पाया कि इस फंड में यूजर के नाम पर कोई इनवेस्टमेंट रजिस्टर्ड नहीं है। बाद में Groww ने इस पर कहा कि समानधान संबंधी कुछ मसले की वजह से ग्राहक का खाता गलत निवेश दिखा रहा था। फिनेटक प्लेटफॉर्म की तरफ से जारी बयान में कहा गया, ‘ग्राहक ने कभी भी यह निवेश नहीं किया था और उनके बैंक खाते से पैसे नहीं कटे थे। असुविधा के लिए हमें खेद है और मामला सुलझा लिया गया है।’
Groww ने कहा, ‘निवेशक क्लेम की गई राशि को लेकर चिंतित नहीं हों, यह सुनिश्चित करने के लिए हमने भरोसे के आधार पर निवेशक को रकम क्रेडिट कर दी है। हमने निवेशक से बैंक स्टेटमेंट भी उपलब्ध कराने को कहा है, ताकि यह पता चल सके कि जो रकम क्लेम की गई है, उसे निवेश किया गया है या नहीं। इससे हमारी जांच प्रक्रिया में मदद मिलेगी और रेगुलेटर्स को भी आधार मिल सकेगा।’
यह कैसे हुआ?
यहां गौर करने वाली पहली बात यह है कि पिछले चार साल में म्यूचुअल फंड से जुड़े नियमों में काफी बदलाव हुए हैं, जब ग्राहक ने निवेश किया था। सेबी के नियमों के मुताबिक, म्यूचुअल फंड स्कीम की यूनिट्स खरीदते वक्त संबंधित NAV (नेट एसेट वैल्यू) तभी लागू होती है, जब म्यूचुअल फंड के बैंक खाते में फंड की उपलब्धता मौजूद हो। म्यूचुअल फंड स्कीम्स में लागू होने वाली NAV खरीदारी की कट-ऑफ टाइमिंग पर आधारित होती है। इससे पहले मुमकिन है कि रकम 2 लाख रुपये से कम रहने की स्थिति में पेमेंट बिना फोलिया बन गया हो।