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SEBI ने इनवेस्टमेंट और होल्डिंग कंपनियों के बेहतर प्राइस डिस्कवरी के लिए कॉल ऑक्शन का प्रस्ताव दिया

SEBI ने खास तरह की लिस्टेड इनवेस्मेंट कंपनियों (IC) और लिस्टेड इनवेस्टमेंट होल्डिंग कंपनियों (IHC) के शेयरों के लिए एक कॉल ऑक्शन का प्रस्ताव दिया है। मार्केट रेगुलेटर का मानना है कि इससे इन सिक्योरिटीज की फेयर-प्राइस डिस्कवरी में मदद मिलेगी। मार्केट रेगुलेटर ने इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों के यह बताने बताने के बात यह प्रस्ताव पेश किया है कि सर्किट फिल्टर्स की वजह से उनके शेयरों की फेयर-प्राइस डिस्कवरी में बाधा आती है।

रेगुलेटर ने पेश किया कंस्लटेशन पेपर

सेबी ने इस बारे में 18 अप्रैल को एक कंसल्टेशन पेपर पेश किया था। इसमें कहा गया था कि IC और IHC को उनके क्लासिफिकेशन के आधार पर कॉल ऑक्शन उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए कुछ शर्तें बताई गई हैं। कम से कम एक साल पहले लिस्टिंग होनी चाहिए। उनका कम से कम 50 फीसदी एसेट दूसरी लिस्टेड कंपनियों में निवेश किया गया होना चाहिए। साथ ही छह महीने का वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस (VWAP) उनकी बुक वैल्यू के 50 फीसदी से कम होना चाहिए।

इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने सेबी को प्रॉब्लम बताई थी

कंसल्टेशन पेपर में कहा गया है कि IC और IHC के शेयर उनकी बुक वैल्यू के मुकाबले काफी कम पर ट्रेड हो रहे हैं। इस पेपर में इसमें सुधार करने के बारे में बताया गया है। पेपर में कहा गया है, “अभी कुछ लिस्टेड IC और IHC के शेयर में कभी-कभी ट्रेडिंग होती है लेकिन यह लिस्टेड एंटिटीज के अपनी लास्ट ऑडिटेड फाइनेंशियल स्टेटमेंट में बताई गई बुक वैल्यू से बहुत कम पर होती है।”

आईएचसी की मार्केट वैल्यू और बुक वैल्यू में फर्क

प्रस्ताव में यह भी कहा गया है, “इन कंपनियों का आम तौर पर रोजाना के ऑपरेशंस नहीं होते हैं। उनका सिर्फ अलग-अलग एसेट क्लासेज में निवेश होता है। कुछ मामलों में यह देखा गया है कि जहां इनवेस्टमेंट दूसरी लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में हैं, आईसी और आईएचसी की मार्केट वैल्यू और उसकी बुक वैल्यू में फर्क होता है। भले ही किए गए इनवेस्टमेंट की वैल्यू काफी ज्यादा हो।”

प्राइस बैंड का मकसद रिस्क मैनेजमेंट

बाजार के एक वर्ग ने रेगुलेटर को बताया था कि मार्केट वैल्यू और बुक वैल्यू में यह फर्क लिक्विडी, फेयर प्राइस डिस्कवरी और इन कंपनियों में निवेशकों की दिलचस्पी पर खराब असर डालता है। फेयर-प्राइस डिस्कवरी पर सर्किट ब्रेकर्स के पड़ने वाले असर के बारे में रेगुलेटर ने कहा कि प्राइस बैंड को बतौर रिस्क मैनेजटमेंट पेश किया गया था। इसका मकसद सही प्राइस डिस्कवरी और समुचित ट्रेडिंग था।

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