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अमूल दूध आज से 2 रुपए महंगा: गोल्ड 66 रुपए और फ्रेश 54 रुपए प्रति लीटर मिलेगा, 15 महीने बाद बढ़े दाम

 

ऑपरेशन और प्रोडक्शन कॉस्ट में बढ़ोतरी के कारण दूध के दाम बढ़ाए गए हैं।

अमूल दूध के दाम 2 रुपए प्रति लीटर बढ़ा दिए गए हैं। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) ने कहा है कि अमूल गोल्ड, अमूल शक्ति और अमूल फ्रेश की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है। दूध की आज सुबह से लागू हो गई हैं।

 

फेडरेशन ने रविवार (2 मई) को लेटर जारी कर बताया कि, ऑपरेशन और प्रोडक्शन की कुल लागत में बढ़ोतरी के कारण दूध के दाम बढ़ाए जा रहे हैं। 2 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी का मतलब है ये कि MRP में 3-4% की वृद्धि होगी।

बताया गया कि, इनपुट लागत में बढ़ने के कारण हमारी मेंबर यूनियनों ने किसानों से खरीदे जाने वाले दूध की कीमतों में पिछले साल की तुलना में 6-8% की बढ़ोतरी की है। अमूल उपभोक्ताओं की ओर से भुगतान किए गए प्रत्येक रुपए में से लगभग 80 पैसा दूध उत्पादकों को देता है।

पिछली बार फरवरी-2023 में बढ़ाए थे दाम
अमूल ने दूध की कीमतों में 15 महीने बाद बढ़ोतरी की है। इससे पहले फरवरी 2023 में 3 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई थी। दूध की कीमतें बढ़ाने को लेकर अमूल ने कहा था कि, ‘पिछले साल की तुलना में पशु चारे की कीमत ही करीब 20% बढ़ चुकी है।

इनपुट लागत में बढ़ने के कारण हमारी मेंबर यूनियन ने किसानों से खरीदे जाने वाले दूध की कीमतों में पिछले साल की तुलना में 8-9% की बढ़ोतरी की है।’

अमूल का मॉडल तीन लेवल पर काम करता है:

1. डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी

2. डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन

3. स्टेट मिल्क फेडरेशन

  • दूध का उत्पादन करने वाले गांव के सभी किसान डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी के मेंबर होते हैं। ये मेंबर रिप्रजेंटेटिव्स को चुनते हैं जो मिलकर डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन को मैनेज करते हैं।
  • डिस्ट्रिक्ट यूनियन मिल्क और मिल्क प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग करती है। प्रोसेसिंग के बाद इन प्रोडक्ट्स को गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड डिस्ट्रीब्यूटर की तरह काम कर मार्केट तक पहुंचाता है।
  • सप्लाई चेन को मैनेज करने के लिए प्रोफेशनल्स को हायर किया जाता है। दूध के कलेक्शन, प्रोसेसिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में डायरेक्ट-इनडायरेक्ट रूप से करीब 15 लाख लोगों को रोजगार मिलता है।
  • अमूल का मॉडल बिजनेस स्कूल्स में केस स्टडी बन गया है। इस मॉडल में डेयरी किसानों के कंट्रोल में रहती है। यह मॉडल दिखाता है कि कैसे प्रॉफिट पिरामिड के सबसे निचले हिस्से तक पहुंचता है।

लाखों लीटर दूध कैसे इकट्ठा होता है?

  • गुजरात के 33 जिलों में 18,600 मिल्क को-ऑपरेटिव सोसाइटीज और 18 डिस्ट्रिक्ट यूनियन हैं। इन सोसाइटीज से 36 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं, जो दूध का उत्पादन करते हैं।
  • दूध को इकट्ठा करने के लिए सुबह 5 बजे से ही चहल-पहल शुरू हो जाती है। किसान मवेशियों का दूध निकालते हैं और केन्स में भरते हैं। इसके बाद दूध को कलेक्शन सेंटर पर लाया जाता है।
  • सुबह करीब 7 बजे तक कलेक्शन सेंटर पर किसानों की लंबी लाइन लग जाती है। सोसाइटी वर्कर दूध की मात्रा को नापते हैं और फैट कंटेंट भी नापा जाता है। ये सिस्टम पूरी तरह से ऑटोमेटेड होता है।
  • हर किसान के दूध के आउटपुट को कंप्यूटर में सेव किया जाता है। किसानों की आमदनी दूध की मात्रा और फैट कंटेंट पर निर्भर करती है। किसानों को हर महीने एक निश्चित तारीख पर पेमेंट किया जाता है।
  • किसानों के लिए एक ऐप भी बनाया गया है, जिसमें उन्हें दूध की मात्रा और फैट से लेकर पेमेंट की जानकारी मिलती है। पेमेंट सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किया जाता है।
मवेशियों का दूध कैन्स में भरने के बाद कलेक्शन सेंटर पहुंचाया जाता है।

मवेशियों का दूध कैन्स में भरने के बाद कलेक्शन सेंटर पहुंचाया जाता है।

अमूल से जुड़े अन्य तथ्य

  • अमूल के पिरामिड मॉडल में सबसे नीचे मिल्क प्रड्यूसर्स आते हैं। खर्च होने वाले हर एक रुपए में से करीब 86 पैसे उसके मेंबर को जाते हैं और को-ऑपरेटिव बिजनेस चलाने के लिए 14 पैसे रखे जाते हैं। क्वांटिटी ज्यादा होने से ये रकम बहुत बड़ी हो जाती है।
  • डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन का प्रमुख चेयरमैन होता है, जो हर महीने मीटिंग करता है। यहां ये लोग को-ऑपरेटिव बिजनेस का जायजा लेते हैं। इसमें एक्सपेंशन प्लान, नई मशीनरी खरीदने और सदस्यों को बोनस देने जैसे मुद्दों पर चर्चा होती है।
  • प्रोडक्टिविटी में सुधार लाने के लिए मवेशियों की सेहत का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है। इसलिए, को-ऑपरेटिव मेंबर को मुफ्त ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें मवेशियों की देख-रेख कैसे करें और अन्य चीजें बताई जाती हैं। ट्रेनिंग प्रोग्राम से किसानों की बड़ी मदद होती है।
  • मवेशियों को दिन में तीन बार चारा और न्यूट्रिएंट्स दिया जाता है। यहां कैटल फीड प्लांट लगाए गए हैं। प्रोटीन, फैट, मिनरल को मिलाकर मवेशियों के लिए चारा बनता है। चारे बनाने वाले प्लांट की मशीनरी को डेनमार्क से इंपोर्ट किया गया है।
  • किसानों के लिए सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की भी सुविधा है। को-ऑपरेटिव नए इक्विपमेंट खरीदने के लिए किसानों को सब्सिडी देती है। जैसे दूध निकालने वाली ऑटोमेटिक मशीन 40,000 की आती है। सब्सिडी से इसका दाम आधा हो जाता है।

 

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