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Yes Bank हर साल आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कर रहा ₹1,000; CEO प्रशांत कुमार का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

Yes Bank Shares: यस बैंक अपने आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने के लिए हर साल 800 करोड़ से 1,000 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। यहां तक कि मुश्किल समय में भी बैंक की मुख्य रणनीति में आईटी हमेशा शामिल रहा है। यस बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ प्रशांत कुमार (Prashant Kumar) ने मनीकंट्रोल को दिए एक इंटरव्यू में ये जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आईटी ही बैंक की रीढ़ है, और बैंक की सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी है। आज बैंक के सभी ग्राहकों का डेटा आईटी पर है। उन्होंने कहा कि ऐसे में एक मजबूत और सुरक्षित आईटी सिस्टम्स के बिना कामकाज मुश्किल हो सकता है।

इंटरव्यू के दौरान प्रशांत कुमार ने यस बैंक के फ्यूचर प्लान के बारे में विस्तार से बात की। साथ ही माइक्रोफाइनेंस बिजनेस की योजना और बैंक को बेहतर बनाने के लिए अबतक उठाए गए कदमों पर भी चर्चा की। पेश है इंटरव्यू के मुख्य अंश:

आपने बहुत मुश्किल समय में Yes Bank का कार्यभार संभाला था। तब से अबतक काफी कुछ बदल गया है…

हमारे लिए सबसे पहली और बड़ी चुनौती कारोबार में स्थिरता लाने की थी क्योंकि हमारे पास कोई डिपॉजिट राशि नहीं थी। फिर इसके तुरंत बाद कोविड का काफी मुश्किल दौर शुरू हो गया था। लेकिन फिर भी हमारे लोग ग्राहकों तक पहुंचे और उनको भरोसा दिलाया। खासतौर से जब भारतीय स्टैंट बैंक आगे आकर हमारा प्रमुख निवेशक बना, तो इससे डिपॉजिटर्स का काफी भरोसा बढ़ा।

पहली बार लोगों ने देखा कि सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और दूसरे की सरकारी बैंक एक साथ आकर लोगों को भरोसा दिला रहे हैं कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, आपके पैसे नहीं डूबेंगे। मैं समझता हूं कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम बात थी।

आपने ग्राहकों का खोया हुआ भरोसा कैसे वापस जीता?

अगर आपके लोग कस्टमर से जुड़ने और उन तक पहुंचने की कोशिश करते हैं और उनकी जरूरतों की देखभाल करते हैं, तो धीरे-धीरे भरोसा बनाता जाता है। साथ ही लोगों ने यह भी देखा कि उनके बैंक में जमा किए गए पैसे वापस मिलने लगे हैं। हालांकि यह सिर्फ एक चीज था। बैंक के लिए दूसरी सबसे जरूरी चीज थी कि, वह अपने कारोबार को किसी भी हाल में जारी रखे। इसलिए हम उस समय भी लोन दे रहे थे। हमने लोन देना कभी बंद नहीं किया। अगर आप लोन देना बंद कर देते हैं, तो फिर बाजार में आपका लेकर माहौल काफी नेगेटिव हो जाता है।

तब से बैंक की वित्तीय सेहत में क्या सुधार हुआ है?

हमने इक्विटी के जरिए पैसे जुटाए। इक्विटी का पहला राउंड बैंकों के साथ हुआ। यह राउंड सिर्फ खुद के वजूद को बचाए रखने के लिए था। फिर जुलाई 2020 में हमने इक्विटी के जरिए 2 अरब डॉलर की फंडिंग जुटाई। वह बहुत कठिन समय था, फिर भी हम फंडिंग जुटाने में सफल रहे। इस तरह बैंक में एक तरफ डिपॉजिट आ रहा था, दूसरी तरफ हमने इक्विटी जुटाई।

बैड लोन का रेशियो भी बेहतर हुआ है…

बैड लोन से हमने वसूली करनी शुरू की। अगर आप पिछले 4 सालों को देखें, तो हर साल हमने 5,000 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की है। इसके अलावा दिसंबर 2020 में हमने एक ट्रांजैक्शन के जरिए पूरे बैड लोन को एक एसेट कंस्ट्रक्शन कंपनी (ARC) को ट्रांसफर कर दिया। इससे हमें काफी मदद मिली।

बैंक का ग्रॉस NPA, जो पहले 16-17 प्रतिशत था, वह आज की तारीख में अब घटकर 1.7 फीसदी पर आ गया है। लगभग सभी प्राइवेट बैंकों में यह सबसे अच्छा आंकड़ा है। यहां तक कि हमारा शुद्ध NPA इस समय सिर्फ 0.55 प्रतिशत पर है। इसलिए, NPA की समस्या पूरी तरह से हल हो गई है। पिछले वित्त वर्ष में भी हमने 5,000 करोड़ रुपये से अधिक के बैड लोन की वसूली की है।

इस दौरान डिपॉजिट ग्रोथ कैसी रही है?

अगर आप वित्त वर्ष की 2024 की बात कर रहे हैं, तो इसमें हमारी डिपॉजिट ग्रोथ 23 प्रतिशत रही। मुझे लगता है कि यह किसी भी बैंक के मुकाबले सबसे अधिक है। हक का बैंक पर भरोसा और विश्वास का सबसे बड़ा पैमाना, डिपॉजिट ग्रोथ ही होती है। लोन आप कभी भी किसी को दे सकते हैं। लेकिन अगर कोई अपनी जमा राशि आपको दे रहा है, तो इसका मतलब है कि वह आप पर भरोसा कर रहा है।

आपका डिपॉजिट मिक्स कैसा है? इसमें होलसेल का कितना हिस्सा है और रिटेल का कितना हिस्सा है?

हमारे बैंक की शाखाओं और दूसरे स्रोतों से हमारा रिटेल डिपॉजिट लगभग 65 प्रतिशत और होलसेल डिपॉजिट 35 प्रतिशत है। पहले रिटेल डिपॉजिट की राशि काफी छोटी हुआ करती थी और सारा फोकस होलसेल पर रहता था।

क्या SBI अपनी हिस्सेदारी बेचकर बैंक से बाहर निकलने की तैयारी में है?

स्टेट बैंक हमारी सबसे बड़ी शेयरधारक है और उसके पास बैंक में करीब 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। SBI की मौजूदगी ने ग्राहकों को एक अलग तरह का भरोसा दिया। SBI की वजह से ही ग्राहक शुरुआती दौर से इस बैंक में आ रहे थे। इससे बैंक को काफी मजबूती मिली।

लेकिन हमें यह भी समझने की जरूरत है कि नियमों के मुताबिक, एक बैंक दूसरे बैंक में इनवेस्ट नहीं कर सकता है। इसका मतलब है कि जब यस बैंक का कारोबार फिर से समान्य हो गया है, तो SBI को एक रणनीतिक निवेशक के रूप में इससे निकलना होगा। तो, ऐसा होना तय है।

तो SBI के हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया अभी किस चरण में है?

देखिए इसपर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा। मैं सिर्फ यह हकीकत बता रहा हूं कि एक बैंक, दूसरे बैंक में निवेश किए हुए नहीं रह सकता है। मुझे लगता है कि सही समय आने पर ऐसा हो जागा। यस बैंक भी अब काफी अच्छी स्थिति में पहुंच गया है। हम अब उस स्थिति में पहुंच गए, जहां SBI की जगह कोई दूसरा रणनीतिक निवेशक आना चाहिए। लेकिन ऐसा कब होगा, यह कहना काफी मुश्किल होगा।

क्या आपको इस बात की चिंता है कि SBI के बाहर जाने से बैंक पर कोई असर पड़ेगा?

मुझे कोई चिंता नहीं है और इसकी चिंता किसी को होनी ही भी नहीं चाहिए। देखिए SBI की यस बैंक में करीब 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसका मतलब है कि इसकी जगह जो भी निवेशक आएगा, उसे रिजर्व बैंक (RBI) से हिस्सेदारी खरीदने के लिए मंजूरी लेनी होगी। इसका मतलब है कि नए शेयरधारक की खुद RBI अपने स्तर पर पूरी जांच करेगा। ऐसा नहीं है कि बाजार से उठकर कोई भी बैंक में हिस्सेदारी खरीदने आ जाएगा। RBI जिस निवेशक को योग्य और सही पाएगा, उसे भी उतना ही भरोसा और सपोर्ट मिलेगा, जितना SBI को था।

आप पिछले 4 सालों से यस बैंक का चेहरा रहे हैं। आपके उत्तराधिकारी के लिए यस बैंक का क्या नजरिया हैं?

सिर्फ यस बैंक ही नहीं, बल्कि सभी बैंक या कंपनी के लिए उत्तराधिकार योजना तैयार करना काफी जरूरी है। यह पूरी तरह से लीडरशिप से जुड़ा मामला है, जो लगातार जारी रहता है। हमारे बैंक में भी इस पर फोकस है। हमारे सभी जरूरी पदों के लिए उत्तराधिकार योजना है। बैंक की लीडरशिप बहुत मजबूत है।

आपकी माइक्रोफाइनेंस संस्थान के अधिग्रहण में रुचि रही है। इस पर कोई तरक्की?

पिछले साल भी हमने बाजार में मौकों की खोज की था। लेकिन हमारी क्षमता और वैल्यूएशन की उम्मीदों के मुताबिक, हमें अभी ऐसा मौका दिखा नहीं है।

क्या इस साल इसपर कुछ आगे बढ़ने की उम्मीद है? या कोई संस्थान आपकी नजर में है।

नहीं। लेकिन हमारी दिलचस्पी अभी भी बनी हुई है। ऐसा नहीं है कि हमारी दिलचस्पी बनी हुई है। हम लगातार मूल्यांकन कर रहे हैं। माइक्रोफाइनेंस एक बड़ा बिजनेस है और हम इसमें मौके तलाशना जरूरी रहेगा।

पिछले 4 साल में 443% बढ़ा यस बैंक का शेयर

बता दें कि यस बैंक के साल 2018 से 2020 तक का समय काफी मुश्किलों से भरा हुआ था। दीवान हाउसिंग फाइनेंस, एस्सेल ग्रुप, सीजी पावर, अनिल अंबानी ग्रुप और वीडियोकॉन सहित कई बड़ी कंपनियों को दिए गए इसके लोन, बैड लोन में बदल गए थे। इसके चलते बैंक धराशायी हो गया और 6 मार्च 2020 को इसके शेयर 5.55 रुपये के अपने अबतक के सबसे निम्नतम स्तर पर पहुंच गए।

बाद में RBI ने आगे आकर बैंक को अपने कंट्रोल में लिया और इसके पुराने बोर्ड को भंग कर नया बोर्ड बनाया। SBI सहित दूसरे कई बैंकों ने इसमें पैसा डालकर बैंक को डूबने से बचाया। इस मुश्किल समय में RBI ने प्रशांत कुमार को बैंक का मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ नियुक्त किया। प्रशांत कुमार ने ना सिर्फ बैंक को सफलतापूर्वक मुश्किलों से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभाई। बल्कि बैंक के शेयरों की कीमत भी आज अपने ऑल टाइम लो से करीब 443% फीसदी बढ़कर 23.05 रुपये पर पहुंच गई है।

 

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