स्टॉक मार्केट्स की चाल का सटीक अंदाजा लगाना मुश्किल है। लेकिन, मार्केट्स से जुड़े कुछ डेटा हैं, जिनसे कुछ-कुछ अंदाजा लगाना मुमिकन होता है। मार्केट में कारोबारी वॉल्यूम का डेटा इनमें से एक है। इसे एवरेज डेली टर्नओवर (एडीटी) कहा जाता है। एनालिस्ट्स इस डेटा पर खास नजर रखते हैं। मार्केट की चाल का अंदाजा लगाने के लिए बीएसई और एनएसई दोनों ही एक्सचेंचों के डेटा काफी अहम हैं। सवाल है कि यह एडीटी क्या संकेत दे रहा है?
मार्केट में तेजी के दौरान एडीटी बढ़ता है
स्टॉक मार्केट्स में तेजी के दौरान ADT आम तौर पर बढ़ जाता है। इसकी वजह यह है कि तेजी में इनवेस्टर्स मार्केट में ज्यादा दिलचस्पी दिखात हैं। जब मार्केट गिरता है तो ठीक इसके उलट होता है यानी एडीटी घट जाता है। अगर मार्केट में तेजी के दौरान भी एडीटी में कमी देखने को मिलती है तो इसे मार्केट में कमजोरी का संकेत माना जाता है। अगर तेजी के दौरान ट्रेडिंग वॉल्यूम यानी एडीटी भी बढ़ता है तो इसका मतलब है कि मार्केट में स्ट्रेंथ है।
मई में रिटेल इनवेस्टर्स का पार्टिसिपेशन सबसे ज्यादा
स्टॉक एक्सचेंजों के डेटा के मुताबिक, इस साल मई में मार्केट में इनवेस्टर्स का पार्टिसिपेशन सबसे ज्यादा रहा। पिछले महीने मार्केट के दोनों प्रमुख सूचकांक Sensex और Nifty अपने ऑल-टाइम हाई के करीब पहुंच गए थे। हालांकि, उसके बाद से मार्केट्स में कंसॉलिडेशन देखने को मिला है। मार्केट में अप्रैल में गतिविधियां बढ़नी शुरू हुई थीं। जनवरी से मार्च के दौरान ADT 1 लाख करोड़ रुपये से कम बना हुआ था। अप्रैल में NSE के कैश मार्केट में ADT 1 लाख करोड़ रपये के पार हो गया। मई में यह बढ़कर 1.11 लाख करोड़ हो गया।
फरवरी में ADT 15 महीने के लो प पहुंच गया था
इस साल फरवरी में ADT गिरकर 15 महीने के लो लेवल पर पहुंच गया था। उसके बाद से इसमें इजाफा देखने को मिला। ऑप्शंस सेगमेंट में मार्च, अप्रैल और मई के दौरान यह बढ़ता रहा। मार्च में मार्केट अपने निचले स्तर से ऊपर चढ़ना शुरू किया। इसे ऑप्शंस मार्केट में स्थिरता का संकेत माना गया। खासकर नवंबर में सेबी के नए नियमों के लागू होने के बाद यह समझा गया कि स्टैबलिटी लौट आई है। इस बीच इक्विटी फ्यूचर्स में भी वॉल्यूम स्ट्रॉन्ग बना रहा। लेकिन, वॉल्यूम बढ़ने के बावजूद मार्केट की पूरी चाल को देखने पर चिंता पैदा होती है।
FII ने डेरिवेटिव में बढ़ाई है शॉर्ट पोजीशंस
आम तौर पर ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ने का मतलब है कि मार्केट एक्टिविटी में भी उछाल देखने को मिलेगा। लेकिन, मई और जून के पहले हफ्ते में ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ने के बावजूद सेंसेक्स और निफ्टी सीमित दायरे में बने रहे। मई के आखिर से विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने इंडियन मार्केट्स में स्टॉक्स बेचने शुरू कर दिए। यह ट्रेंड जून में भी दिख रहा है। FIIs ने डेरिवेटिव अपनी शॉर्ट पोजीशंस बढ़ाई है। यह चिंता की बात है। रिटेल इनवेस्टर्स का पार्टिसिपेशन बढ़ने के बावजूद आखिर मार्केट क्यों सीमित दायरे में है? RBI के इंटरेस्ट घटाने के बाद से मार्केट में तेजी आई है।
इस तेजी पर ज्यादा भरोसा करने से हो सकता है धोखा
मार्केट में यह तेजी तभी जारी रहेगी जब प्रमुख सूचकांक मौजूदा दायरे से ब्रेकआउट करेंगे। इसके बगैर एडीटी का बढ़ना रिटेल इनवेस्टर्स के लिए बड़ा फंदा बना सकता है। यह खासकर तब और भी खतरनाक हो जाता है तो जब मार्जिन फंडिंग रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया है। इसका मतलब है कि अब मार्केट में ज्यादा सावधानी बरतने का समय आ गया है। इस तेजी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करने से धोखा हो सकता है।
