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अमेरिका-चीन टैरिफ पर क्यों झुके: मंदी का खतरा या घर के अंदर राजनितिक दबाव, दोनों के बीच सालाना 600 बिलियन डॉलर का व्यापार

अमेरिका-चीन टैरिफ पर क्यों झुके:  मंदी का खतरा या घर के अंदर राजनितिक दबाव, दोनों के बीच सालाना 600 बिलियन डॉलर का व्यापार

 

2 अप्रैल को ट्रम्प ने करीब 100 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ का ऐलान किया था।

अमेरिका और चीन ने बढ़ते टैरिफ वॉर को लगभग समाप्त कर लिया है। दोनों देशों ने जेनेवा में ट्रेड डील की और 115% टैरिफ कटौती का ऐलान किया। दोनों के बीच यह समझौता फिलहाल 90 दिनों के लिए है।

 

अमेरिका ने चीनी सामानों पर 145% और चीन ने अमेरिकी सामानों पर 125% टैरिफ लगा रखा है। इस कटौती के बाद चीन पर अब 30% और अमेरिका पर 10% टैरिफ रह जाएगा।

इस समझौते पर अमेरिका ने कहा कि चीन के साथ मतभेद उतने बड़े नहीं थे जितना सोचा था। लेकिन कई और कारण हैं जो इस समझौते के लिए जिम्मेदार हैं…

1. ट्रेड-वॉर से आर्थिक नुकसान:

चीनी आयात पर 145% अमेरिकी टैरिफ और चीन के 125% जवाबी टैरिफ ने दोनों के बीच सालाना एवरेज 610 बिलियन डॉलर के व्यापार पर काफी दबाव पड़ा।

अमेरिका के रिटेल बिजनेस पर बढ़ती कीमतों का सीधा असर पड़ रहा था। इससे कंज्यूमर एक्सपेंडिचर कम हो रहा था। दूसरी ओर अमेरिका में मांग कम होने से चीनी फैक्ट्रीज में प्रोडक्शन धीमा हो गया था। टैरिफ कम करने के पीछे इन दबावों को कम करना और बाजारों को स्थिर करना है।

2. वैश्विक मंदी की आशंका:

बढ़ते ट्रेड वॉर से ग्लोबल मार्केट में काफी अनिश्चितता देखने को मिल रही थी। सप्लाई चेन में रुकावट और ट्रेड फ्लो में कमी ने दुनिया में मंदी की आशंका बढ़ा दी थी।

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में दोनों देशों पर बड़े आर्थिक गिरावट को रोकने के लिए आपस के तनाव को कम करने का प्रेशर दुनियाभर से था।

3. अमेरिकी व्यापार घाटे की चिंता:

अमेरिका ने चीन के साथ 1.2 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार घाटे को नेशनल इमरजेंसी घोषित कर दिया था। टैरिफ कटौती पर दोनों के बीच बातचीत इस असंतुलन को दूर करने की स्ट्रैटजी का हिस्सा है। इसमें अमेरिका फेयर ट्रेड की शर्तों और चीन में अपने सामानों की बिक्री बढ़ाने पर जोर दे रहा है। जिनेवा समझौता में मुख्य रूप से इसी चर्चा की गई।

4. देश के अंदर पॉलिटिकल प्रेशर:

अमेरिका में व्यापारी और कंज्यूमर हाई प्राइस से परेशान थे। वहीं, चीन में प्रोडक्शन और एक्सपोर्ट कम होने से आर्थिक मंदी का संकट मंडरा रहा था। जिसके चलते दोनों देशों के लीडरशिप को घर के अंदर से ट्रेड वॉर खत्म करने का प्रेशर बन रहा था।

5. कोऑपरेशन की स्ट्रैटेजिक जरूरत:

व्यापार से अलग दोनों देश क्लाइमेट चेंज, सप्लाई चेन रेजिलिएंस और जियो-पॉलिटिकल टेंशन जैसी चुनौतियों का एक साथ सामना कर रहें हैं। इस टैरिफ डील से दोनों देशों के बीच भविष्य में डिप्लोमेटिक चैनलों से बातचीत का रास्ता खुला रहेगा।

टैरिफ बढ़ने से चीनी सामान अमेरिका में महंगे हो जाते

चीन पर 125% टैरिफ लगाने का आसान भाषा में मतलब था कि चीन में बना 100 डॉलर का सामान अमेरिका में जाकर 225 डॉलर का हो जाता। अमेरिका में चीनी सामानों के महंगे होने से उनकी डिमांड घटती और बिक्री कम हो जाती।

ट्रम्प ने 2 अप्रैल को दुनियाभर में टैरिफ लगाने की घोषणा की थी

ट्रम्प कहते आए हैं कि अगर कोई देश अमेरिकी सामानों पर ज्यादा टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश से आने वाली चीजों पर ज्यादा टैरिफ बढ़ाएगा। उन्होंने इसे रेसिप्रोकल टैरिफ कहा।

2 अप्रैल को ट्रम्प ने करीब 100 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा करते हुए कहा था, ‘आज लिबरेशन डे है, जिसका अमेरिका लंबे समय से इंतजार कर रहा था।’

90 दिनों के लिए टैरिफ रोका, चीन पर बढ़ाकर 125% किया था

9 अप्रैल को डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन को छोड़कर अन्य सभी देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ को 90 दिनों के लिए टाल दिया था। ट्रम्प ने कहा- चीन ने ग्लोबल मार्केट के लिए सम्मान नहीं दिखाया है।

इसी वजह से मैं उस टैरिफ को बढ़ाकर 125% कर रहा हूं। उम्मीद है कि चीन जल्द यह समझेगा कि अमेरिका और दूसरे देशों को लूटने के दिन चले गए हैं।

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