भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अधिग्रहण के नियमों में अहम बदलाव किए हैं, जिनसे विलय एवं अधिग्रहण में देसी कंपनियों का खर्च काफी कम हो सकता है।
बाजार नियामक ने कहा है कि जब खुली पेशकश (ओपन ऑफर) के लिए कीमत तय की जाएगी तो खबरें आने या संवेदनशील जानकारी बाहर आने के बाद शेयर के भाव में होने वाली उठापटक को उसमें शामिल नहीं किया जाएगा।
यह संशोधन अफवाहों की सच्चाई जानने की सेबी की नई व्यवस्था का हिस्सा है। यह व्यवस्था 1 जून से लागू होगी। मगर उद्योग के भागीदार अभी इस बारे में विस्तृत व्यवस्था या नियामवली का इंतजार कर रहे हैं।
ओपन ऑफर के लिए कीमत तय करते समय देखा जाता है कि पेशकश की घोषणा होने से 60 दिन पहले का वॉल्यूम वेटेड एवरेज यानी शेयर का औसत भाव क्या था। मगर अक्सर ओपन ऑफर की औपचारिक घोषणा होने से पहले ही विलय-अधिग्रहण की खबर मीडिया तक पहुंच जाती है, जिससे संबंधित कंपनी का शेयर चढ़ने लगता है। इसकी वजह से ओपन ऑफर की कीमत भी बढ़ जाती है और अधिग्रहण करने जा रही कंपनी के लिए यह महंगा हो जाता है।
कानून विशेषज्ञों ने कहा कि इन बदलावों से कंपनियों में भरोसा आएगा कि समय से पहले खबर बाहर आने का असर शेयर के भाव पर नहीं पड़ेगा और इससे सौदा खटाई में नहीं पड़ेगा।
सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर आंचल धीर ने कहा, ‘मूल्य सुरक्षित रखने की यह व्यवस्था स्वागत योग्य है। सूचीबद्ध कंपनी की कीमत सौदे की घोषणा से पहले चल रहे भाव से जुड़ी होना और सौदे की कीमत पर अफवाह का असर उद्योग के लिए बड़ी चिंता थी। हमें अफवाह से बेअसर कीमत तय करने वाली प्रणाली के ब्योरे का इंतजार है मगर यह सही दिशा में उठाया गया कदम है।’
1 जून से शीर्ष 100 सूचीबद्ध कंपनियों को मीडिया में आई ऐसी किसी भी सूचना की पुष्टि करनी होगी, उससे इनकार करना होगा या उस पर स्थिति स्पष्ट करनी होगी, जिस सूचना से 24 घंटे के भीतर शेयर भाव में अच्छा-खासा उतार-चढ़ाव आता है। इसी साल 1 दिसंबर से यह व्यवस्था शीर्ष 250 सूचीबद्ध कंपनियों के लिए लागू हो जाएगा। पहले ये नियम फरवरी में लागू होने थे मगर उन्हें आगे बढ़ा दिया गया।
ट्राईलीगल में पार्टनर संजम अरोड़ा ने कहा, ‘इससे सूचीबद्ध कंपनियों को बाजार में चल रही अफवाहों से मजबूती और भरोसे के साथ निपटने का हौसला भी मिलेगा क्योंकि उन्हें यकीन होगा कि उसकी वजह से शेयर भाव में आ रहे उतार-चढ़ाव के कारण बोली लगाने वाली कंपनी सौदा छोड़कर चली नहीं जाएगी। इससे अंतत: आम शेयरधारकों को भी फायदा होगा क्योंकि सूचना में गड़बड़ या जानकारी छिपाने की आशंका कम हो जाएगी।’
उद्योग संघों के सदस्यों के प्रतिनिधित्व वाले एक संगठन ने अफवाहों की जांच पर स्वीकृत नियमों में बदलाव करने का सुझाव दिया था। इन सुझावों के बाद मार्च में अपने निदेशकमंडल की बैठक में सेबी ने बदलाव पर मुहर लगा दी थी। मगर इस मुद्दे पर विस्तृत परिपत्र अब तक जारी नहीं किया गया है।
‘अप्रभावित मूल्य’के लिए अपनाए जाने वाले ढांचे पर इन परिपत्रों पर आने के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। सेबी के नियम-कायदों के अंतर्गत तरजीही निर्गमों, खुली पेशकश एवं कई अन्य लेनदन का मूल्य निर्धारण वॉल्यूम-वेटेड एवरेज प्राइस (वीडब्ल्यूएपी) पर आधारित होता है। वीडब्ल्यूएपी का इस्तेमाल एक निश्चित अवधि में शेयर केऔसत मूल्य की गणना करने में होता है। यह गणना करते वक्त कारोबार की मात्रा पर विचार किया जाता है।
सेबी ने ऐसी गणनाओं के लिए ‘अप्रभावित मूल्य’ का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है। कंपनी मामलों के वकील सुप्रीम वास्कर ने कहा, ‘यह बदलाव अधिग्रहणकर्ता एवं बाजार के अनुरूप प्रतीत होता है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि सूचना बाहर निकलने की स्थिति में अधिग्रहण करने वाली इकाई को बाजार में मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव और बाद में खुली पेशकश का मूल्य तय करने के लिए सूचीबद्ध लक्षित कंपनी से स्पष्टीकरण आने से बाजार में कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव पर ध्यान देने की जरूरत नहीं होगी।‘
किंग स्टब ऐंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नीज में पार्टनर पृथ्वीराज सेंथिल नाथन कहते हैं, ‘सेबी किसी कंपनी के मूल्यांकन की सटीक तस्वीर पर अधिक जोर दे रहा है। इससे कीमतों में उतार-चढ़ाव से निवेशक गुमराह होने से बच जाएंगे। पारदर्शिता बढ़ने से झूठी सूचनाओं के कारण होने वाले कयास आधारित कारोबार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही बाजार में स्थिरता एवं निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा।‘