सिर्फ छह महीने पहले भारतीय बाजार निवेशकों के पसंदीदा थे। हालांकि स्थिति में नाटकीय बदलाव आया है। एचएसबीसी में इक्विटी रणनीति प्रमुख (एशिया प्रशांत) हेरल्ड वैन डेर लिंडे ने बढ़ते अमेरिकी बॉन्ड यील्ड, चीनी बाजारों के बेहतर प्रदर्शन और कमाई में नरमी को बाजार की मौजूदा बिकवाली का अहम कारण माना है। लिंडे ने मुंबई में समी मोडक से साक्षात्कार में कहा कि निवेशकों को उन क्षेत्रों और बातों पर ध्यान देना चाहिए जिनको मौजूदा आर्थिक माहौल से लाभ हो सकता है। संपादित अंश:
कुछ महीने पहले, भारत विदेशी निवेशकों के लिए पसंदीदा बाजार था। लेकिन अचानक यह 180 डिग्री घूम गया है। ऐसा क्या हुआ है?
बाजार का सेंटिमेंट कितनी जल्दी बदल सकती है, हमने यह पहले चीन में देखा है। 2018 और 2021 के बीच हर कोई चीन में रहना चाहता था और फिर वे सतर्क हो गए। भारत में मुख्य आकर्षण बहुत अधिक आय वृद्धि थी जिस पर अब सवाल उठने लगे हैं। अब ऐसा लगने लगा है कि हमें इस बाजार के लिए कम मल्टीपल गुणक रखने होंगे। इसके साथ ही अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स में तेजी शुरू हो गई, जिसके कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने एक सिरे से उभरते बाजारों से पैसा निकालना शुरू कर दिया। इससे भारतीय इक्विटी पर दबाव बढ़ गया। इसके अलावा चीन ने भी अच्छा प्रदर्शन शुरू कर दिया। एफपीआई की बात करें तो आप उस बाजार में बेचते हैं जहां बेचना आसान है और भारत उनमें से एक है। इसलिए यह कमाई की चिंताओं, बढ़ते बॉन्ड यील्ड और चीन के आकर्षण का मिला-जुला रूप है।
क्या आपको लगता है कि विदेशी पूंजी की निकासी जल्द रुकेगी?
यह इन तीन कारणों से वापस आ सकती है। अगर चीन का बेहतर प्रदर्शन पलट जाता है और निवेशक किसी भी कारण से चीन में भी बेचना शुरू कर देते हैं तो रकम के प्रवाह के नजरिये से शायद इससे भारतीय इक्विटी को समर्थन मिलेगा। दूसरा, अगर बॉन्ड यील्ड कम हो जाती है तो यह सकारात्मक होगा। और अगर हमें आय में वास्तविक वृद्धि पर स्पष्टता दिखती है तो इससे भी मदद मिलेगी। बाजार इस बात को लेकर अनिश्चित है कि भारत की आय वृद्धि 15 फीसदी होगी या 10 फीसदी। इन कारकों को स्पष्ट होने में समय लग सकता है। हमारा मोटा अनुमान है कि वृद्धि शायद 10 से 15 फीसदी के बीच रहेगी। लेकिन पिछली तिमाही के आंकड़े बहुत कमजोर थे। अगर चीन का प्रदर्शन बदल जाए, हमें आय पर अधिक स्पष्टता मिले और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड कम हो जाए तो भारत को मदद मिल सकती है। अमेरिकी बॉन्ड यील्ड की दिशा महत्त्वपूर्ण है। अगर यील्ड अधिक है तो पैसा अमेरिका जाता है और अगर वह कम हो जाती है तो कहीं और निवेश करना ठीक होता है। एक अन्य कारक घरेलू मौद्रिक नीति है जो उच्च मुद्रास्फीति के कारण कई वर्षों से सख्त रही है। अब जबकि मुद्रास्फीति कम हो रही है और केंद्रीय बैंक के लक्षित दायरे में है, तो ऐसे में अगर मौद्रिक नीति कम सख्त हो जाती है तो इससे बैंकों को मदद मिल सकती है।
क्या आपको अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में जल्द नरमी की उम्मीद दिखती है?
अगर अमेरिका शुल्क लगाता है तो इससे वहां मुद्रास्फीति बढ़ सकती है जिससे केंद्रीय बैंक दरों में बढ़ोतरी करने को प्रेरित होगा और इस वजह से बॉन्ड यील्ड बढ़ जाएगी। दूसरी ओर, अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था निकट भविष्य में धीमी हो जाती है और बेरोजगारी के आंकड़े बढ़ते हैं तो बॉन्ड यील्ड कम हो सकती है। बाजार फिलहाल इन दोनों परिदृश्यों के बीच झूल रहा है। बॉन्ड यील्ड में थोड़ी कमी आई है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। अगर बॉन्ड यील्ड और नीचे आती है तो यह परिवेश भारत सहित एशियाई इक्विटी के लिए काफी सकारात्मक होगा।
चीन के लिए क्या आउटलुक है?
हमारा मानना है कि चीन के शेयर न केवल अविश्वसनीय रूप से सस्ते हैं बल्कि वृद्धि भी उम्मीद से बेहतर होने की संभावना है। वहां भारी मात्रा में नकदी है – मुख्य भूमि चीन में 22 लाख करोड़ डॉलर। अगर भरोसा लौटता है और इनमें से कुछ पैसा इक्विटी में निवेश होता है तो यह काफी सकारात्मक हो सकता है। कम मूल्यांकन, अच्छी वृद्धि और पास में बहुत सारी नकदी होने से हमें विश्वास है कि यह बाजार बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकता है।
अभी एशिया में आपकी स्थिति कैसी है?
हम भारत और दक्षिण कोरिया पर तटस्थ हैं। चीन, इंडोनेशिया और हॉन्गकॉन्ग पर ओवरवेट हैं। ताइवान और जापान पर अंडरवेट हैं। भारत को मार्केट कैप के दृष्टिकोण से देखने के बजाय हम वृद्धि की कहानियों या उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं जिन्हें मौजूदा आर्थिक माहौल से लाभ होता है।
भारत के लिए क्या कोई थीम है जो सबसे अलग है?
एक है टेक जिसे कमजोर मुद्रा से लाभ मिलता है। हाल के आय सीजन ने अमेरिका में भी वृद्धि के बेहतर परिदृश्य को दर्शाया है। उपभोक्ता क्षेत्र में हम अधिक आकर्षक मूल्यांकन के कारण स्टेपल के बजाय विवेकाधीन (डिस्क्रिशनरी) को प्राथमिकता देते हैं। कमजोर घरेलू मांग के बावजूद ऑटोमोबाइल कंपनियां भी विदेशों में उच्च वृद्धि वाले क्षेत्रों को लक्ष्य कर रही हैं। अस्पताल एक और क्षेत्र है, जिसे हम उनकी दीर्घकालिक संरचनात्मक प्रगति की कहानी के कारण पसंद करते हैं। हम निजी बैंकों को भी पसंद करते हैं, जहां मूल्यांकन आकर्षक हैं और बढ़ी हुई तरलता से उनको लाभ हो सकता है।
कोई ऐसा क्षेत्र जिससे आप दूरी बनाना चाहेंगे?
पूंजीगत सामान और बुनियादी ढांचा क्षेत्र। हाल के बजट में पूरा ध्यान बुनियादी ढांचे से हटकर घरेलू खपत पर चला गया है। इसलिए हम इन क्षेत्रों से कुछ बदलाव देख सकते हैं।
ऐसा कोई अन्य वैश्विक जोखिम जिसे लेकर निवेशकों को सावधान रहना चाहिए?
चीन पर शुल्क महत्त्वपूर्ण चिंता है। अगर अमेरिका ज्यादा शुल्क लगाता है तो यह मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है और शेयर बाजारों को प्रभावित कर सकता है। बॉन्ड यील्ड की चाल भी अहम है। अगर मुद्रास्फीति के दबाव के कारण फेड ब्याज दरों में कटौती नहीं कर पाता है तो इससे डॉलर मजबूत हो सकता है जो एशियाई शेयर बाजारों के लिए अच्छा नहीं होगा।
क्या आपको लगता है कि मौजूदा गिरावट और बढ़ेगी?
यह उन कारकों पर निर्भर करता है, जिन पर हमने ऊपर चर्चा की है। अगर चीन का प्रदर्शन अच्छा रहता है, बॉन्ड यील्ड कम होती है और आय की तस्वीर सुधरती है तो निवेशक भारत वापस आ सकते हैं। लेकिन अगर चीन में तेजी जारी रहती है और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ता है तो 10 फीसदी की गिरावट और हो जाए तो भी वह निवेशकों को नहीं लुभा सकती।
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