कई महीनों तक जारी रहने के बाद अब मार्केट में करेक्शन खत्म होता दिख रहा है। जेफरीज इंडिया के एमडी और रिसर्च हेड महेश नंदुरकर ने यह कहा है। सीएनबीसी-टीवी18 से बातचीत में उन्होंने स्टॉक मार्केट्स और करेक्शन के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि वैल्यूएशन अब सही लेवल पर आ गई है। इकोनॉमिक फंडामेंटल्स में इम्प्रूवमेंट के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि मार्केट में स्टैबलिटी आने वाली है।
मार्केट में जरूरी था यह करेक्शन
उन्होंने कहा कि यह करेक्शन (Stock Market Correction) जरूरी था। स्टॉक्स की कीमतें उनके फंडामेंटल्स के मुकाबले काफी आगे निकल गई थीं। निवेशक मार्केट में इस गिरावट को खराब होते फंडामेंटल्स के रूप में देख रहे हैं। लेकिन, स्थिति अब ज्यादा बैलेंस्ड है। छोटे-बड़े स्टॉक्स की वैल्यूएशन उनके 10 साल के औसत पर आ गई है। जेफरीज जिन स्टॉक्स को ट्रैक करता है, उनमें से करीब 50 फीसदी की कीमतें उनके एक दशक की औसत वैल्यूएशन से कम चल रही हैं।
फिर से बढ़ने लगा है सरकार का पूंजीगत खर्च
नंदुरकर ने कहा कि वैल्यूएशंस के अलावा दो बड़े पॉजिटिव बदलाव दिख रहे हैं। पहला, सरकार के खर्च में फिर से इजाफा दिख रहा है। FY25 की पहली छमाही में सरकार का खर्च साल दर साल आधार पर 2-3 फीसदी कम रहा। लेकिन, दूसरी छमाही में इसके 14-15 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। चूंकि, सरकार के खर्च की जीडीपी में करीब 10 फीसदी हिस्सेदारी है, जिससे इस खर्च से इकोनॉमिक ग्रोथ 150 बेसिस प्वाइंट्स बढ़ सकता है। दूसरा, क्रेडिट ग्रोथ में इजाफा है। बीते एक साल में क्रेडिट ग्रोथ 16-17 फीसदी से घटकर करीब 10-11 फीसदी पर आ गया था। रिजर्व बैंक के लिक्विडिटी बढ़ाने के उपायों से क्रेडिट ग्रोथ बढ़ने के संकेत है।
इंडियन मार्केट्स में जल्द होगी विदेशी निवेशकों की वापसी
एक्सपर्ट्स का कहना है कि बुल रन में 10-15 फीसदी की गिरावट सामान्य बात है। इसे मार्केट के बेयर फेज में जाने के संकेत के रूप में नहीं देखना चाहिए। करेक्शन के बाद शेयरों की कीमतें फिर से अट्रैक्टिव लेवल पर आ जाती हैं। यह निवेशकों के लिए खरीदारी का मौका होता है। खासकर जब ग्लोबल इकोनॉमी में उथलपुथल दिख रही है तब इंडियन मार्केट की स्टैबिलिटी इसे एक अट्रैक्टिव इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन बनाती है। कंपनियों की अर्निंग्स ग्रोथ बढ़ते ही विदेशी निवेशक फिर से इंडियन मार्केट्स में निवेश शुरू कर सकते हैं।
