मैक्वेरी ने एक नोट में कहा है कि यूरोपीय निवेशक देसी इक्विटी में नया निवेश करने पर विचार कर रहे हैं और इस तरह से वे अपना अंडरवेट पोजीशन बदलना चाह रहे हैं। मैक्वेरी के रणनीतिकारों सुरेश गणपति और पुनीत बहलानी ने एक नोट में कहा, पिछले हफ्ते यूरोपीय संघ के 30 निवेशकों के साथ बैठक में हमने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि भारतीय बाजारों में हाल ही में हुई गिरावट (सितंबर 2024 में शीर्ष स्तरों से निफ्टी में करीब 15 फीसदी की गिरावट) के बाद निवेशक भारतीय बाजारों में पैसा लगाना चाह रहे हैं।
उनमें से अधिकांश ओवरवेट पोजीशन में नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन अपने मौजूदा अंडरवेट रुख को कम करने के बारे में सोच रहे थे। भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए यूरोपीय देश प्रमुख गंतव्यों में से एक हैं। लक्जमबर्ग, आयरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, नॉर्वे और नीदरलैंड 10 अग्रणी एफपीआई क्षेत्र हैं। इस कैलेंडर वर्ष में अब तक एफपीआई ने देसी इक्विटी से 15 अरब डॉलर की निकासी की है। बिकवाली की वजह भारत की आय व आर्थिक वृद्धि में नरमी, महंगा मूल्यांकन और चीन की इक्विटी की ओर बढ़ता आकर्षण रही।
मैक्वेरी के इन्हीं विश्लेषकों ने कहा, कई लोगों का मानना है कि भारत एक संरचनात्मक कहानी है और चीन में संरचनात्मक मुद्दे हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि यह एक अल्पकालिक मामला है। कुछ निवेशकों का मानना है कि चीन मौजूदा स्तरों से एक संरचनात्मक स्तर पर दोबारा रेटिंग की कहानी है और उनका मानना है कि शी जिनपिंग शेयर बाजारों का इस्तेमाल धन के असर को बढ़ाने और इसके परिणामस्वरूप खपत को पुनर्जीवित करने के लिए एक जरिये के रूप में करेंगे।
नोट में कहा गया है कि ईयू के निवेशक देसी निवेशकों के सेंटिमेंट की परख के लिए म्युचुअल फंडों में निवेश की नजदीकी से निगरानी कर रहे हैं।
मैक्वेरी ने नोट में कहा, निवेशक चिंतित थे कि हाल ही में हुई गिरावट के बाद देसी तरलता कैसे प्रभावित हो सकती है और वे मासिक एसआईपी निवेश और समग्र एमएफ निवेश पर उत्सुकता से नजर रख रहे थे। उनके अनुसार निवेश में कोई भी गिरावट भारतीय बाजारों में सुधार को पटरी से उतारने वाला सबसे बड़ा जोखिम हो सकता है।
