Uncategorized

एफपीआई ने सात क्षेत्रों में की ज्यादा बिकवाली

 

जब बात मुनाफावसूली की आती है तो भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के पास अपने खुद के विशालकाय ‘मैग्नीफिसेंट 7’ हैं। अमेरिकी इक्विटी बाजार में ‘मैग्नीफिसेंट 7’ का इस्तेमाल उन सात शेयरों के लिए किया जाता है जिनका पिछले साल बाजार पूंजीकरण वृद्धि में संयुक्त रूप से आधे से ज्यादा योगदान रहा। पिछले पांच महीनों में भारत में सात क्षेत्र एफपीआई की सबसे ज्यादा बिकवाली की चपेट में आए हैं।

एफपीआई ने अक्टूबर से अब तक भारतीय शेयरों में 2.1 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की है। भारी बिकवाली वाले सात क्षेत्र – वित्तीय सेवाएं, तेल और गैस, ऑटोमोटिव (ऑटो) और ऑटो कम्पोनेंट, एफएमसीजी, उपभोक्ता सेवाएं, निर्माण और बिजली – हैं जिनसे 2.04 लाख करोड़ रुपये निकले। ये कुल बिक्री का 96 प्रतिशत है।

विदेशी निवेशकों ने 52,488 करोड़ रुपये मूल्य के वित्तीय सेवा क्षेत्र के शेयर बेचे। उन्होंने तेल और गैस शेयरों में 50,565 करोड़ रुपये, वाहन शेयरों में 32,067 करोड़ रुपये, एफएमसीजी में 28,108 करोड़ रुपये और उपभोक्ता सेवा शेयरों में 17,005 करोड़ रुपये की बिकवाली की।
इसके विपरीत एफपीआई सूचना प्रौद्योगिकी (6,000 करोड़ रुपये), रियल एस्टेट (3,258 करोड़ रुपये) और दूरसंचार (738 करोड़ रुपये) जैसे क्षेत्रों में शुद्ध खरीदार रहे। उन्होंने टेक्स्टाइल और केमिकल शेयरों में भी रुचि दिखाई।

इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक चोकालिंगम जी ने इन रुझानों का कारण समझाते हुए कहा, ‘रुपये के अवमूल्यन से भारतीय आईटी फर्मों को फायदा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भी भारतीय आईटी निर्यात पर टैरिफ लगाने से परहेज किया है। रियल्टी शेयर (जिनका मूल्यांकन कम था) लगातार मांग और रियल एस्टेट की कीमतों में मंदी के कोई संकेत नहीं दिखने के कारण फिर से आकर्षक हुए हैं। इस बीच, दूरसंचार चुनौतीपूर्ण व्यापक आर्थिक परिदृश्य के बीच कुछ प्रमुख विकास क्षेत्रों में से एक बना हुआ है।’

बिकवाली के बावजूद, वित्तीय सेवा क्षेत्र में एफपीआई का सर्वाधिक सेक्टोरल आवंटन (30.83 प्रतिशत) बना रहा। इसके बाद 9.87 प्रतिशत के साथ आईटी और 7 प्रतिशत के साथ तेल, गैस एवं उपभोग योग्य ईंधन का स्थान रहा। एफपीआई की बिकवाली अक्टूबर 2024 में शुरू हुई जिसका कारण चीन के प्रोत्साहन उपाय थे और चीन ने जूझती अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ये उपाय किए थे।

ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक चिंताएं और गहरा गईं क्योंकि उनके नीतिगत प्रस्ताव वैश्विक अर्थव्यवस्था में उठापटक के रूप में देखे गए। इस बदलाव से भारत जैसे उभरते बाजारों का आकर्षण कमजोर हुआ और अमेरिकी ऋण प्रतिभूतियों की मांग बढ़ गई। पदभार ग्रहण करने के बाद से राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी टैरिफ धमकियों को आंशिक रूप से लागू किया है, कुछ को स्थगित कर दिया है तथा मुक्त व्यापार समझौतों के तहत आने वाले उत्पादों को छूट प्रदान की है।

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top