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शेयर बाजारों की वर्तमान मंदी 100% लोकल, खुद ही ढूंढने होंगे समाधान: शंकर शर्मा

शेयर बाजार में वर्तमान में चल रहा मंदी का दौर पूरी तरह से लोकल फैक्टर्स की वजह से है और इससे निपटने के लिए हमें खुद ही समाधान ढूंढने की जरूरत है। यह बात दिग्गज इनवेस्टर शंकर शर्मा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कही है। इससे पहले उन्होंने सुझाव दिया था, कभी भी करेक्शन को मंदी का दौर न समझें, कभी भी मंदी के दौर को करेक्शन न समझें।’ शंकर शर्मा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक नई पोस्ट में कहा…

‘1990 से लेकर अब तक भारत में 4 बड़े बियर मार्केट (मंदी) हुए हैं: 1992: हर्षद मेहता, 2000: डॉटकॉम, 2008: GFC, 2020: कोविड। हर्षद मेहता वाली मंदी को छोड़कर बाकी 3 मंदियों में बाजार काफी तेजी से उबर गया। क्यों? क्योंकि हर्षद मेहता वाली मंदी एक लोकल लेवल की मंदी थी। अन्य ग्लोबल थीं, इसलिए सभी CBs (सेंट्रल बैंक) की ओर से कोऑर्डिनेटेड कदम उठाए गए। हर्षद मेहता वाली मंदी लगभग 10 साल तक चली। क्योंकि यह हमारी स्थानीय समस्या थी, इसलिए हमें खुद ही इससे निपटना पड़ा। वर्तमान में जो मंदी का दौर है, वह 100% लोकल है। हमें इससे बाहर निकलने के लिए खुद ही उपाय खोजने होंगे। और अगर ब्याज दर में 0.25% की कटौती और 800 रुपये प्रति व्यक्ति प्रोत्साहन को वे उपाय माना जा रहा है, तो हमें भगवान ही बचाए।’

हर्षद मेहता अपने समय में शेयर मार्केट का एक ब्रोकर था। मेहता के शेयर मार्केट में मैनिपुलेशन (पंप एंड डंप) को 1992 का शेयर मार्केट स्कैम कहा जाता है। इसके चलते शेयर बाजार में आई मंदी लगभग 10 साल के लंबे समय तक जारी रही थी।

कुछ एनालिस्ट्स FII की बिकवाली को भी मानते हैं वजह

घरेलू आर्थिक चुनौतियों, धीमी कॉरपोरेट आय, ग्लोबल ट्रेड और टैरिफ वॉर पर बढ़ी रही चिंताओं और चल रही भू-राजनीतिक चिंताओं के बीच, शर्मा ने सवाल किया है कि क्या भारत के पास बाजार के सेंटिमेंट को बदलने के लिए सही नीतिगत हथियार हैं। हालांकि कुछ एनालिस्ट्स का मानना है कि भारतीय शेयर बाजारों में आए करेक्शन में फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स की ओर से बिकवाली का भी हाथ है। उन्होंने पिछले तीन महीनों में भारतीय इक्विटी से 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक निकाले हैं। ग्लोबल ट्रेड, भारतीय शेयरों की हाई वैल्यूएशन और कंपनियों की आय को लेकर चिंता के बीच विदेशी निवेशक लगातार सेलर बने हुए हैं।

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