देश की शीर्ष कंपनियों की मुनाफा वृद्धि में तेज़ गिरावट के कारण यह फिसलन शुरू हुई। ब्रोकरेज आंकड़ों के अनुसार निफ्टी 50 कंपनियों की आय में अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 5 फीसदी की वृद्धि हुई जो दो वर्षों में दो अंकों की उछाल के बाद लगातार तीसरी तिमाही में एक अंक की वृद्धि है। इसकी बड़ी वजह ऊंची कीमतें और मामूली आय वृद्धि के बीच शहरी मांग कमज़ोर पड़ना रही। इस वजह से भारत की आर्थिक वृद्धि इस वित्त वर्ष में घटकर चार साल के निचले स्तर 6.4 फीसदी रहने की उम्मीद है।
कोटक म्युचुअल फंड में इक्विटी के मुख्य निवेश अधिकारी और अध्यक्ष हर्ष उपाध्याय ने कहा कि कंपनियों की आय उम्मीद से कम होने और अमेरिकी शुल्कों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता के साथ सभी क्षेत्रों में बाजारों का रिटर्न और नरम रह सकता है। कोटक फंड करीब 56 अरब डॉलर की परिसंपत्तियों का प्रबंधन करता है। अधिकांश विश्लेषकों को उम्मीद है कि बाजार की कमजोरी कम से कम मार्च आखिर तक जारी रहेगी।
कभी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की वृद्धि रुकने के साथ ही विदेशी निवेशक भी भारी संख्या में बाहर निकल गए हैं। उन्होंने 2024 की शुरुआत से लेकर सितंबर के अंत में बाजारों के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने तक 12.1 अरब डॉलर के भारतीय शेयर खरीदे थे। उसके बाद से उन्होंने 25 अरब डॉलर के शेयर बेच दिए हैं जिनमें 2025 की शुरुआत से बेचे गए 12.31 अरब डॉलर के शेयर हैं।
फंड मैनेजरों का भारत के लिए आवंटन दो साल के निचले स्तर पर है। बैंक ऑफ अमेरिका की ओर से इस सप्ताह जारी सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है जिनमें से 19 फीसदी की शुद्ध रूप से अंडरवेट वाली पोजीशन है। एशियाई देशों में केवल थाईलैंड का प्रदर्शन ही इससे खराब रहा। जेनस हेंडरसन इन्वेस्टर्स में एशिया (जापान को छोड़कर) इक्विटी टीम के पोर्टफोलियो मैनेजर सत दुहरा ने कहा कि चीन के हालिया प्रदर्शन ने भी विदेशी फंडों को अपनी ओर खींच लिया है।
भारत की धीमी होती अर्थव्यवस्था का मतलब यह भी है कि कंपनियों के मुनाफे में तेजी आने की संभावना नहीं है। ब्रोकरेज फर्म जेफरीज ने ट्रैक की जाने वाली 51 फीसदी कंपनियों के लिए पूरे साल का लाभ का अनुमान कम कर दिया है जबकि जेपी मॉर्गन का कहना है कि अगले वित्त वर्ष के लिए उम्मीदें अभी भी ज्यादा हैं। दुहरा ने कहा कि कमजोर आय और ऊंचे मूल्यांकन के चलते भारत पर कई तिमाहियों तक दबाव बने रहने की आशंका है। बाजारों में गिरावट के बावजूद शेयरों का मूल्यांकन अभी भी कुछ मानकों से ऊंचा है।
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