FPI Outflow: स्थानीय शेयर बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की निकासी का सिलसिला जारी है। अमेरिका द्वारा आयात पर शुल्क लगाए जाने के बाद वैश्विक स्तर पर तनाव बढ़ने के बीच फरवरी के पहले दो सप्ताह में FPI ने भारतीय शेयर बाजारों से 21,272 करोड़ रुपये निकाले हैं। इससे पहले जनवरी में भी FPI ने 78,027 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, इस तरह चालू साल में FPI शेयरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये (99,299 करोड़ रुपये) निकाल चुके हैं।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार का मानना है कि जब डॉलर सूचकांक नीचे जाएगा, तो FPI की रणनीति में उलटफेर होगा। आंकड़ों के अनुसार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस महीने (14 फरवरी तक) अब तक 21,272 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं।
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस्पात और एल्युमीनियम आयात पर नए शुल्क लगाए जाने तथा कई देशों पर ऊंचा शुल्क लगाने की योजना की घोषणा जाने से बाजार की चिंताएं बढ़ गई हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि इन घटनाक्रमों ने संभावित वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं को फिर से जगा दिया है, जिससे FPI को भारत सहित उभरते बाजारों में अपने निवेश का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया है।
वॉटरफील्ड एडवाइजर्स के वरिष्ठ निदेशक (सूचीबद्ध निवेश) विपुल भोवर ने कहा, ‘‘वैश्विक विशेष रूप से अमेरिकी नीतियों में बदलाव FPI के बीच अनिश्चितता की धारणा पैदा कर रहे हैं, जो बदले में भारत जैसे बाजारों में अपनी निवेश रणनीतियों को नया रूप दे रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि घरेलू मोर्चे पर कंपनियों के उम्मीद से कमतर तिमाही नतीजों और डॉलर के मुकाबले रुपये में बड़ी गिरावट से भारतीय संपत्तियों का आकर्षण घटा है।
समीक्षाधीन अवधि में FPI बॉन्ड या ऋण बाजार में शुद्ध लिवाल रहे हैं। इस दौरान उन्होंने बॉन्ड में सामान्य सीमा के तहत 1,296 करोड़ रुपये और स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग के जरिये 206 करोड़ रुपये डाले हैं। कुल मिलाकर भारतीय बाजारों को लेकर FPI सतर्क रुख अपना रहे हैं। पिछले साल यानी 2024 में भारतीय शेयरों में FPI का निवेश सिर्फ 427 करोड़ रुपये रहा था। इससे पहले 2023 में उन्होंने भारतीय शेयर बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये डाले थे। इसकी तुलना में 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा आक्रामक तरीके से नीतिगत दर बढ़ाने के बीच FPI ने 1.21 लाख करोड़ रुपये निकाले थे।
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