बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ने से छोटे निवेशकों के मनोबल पर असर पड़ा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ब्रोकरों के पास हर महीने खुलने वाले नए डीमैट खातों की संख्या जनवरी में कमजोर पड़ गई।
देश की दो डिपोजिटरी- सेंट्रल डिपोजिटरी सर्विसेज और नैशनल सिक्योरिटीज डिपोजिटरी के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले महीने 28.4 लाख नए डीमैट खाते खुले जो नवंबर 2023 के बाद से सबसे कम है। यह 2024 के दौरान 38.4 लाख नए खातों के मासिक औसत से बड़ी गिरावट है।
शेयर, म्युचुअल फंड और एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) जैसी प्रतिभूतियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखने के लिए डीमैट खाते जरूरी हैं। जनवरी में सक्रिय डीमैट खातों की कुल संख्या 18.81 करोड़ तक पहुंच गई। चूंकि निवेशक कई डीमैट खाते रख सकते हैं। इसलिए यूनिक निवेशकों की संख्या लगभग 11 करोड़ होने का अनुमान है। जनवरी में बाजार में उतार-चढ़ाव विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की भारी बिकवाली की वजह से आया था। एफपीआई ने जनवरी में 75,000 करोड़ रुपये की निकासी की जो एक कैलेंडर वर्ष में दूसरी सबसे बड़ी बिकवाली है। इस बिकवाली की वजह से प्रमुख सूचकांकों में बड़ी कमजोरी आई। निफ्टी स्मॉलकैप 100 सूचकांक 9.9 फीसदी लुढ़का जो मई 2022 से उसकी सबसे बड़ी गिरावट है। निफ्टी मिडकैप 100 सूचकांक में 6.1 फीसदी की गिरावट आई जो अक्टूबर 2024 के बाद से सबसे खराब है। लार्जकैप शेयरों ने कुछ हद तक बेहतर प्रदर्शन किया। निफ्टी 50 सूचकांक में 0.6 फीसदी गिरावट आई। लेकिन इसमें जो लगातार चौथी माह गिरावट रही।
केयरएज रेटिंग्स की एक ताजा रिपोर्ट में स्टॉक ब्रोकिंग उद्योग के लिए सुस्त राजस्व वृद्धि का अनुमान जताया गया है। वित्त वर्ष 2025 में यह वृद्धि 13 फीसदी रहने का अनुमान है, जो पिछले तीन वर्षों के दौरान दर्ज की गई 29 फीसदी से कम है। मुनाफा मार्जिन भी 2023-24 के 36 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2025 में 32 फीसदी रह जाने का अनुमान है। रिपोर्ट में इसके लिए प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) की ऊंची दर, स्टॉक एक्सचेंज के बढ़े हुए शुल्क और वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) के नए ट्रेडिंग नियमों को जिम्मेदार बताया गया है। इन सब की वजह से ट्रेडिंग की मात्रा और आय पर असर पड़ा।
जनवरी में एफऐंडओ का औसत दैनिक कारोबार 298 लाख करोड़ रुपये रहा जो इससे पिछले महीने से 6 प्रतिशत तक अधिक लेकिन सितंबर के 537 लाख करोड़ रुपये के ऊंचे स्तर से अभी भी 44 फीसदी नीचे है। इससे पता चलता है कि उद्योग को नियामकीय बदलावों पर अमल करने और बदलते बाजार परिवेश में वृद्धि बरकरार रखने के लिए जूझना पड़ रहा है।
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