Why Banking Stocks fall while Repo Rate Cut: केंद्रीय बैंक आरबीआई ने करीब पांच साल बाद रेपो रेट में कटौती की लेकिन इससे शेयर मार्केट में बहार नहीं आई। इसकी वजह ये है कि मार्केट को पहले ही इस कटौती के बारे में अनुमान था तो एक तरह से मार्केट में इसके चलते आने वाली तेजी पहले ही आ गई थी। हालांकि इस वित्त वर्ष 2025 में आरबीआई की आखिरी मौद्रिक नीति के ऐलान पर बैंकिंग शेयर धड़ाम हो गए क्योंकि इसमें लिक्विडिटी को और नरम करने को लेकर कोई बात नहीं हुई। आरबीआई ने रेपो रेट को 6.50 फीसदी से घटाकर 6.25 फीसदी कर दिया है।
Repo Rate के अलावा CRR में भी कटौती की थी उम्मीद
6 दिसंबर 2024 को पिछली एमपीसी मीटिंग में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर शक्तिकांत दास ने सीआरआर यानी कैश रिजर्व रेश्यो में 0.50 फीसदी की कटौती कर इसे 4 फीसदी कर दिया था। सीआरआर बैंक की कुल जमा राशि का हिस्सा होता है जो आरबीआई के पास एक आरक्षित राशि के रूप में रखा जाता है और अगर इसमें कटौती होती है तो इससे बैंक के पास अधिक नकद उपलब्ध हो जाता है और सिस्टम में लिक्विडिटी बढ़ जाती है। इसके अलावा आरबीआई ने जनवरी में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए सिस्टम में 1.5 लाख करोड़ रुपये डाले थे। ऐसे में निवेशक उम्मीद कर रहे थे कि रेपो रेट में कटौती के अलावा आरबीआई सिस्टम में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए और भी ऐलान कर सकता है। हालांकि आरबीआई के मौजूदा गवर्नर संजय मल्होत्रा की पहली एमपीसी मीटिंग के बाद स्पीच में ऐसा कोई ऐलान नहीं आया तो बैंकिंग स्टॉक्स धड़ाम से गिर गए।
एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?
एमके ग्लोबल की माधवी अरोड़ा का कहना है कि लिक्विडिटी से जुड़ा ऐलान नहीं होने के चलते मार्केट में निराशा है लेकिन ऐसे ऐलान एमपीसी मीटिंग के बाद ही किए जाएं, ये जरूरी नहीं तो जरूरत पड़ने पर इन्हें लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए इससे पहले जनवरी में आरबीआई ने लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) के तहत 60,000 करोड़ रुपये की खरीदारी की घोषणा की थी, जिसमें से 20,000 करोड़ रुपये पहले ही किए जा चुके हैं। केनरा रोबेको म्यूचुअल फंड के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) अन्विश जैन का मानना है कि ऐसा आगे भी किया जा सकता है जैसा कि गवर्नर ने कहा कि लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए आरबीआई जरूरत पड़ने पर कदम उठा सकता है। जनवरी में आरबीआई ने जो ऐलान किया था, अभी वह पूरी तरह से लागू भी नहीं हुआ है।
एक सीमा से अधिक लिक्विडिटी भी खतरनाक
आरबीआई लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए जरूरी कदम उठाता है लेकिन एक सीमा से अधिक लिक्विडिटी भी खतरनाक है। पिछले कुछ हफ्ते से लिक्विडिटी बढ़ाने की कोशिशों के तहत वेटेड इंटरबैंक कॉल रेट रेपो रेट से नीचे आ गई है। वेटेड इंटरबैंक कॉल रेट का मतलब वह ब्याज दर है जिस पर बैंक एक दूसरे को ओवरनाइट उधार देते हैं और रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को ओवरनाइट उधार देता है। लिक्विडिटी अधिक नहीं होने की एक वजह ये है कि इससे करेंसी और कमजोर हो सकती है।
हालांकि अभी की बात करें तो एमके ग्लोबल का अनुमान है कि अगर आरबीआई ने लिक्विडिटी बढ़ाने की और पहल नहीं की तो मार्च 2025 के आखिरी तक 2.5 लाख करोड़ रुपये का दबाव दिख सकता है यानी कि सिस्टम लिक्विडिटी को इतने सपोर्ट की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में मार्केट की नजर इस पर है कि ग्रोथ और इनफ्लेशन के बीच अस्थिर असंतुलन के दौरान आरबीआई क्या कदम उठाता है।
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