बैंकिंग कंपनियों ने दिसंबर 2024 तिमाही के दौरान अपने मैनेजमेंट की कॉन्फ्रेंस कॉल में मौजूदा चुनौतियों का जिक्र किया था। इन चुनौतियों में मौजूदा माइक्रोइकोनॉमिक हालात, लिक्विडिटी की दिक्कत और सुस्त क्रेडिट ग्रोथ शामिल हैं। इस बातों को ध्यान में रखा जाए, तो यह सेक्टर 2025 के बजट में ऐसे उपायों का इंतजार कर रहा है, जिससे क्रेडिट और लिक्विडिटी में बढ़ोतरी को सहारा मिले और ग्रोथ रफ्तार पकड़ सके।
क्रेडिट और डिपॉजिट ग्रोथ में सुस्ती की वजह से ज्यादातर बैंकिंग स्टॉक में गिरावट का दौर चल रहा है। इसके अलावा, अनसिक्योर्ड रिटेल सेगमेंट में लोन डूबने और फंडिंग की लागत बढ़ने का असर भी बैंकिंग शेयरों पर दिख रहा है। एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank), आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank), एक्सिस बैंक (Axis Bank), स्टेट बैंक (SBI), बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank of Baroda), पंजाब नेशनल बैंक (PNB), केनरा बैंक (Canara Bank), इंडियन बैंक (Indian Bank) और बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra) के शेयरों में अक्टूबर 2024 के बाद से 13 पर्सेंट तक की गिरावट रही है।
गिरावट के बावजूद इन शेयरों ने बाजार में उथल-पुथल के दौर में मजबूती दिखाई है। इसी अवधि में एशियन पेंट्स (Asian Paints), बजाज ऑटो (Bajaj Auto), आयशर मोटर्स (Eicher Motors), एसबीआई लाइफ (SBI Life), नेस्ले इंडिया (Nestle India ) जैसे लार्जकैप शेयरों में 20 से 30 पर्सेंट की गिरावट देखने को मिली है।
मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि बैंकिंग सेक्टर निवेश का अपेक्षाकृत सुरक्षित ठिकाना है, क्योंकि यहां स्थिर ग्रोथ के साथ वैल्यूएशन भी ज्यादा नहीं है।
हम आपको यहां बता रहे हैं कि 2025 के बजट से बैंकिंग सेक्टर को क्या उम्मीदें हैं:
कैपेक्स की अगुवाई वाली ग्रोथ
जानकारों को उम्मीद है कि सरकार आगामी बजट में कैपिटल एक्सपेंडिचर पर फोकस बनाए रखेगी। खास तौर पर रोड, रेलवे और शहरी विकास से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर विशेष ध्यान होगा। कैपेक्स पर फोकस से न सिर्फ इकोनॉमिक ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि बैंकों की लोन संबंधी मांग भी बढ़ेगी।
इनकम टैक्स को तर्कसंगत बनाना
कॉलियर्स इंडिया के सीनियर डायरेक्टर, विमल नादर का कहना है टैक्सपेयर्स द्वारा नई टैक्स रिजीम की तरफ बढ़ने के साथ ही टैक्स स्लैब को तर्कसंगत बनाना भी जरूरी हो जाएगा। नादर का मानना है कि 15-20 लाख रुपये के इनकम लेवल के लिए 25 पर्सेंट के अतिरिक्त टैक्स स्लैब से टैक्स मोर्चे पर बड़ी राहत मिल सकती है।
माइक्रो-फाइनेंस सेक्टर की चुनौतियों से निपटना
माइक्रो-फाइनेंस सेक्टर हाई डिफॉल्ट रेट, लिक्विडिटी की दिक्कत, ऑपरेशनल कॉस्ट में बढ़ोतरी जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है और इस मामले में सरकारी स्तर पर हस्तक्षेप की जरूरत है।