महीनों से हम सुन रहे हैं FIIs यानी विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारत से मोहभंग हो चुका है। भारतीय शेयर बाजार में वे लगातार बिकवाली कर रहे हैं। लेकिन यह पूरी कहानी नहीं है। असलियत ये है कि विदेशी निवेशक, लार्जकैप शेयरों को बेच रहे हैं और इसकी जगह अब छोटे शेयरों यानी स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों पर दांव लगा रहे हैं। यह कुछ ऐसा ही गेम है, जैसा अब तक रिटेल निवेशक खेलते आ रहे थे।
हालिया दिसंबर तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि FIIs ने इस दौरान Nifty 50 के सिर्फ 9 कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाई है और बाकी 41 कंपनियों में उन्होंने शेयर बेचे हैं। इसी तरह Nifty 100 में उन्होंने सिर्फ 26 कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई। लेकिन अब दिलचस्प बात यह है कि BSE MidCap के 44% और SmallCap में इससे भी अधिक 55% शेयरों में FIIs ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है।
BSE SmallCap इंडेक्स की जिन 937 कंपनियों ने अब तक अपने शेयरहोल्डिंह पैटर्न के आंकड़े जारी किए हैं, उनमें से FIIs ने 466 कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाई। वहीं, 425 कंपनियों में उन्होंने अपनी हिस्सेदारी घटाई। बाकी 46 कंपनियों में हिस्सेदारी स्थिर रही। ये बदलाव बताता है कि FIIs अब स्मॉलकैप शेयरों में कमाई के अधिक अवसर देख रहे हैं। जबकि अब तक सिर्फ रिटेल निवेशक ही स्मॉलकैप शेयरों में निवेश करने के मामले में सबसे आगे रहते थे।
अब सवाल उठता है कि FIIs ने ये रुख क्यों बदला? इसका जवाब है IPO मार्केट में आया बूम। DRChoksey FinServ के देवन चोकसी ने बताया कि असल में IPO में निवेश के चलते FIIs की स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों में हिस्सेदारी बढ़ी है।
आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर तिमाही में FIIs ने शेयर बाजार में कुल ₹1.56 लाख करोड़ के शेयर बेचे। लेकिन, प्राइमरी मार्केट यानी IPOs में उन्होंने ₹55,582 करोड़ का बड़ा निवेश किया। पिछले एक साल में IPOs ने निवेशकों को लिस्टिंग पर 50 से 80% तक का रिटर्न दिया है। कुछ मामलों में तो यह रिटर्न 100% से भी ज्यादा रहा। वहीं, बड़े शेयरों से आम तौर पर 10-15% का सालाना रिटर्न ही मिलता है। यही वजह है कि FIIs का फोकस IPOs पर बढ़ा है।
इसके अलावा FIIs का छोटे और मझोले शेयरों में निवेश के पीछे एक दूसरी वजह भी है। WealthMills Securities के क्रांति बाथिनी ने बताया कि भारतीय शेयर बाजार अब स्टॉक-स्पेसिफिक यानी शेयरों पर केंद्रित हो रहा है। FIIs अब अलग-अलग कंपनियों के वैल्यूएशन और स्ट्रैटजी को ध्यान में रखते हुए निवेश कर रहे हैं। इकोनॉमी और अर्निंग्स ग्रोथ में सुस्ती के बीच भारतीय शेयर बाजार की चाल अब तेजी से स्टॉक-स्पेसिफिक होती जा रही है। इसलिए FIIs भी अब अलग-अलग कंपनियों के वैल्यूएशन और स्ट्रैटजी को ध्यान में रखते हुए निवेश कर रहे हैं और इसीलिए उनका लार्जकैप और मिडकैप शेयरों में निवेश बढ़ रहा है।
कुल मिलाकर, एनालिस्ट्स का कहना है कि FIIs अभी भी भारत की धीमी आर्थिक वृद्धि, कमजोर तिमाही नतीजों और अमेरिकी बाजार की बेहतर परिस्थितियों की वजह से भारतीय बाजार से दूरी बनाए हैं। लेकिन इसके साथ ही वे ना-नाकुर करते हुए अच्छे क्वालिटी वाले मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में निवेश भी कर रहे हैं।
Axis Securities के राजेश पालविया का कहना है कि FIIs की बिकवाली एक या दो महीनों में थम सकती है, क्योंकि भारत अब भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इसका लॉन्ग टर्म ग्रोथ आउटलुक काफी मजबूत है। आने वाले समय में यूनियन बजट, RBI की ब्याज दरों को लेकर घोषणाएं और अच्छे तिमाही नतीजे, FIIs की इस बिकवाली के ट्रेंड को पलट सकते हैं। घरेलू निवेशक भारत की अर्थव्यवस्था की संभावनाओं को बेहतर समझ रहे हैं और वे FIIs के उलट लगातार शेयर बाजार में खरीदारी कर रहे हैं।
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