भारतीय इक्विटी बाजारों को वर्ष 2013 जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है। 2013 के दौरान अमेरिका में बढ़ती बॉन्ड यील्ड, आय में कमजोरी और भारत में ऊंची मुद्रास्फीति से उस वर्ष की पहली छमाही में शेयर कीमतों में गिरावट को बढ़ावा मिला था। शेयर कीमतों में गिरावट विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की बिकवाली की वजह से आई थी। इसमें 2013 में प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले रुपये में गिरावट का भी योगदान था। पिछले तीन महीनों में भी ऐसा ही देखा गया है।
सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज में शोध और इक्विटी रणनीति के सह-प्रमुख धनंजय सिन्हा का कहना है, ‘भारतीय बाजारों के लिए मौजूदा वृहद आर्थिक हालात काफी हद तक उसी तरह के हैं जैसे हमने 2013 की मंदी के दौरान देखे थे। 2011 की तरह इस बार भी अमेरिकी बॉन्ड पर यील्ड बढ़ रहा है, डॉलर मजबूत हो रहा है, भारतीय रुपया कमजोर हो रहा है, एफपीआई शुद्ध बिकवाल हैं और भारत में आय वृद्धि धीमी हो गई है।’
बीएसई का सेंसेक्स जनवरी और अगस्त 2013 के बीच 6.5 फीसदी तक गिरा था। इससे पहले दिसंबर 2011 और जनवरी 2013 के बीच इसमें 29 फीसदी की तेजी आई थी। यह सूचकांक अगस्त 2013 के अंत में 18,619.7 पर था जबकि उस साल जनवरी के आखिर में 19,895 और दिसंबर 2011 के आखिर में 15,455 पर। तुलना करें तो सेंसेक्स सितंबर 2024 के अंत से अब तक 8.6 फीसदी कमजोर हो चुका है। इससे इक्विटी निवेशकों को दो वर्षों से मिल रही दो अंक की बढ़त खत्म हो गई है।
सेंसेक्स में यह तेजी और उसके बाद की गिरावट भारतीय इक्विटी बाजारों में एफपीआई निवेश आवक की गति को दर्शाती है। मार्च 2013 में एफपीआई निवेश धीमा होना शुरू हुआ और जून 2013 में वे शुद्ध बिकवाल बन गए। जून और अगस्त 2013 के बीच एफपीआई ने भारतीय इक्विटी बाजारों से कुल 3.7 अरब डॉलर निकाले जबकि जनवरी और मई 2013 के बीच 15 अरब डॉलर का शुद्ध निवेश किया था।
2013 में अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में तेजी आने से एफपीआई की बिकवाली को बढ़ावा मिला था। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने क्वांटीटेटिव ईजिंग (क्यूई) यानी प्रोत्साहन संबंधित उपाय घटाने का निर्णय लिया था जिसके बाद बॉन्ड यील्ड में इजाफा हुआ था। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद ब्याज दरों को कम करने और मौद्रिक प्रोत्साहन देने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने राहत उपायों की शुरुआत की थी। 10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड पर यील्ड अप्रैल 2013 के 1.67 फीसदी के पांच महीने के निचले स्तर से बढ़कर अगस्त 2013 में 2.78 फीसदी पर पहुंच गया और दिसंबर 2013 में यह 3 फीसदी की ऊंचाई पर चला गया।
वर्ष 2023 के पहले आठ महीनों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया करीब 20 फीसदी गिर गया और अगस्त 2013 के आखिर में 65.7 पर था जबकि दिसंबर 2012 के आखिर में यह डॉलर के मुकाबले 55 पर था। 2013 की तरह ही भारतीय शेयर बाजारों में ताजा गिरावट अमेरिकी बॉन्ड पर बढ़ते यील्ड और एफपीआई की बिकवाली से हुई है। पिछले चार महीने में अमेरिकी बॉन्ड यील्ड करीब 85 आधार अंक तक बढ़ा है। सितंबर 2024 के अंत 3.78 फीसदी से बढ़कर यह शुक्रवार को 4.63 फीसदी हो गया।