कंपनियों की आय को लेकर चिंता, अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती पर अनिश्चितता और अमेरिकी डॉलर और बॉन्ड यील्ड में मजबूती के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) साल 2025 में बिकवाली जारी रखे हुए हैं। एक्सचेंजों के आंकड़ों के अनुसार 14 जनवरी तक एफपीआई 30,307 करोड़ रुपये के शेयरों के शुद्ध बिकवाल रहे हैं। बुधवार को एफपीआई ने 4,534 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की। इस बिकवाली ने बेंचमार्क निफ्टी और सेंसेक्स को इस साल अब तक 1.8 फीसदी नीचे गिराया है।
एफपीआई की बिकवाली की मौजूदा लहर अक्टूबर में शुरू हुई जब चीन के प्रोत्साहन के कदमों ने उसके बाजारों को उछाला जो भारत के मुकाबले काफी सस्ते भावों पर कारोबार कर रहे थे। परिणामस्वरूप कुछ विदेशी निवेशकों ने अपना फंड भारत से निकालकर चीन में निवेश किया। राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की जीत के बाद विस्तारित राजकोषीय नीति की उम्मीद बढ़ी और अमेरिकी ऋण प्रतिभूतियों की मांग भी जिससे अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी हुई और डॉलर में मजबूती आई।
अक्टूबर 2024 के आखिर से 10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 47 आधार अंक चढ़ा है और अभी 4.76 फीसदी पर कारोबार कर रहा है। इस दौरान डॉलर इंडेक्स 5 फीसदी उछला और अभी यह 109.13 पर कारोबार कर रहा है। सितंबर तिमाही में भारतीय कंपनियों की कम उत्साहजनक आय और दिसंबर तिमाही में भी ऐसा ही रहने की आशंका ने एफपीआई की बिकवाली को तेज कर दिया।
मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ मुखर्जी ने कहा कि अगर आप वित्तीय संकट और कोविड को छोड़ दें तो हम कंपनियों की आय में सबसे बड़ी गिरावट देख रहे हैं। यह तब हो रहा है जब बाजार ऊंचे मूल्यांकन पर कारोबार कर रहा है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से हम विदेशी निवेशकों की प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी ही। डॉलर के मुकाबले रुपया इस अवधि में 2.6 फीसदी टूटा है और अभी 86.36 पर ट्रेड कर रहा है। विश्लेषकों ने कहा कि अगर रुपये में और गिरावट आती है तो हम एफपीआई को अनुमान से ज्यादा तेजी से अपने पोजीशन की बिकवाली करता देख सकते हैं।
स्वतंत्र इक्विटी विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा कि एफपीआई अपने पोजीशन की बिकवाली पहले कर सकते हैं जिससे कि रुपये में गिरावट से उन्हें ज्यादा नुकसान न हो। रूस के ऊर्जा उद्योग के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों की नई घोषणा के बाद तेल की कीमतों में हालिया वृद्धि ने निवेशकों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। ब्रेंट क्रूड अब 81.8 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है और यह तीन महीने के बाद इस साल 80 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।
एफपीआई की निकासी धीमी होने की संभावना नहीं है क्योंकि इस बिकवाली को हवा देने वाले कारक मौजूद हैं। मुखर्जी ने कहा कि डॉलर अब दुनिया की हर मुद्रा के मुकाबले मजबूत हो रहा है। रुपये का अवमूल्यन इसमें तीसरा कारक बन जाता है। कमाई में मंदी अभी भी जारी है और भारतीय बाजार अभी भी काफी महंगे हैं। डॉलर में अभी और तेजी की गुंजाइश बची हुई है।
बाजार में दूसरे दिन भी तेजी शेयर बाजार में तेजी का सिलसिला बुधवार को भी जारी रहा और बीएसई सेंसेक्स 224 अंक की बढ़त के साथ बंद हुआ। वैश्विक बाजारों में कमजोरी के रुख के बीच रिलायंस, जोमैटो और कोटक बैंक में लिवाली से बाजार बढ़त में रहा।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में तेजी और विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली से बाजार धारणा पर असर पड़ा। सेंसेक्स 224.45 अंक की बढ़त के साथ 76,724.08 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान, एक समय यह 491.42 अंक तक चढ़ गया था। बीएसई में सूचीबद्ध कुल शेयरों में से 2,150 शेयर लाभ में रहे, जबकि 1,806 में गिरावट रही। निफ्टी भी 37.15 अंक की बढ़त के साथ 23,213.20 अंक पर बंद हुआ।