सरकार ने दो चरणों में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। पहले चरण में 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। दूसरे चरण में 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इसका मकसद आबादी के बड़े हिस्से को बैंकिंग सेवाओं के दायरे में लाना था। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को बैंकिंग सेवाएं देने में प्राइवेट बैंकों की दिलचस्पी नहीं के बराबर थी। इस वजह से सरकार को बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला लेना पड़ा।
बदलते समय के मुताबिक, सरकार समझ चुकी है कि सरकारी बैंकों को सरकार की छाया से बाहर निकालना जरूरी है। तभी सरकारी बैंक प्राइवेट बैंकों का मुकाबला कर सकेंगे। इस सोच के साथ पिछले कई सालों से सरकार पीएसयू बैंकों में अपनी हिस्सेदारी घटाने की कोशिश कर रही है। लेकिन, यह प्रक्रिया सुस्त रही है। सवाल है कि क्या 1 फरवरी को वित्तमंत्री पीएसयू बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कम करने के लिए किसी बड़े प्रोग्राम का ऐलान करेंगी?
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यूनियन बजट 2021 में दो सरकारी बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी के प्राइवेटाइजेशन का ऐलान किया था। लेकिन, तब से इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। अभी 12 सरकारी बैंकों (PSU Banks) में सरकार की 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। कई बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है।
चार PSU बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है। UCO Bank, Punjab and Sind Bank, Indian Overseas Bank और Central Bank of India में सरकार की हिस्सेदारी 93 से 98 फीसदी के बीच है। बैंकिंग इंडस्ट्री की नजरें 1 फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण पर लगी हैं।
बैंकिंग इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार को पीएसयू बैंकों के प्राइवेटाइजेशन में देर नहीं करनी चाहिए। सरकार ने IDBI Bank के प्राइवेटाइजेशन की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन, यह अब तक पूरी नहीं हुई है। अगर सरकार अभी पीएसयू बैंकों के प्राइवेटाइजेशन के लिए ठोस प्लान का ऐलान नहीं करती है तो प्राइवेट बैंकों से मुकाबले के लिहाज से सरकारी बैंक काफी पीछ रह जाएंगे।
सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन के लिए जो चीज सबसे जरूरी है, वह है राजनीतिक इच्छा शक्ति। अब तक सरकार ने इस दिशा में सिर्फ दो बड़ी कोशिश की है। 2019-20 में 10 सरकारी बैंकों का विलय किया गया, जिससे यह संख्या 10 से घटकर 4 रह गई। सरकार ने 2019 में ही LIC को IDBI Bank में हिस्सेदारी खरीदने को कहा। सरकार बैंकों के साथ कई समस्याएं हैं। इन बैंकों में राजनीतिक रूप से ताकतवर ट्रेड यूनियनों का दबदबा है। इन बैंकों के कामकाज का माहौल आज भी सरकारी है। यह प्राइवेट बैंकों में कामकाज के माहौल से काफी अलग है।