इंडियाबुल्स रियल एस्टेट (IBREL) और एम्बेसी ग्रुप (Embassy Group) के विलय को मंजूरी मिल गई है। इस फैसले के साथ नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने दोनों फर्मों को बड़ी राहत दी। इससे पहले, NCLT चंडीगढ़ ने इस मर्जर को रोक दिया था, लेकिन NCLAT ने NCLT के आदेश को पलटते हुए विलय के पक्ष में फैसला सुनाया है। बता दें कि IBREL और एम्बेसी ग्रुप के बीच यह विलय प्रक्रिया लंबे समय से लंबित थी।
NCLAT ने अपने आदेश में क्या कहा?
पीटीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि NCLAT की दो सदस्यीय पीठ ने मई 2023 के NCLT के आदेश को खारिज कर दिया। NCLT ने अपने फैसले में कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI), स्टॉक एक्सचेंजों, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (RoC) से सभी रेगुलेटरी अप्रुवल और शेयरहोल्डर्स और क्रेडिटर्स की मंजूरी मिलने के बावजूद विलय को रोक दिया गया था। पीठ ने कहा, “हम NCLT, चंडीगढ़ के विवादित आदेश को खारिज करते हैं और अपीलकर्ताओं- इंडियाबुल्स रियल एस्टेट, एम्बेसी वन और NAM एस्टेट्स के बीच विलय की योजना को मंजूरी देते हैं।”
आयकर विभाग द्वारा उठाई गई आपत्तियों के कारण इस विलय में 18 महीने से अधिक की देरी हुई थी। IT डिपार्टमेंट ने स्कीम के तहत वैल्यूएशन और शेयर स्वैप रेश्यो पर सवाल उठाए थे। हालांकि, NCLAT ने फैसला सुनाया कि NCLT ने व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि डिस्काउंटेड कैश फ्लो के जरिए एक्सपर्ट्स द्वारा किए गए वैल्यूएशन में हस्तक्षेप करके गलती की।
NCLAT ने कहा कि ऐसे मामलों में शेयरहोल्डर्स, क्रेडिटर्स, और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की कमर्शियल समझ (commercial wisdom) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। NCLAT ने पाया कि प्रक्रिया के दौरान आयकर विभाग ने अंतिम निर्णय लेने का अधिकार ट्रिब्यूनल के विवेक पर छोड़ दिया था। इंडियाबुल्स रियल एस्टेट, जिसे अब इक्विनॉक्स इंडिया डेवलपमेंट्स के नाम से जाना जाता है, ने NCLAT को भरोसा दिया कि विलय से होने वाली सभी कर देनदारियों का वहन कंपनी द्वारा किया जाएगा।
क्या है इस मर्जर का उद्देश्य
इस मर्जर का उद्देश्य उत्तर भारत में IBREL के कामकाज को NAM एस्टेट्स और दक्षिण भारत में एम्बेसी वन कमर्शियल प्रॉपर्टी डेवलपमेंट्स (EOCPDPL) की मौजूदगी के साथ मिलाकर एक अखिल भारतीय रियल एस्टेट कंपनी बनाना है। इस स्कीम को भारी समर्थन मिला, लगभग 100 फीसदी शेयरधारकों और क्रेडिटर्स ने इसे मंजूरी दी। CCI, SEBI, BSE, NSE और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय सहित नियामक निकायों ने कोई आपत्ति नहीं जताई। सांविधिक लेखा परीक्षकों ने भारतीय लेखा मानकों के अनुपालन की पुष्टि की।