निप्पॉन लाइफ इंडिया म्यूचुअल फंड के यस बैंक के AT-1 बॉन्ड में निवेश करने के फैसले से फंड हाउस की कुछ स्कीम्स में पैसा लगाने वाले निवेशकों को लगभग 1,830 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। AT-1 बॉन्ड को बाद में पूरी तरह से राइट डाउन कर दिया गया था। यह जानकारी मनीकंट्रोल को कैपिटल मार्केट रेगुलेटर सेबी द्वारा अगस्त 2024 में जारी किए गए नोटिस की डिटेल्स से पता चली हैं। निप्पॉन लाइफ इंडिया को पहले रिलायंस म्यूचुअल फंड के नाम से जाना जाता था।
AT-1 बॉन्ड बैंकों द्वारा अपने कैपिटल बेस को मजबूत करने के लिए जारी किए जाने वाले डेट इंस्ट्रूमेंट का एक प्रकार है। सेबी द्वारा अगस्त में जारी किए गए कारण बताओ नोटिस में आरोप लगाया गया कि निवेशकों को भले ही AT-1 बॉन्ड में निवेश पर नुकसान हुआ, लेकिन फंड हाउस ने लेनदेन से मैनेजमेंट फीस के रूप में 88.60 करोड़ रुपये कमाए। ट्रांजेक्शन कथित तौर पर यस बैंक के साथ ‘quid pro quo’ अरेंजमेंट के हिस्से के रूप में किए गए।
निप्पॉन लाइफ इंडिया MF ने स्टॉक एक्सचेंज स्टेटमेंट में कारण बताओ नोटिस मिलने की पुष्टि की थी, लेकिन प्रमुख आरोपों और जांच की डिटेल्स को सार्वजनिक नहीं किया गया था। 8 अगस्त के अपने आदेश में, सेबी ने कहा था कि इस एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) ने अपनी कुछ स्कीम्स पर अतिरिक्त खर्च किया और ट्रस्टी ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि AMC नियमों का पालन करे। सेबी ने फंड हाउस से स्पष्टीकरण मांगा है कि उसे हासिल हुई मैनेजमेंट फीस वापस करने के लिए क्यों न कहा जाना चाहिए और उचित अवधि के लिए प्रतिबंध का सामना क्यों नहीं करना चाहिए।
AT-1 बॉन्ड में कुल मिलाकर 2850 करोड़ रुपये का निवेश
सेबी की जांच के दायरे में आने वाले लेन-देन उस समय हुए जब रिलायंस कैपिटल, एसेट मैनेजमेंट कंपनी की पेरेंट कंपनी थी। जांच के दायरे में कुछ अन्य कंपनियां रिलायंस होम फाइनेंस और रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस हैं। जांच के आधार पर सेबी द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस में आरोप लगाया गया कि तत्कालीन रिलायंस म्यूचुअल फंड और रिलायंस कैपिटल ने यस बैंक द्वारा जारी AT-1 बॉन्ड में कुल मिलाकर 2,850 करोड़ रुपये का निवेश किया। इन निवेशों का एक हिस्सा मॉर्गन क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा जारी एनसीडी में था। सितंबर 2019 में फंड हाउस का नाम रिलायंस म्यूचुअल फंड से बदलकर निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड कर दिया गया।
मामले की जड़ें दिसंबर 2016 और मार्च 2020 के बीच की अवधि में हैं, जब यस बैंक और रिलायंस कैपिटल के मालिकाना हक वाली कंपनियों के बीच कुछ लेन-देन ने सेबी का ध्यान खींचा था। जांच का उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या कोई ‘quid pro quo’ अरेंजमेंट था। सेबी के अनुसार, यह एक तरह की लेन-देन व्यवस्था थी क्योंकि यस बैंक ने जनवरी 2017 में रिलायंस होम फाइनेंस को 500 करोड़ रुपये की फैसिलिटी प्रदान की थी। यह आंशिक रूप से कैश क्रेडिट/वर्किंग कैपिटल डिमांड लोन के रूप में और बाकी रिलायंस होम फाइनेंस द्वारा जारी एनसीडी में निवेश के माध्यम से थी।
बाद में अक्टूबर 2017 में यस बैंक ने रिलायंस कैपिटल, रिलायंस होम फाइनेंस और रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस द्वारा जारी एनसीडी में निवेश के रूप में 2,900 करोड़ रुपये की एक और फैसिलिटी प्रदान की।
CBI की भी चल रही है जांच
सेबी का कारण बताओ नोटिस एक बड़ी मल्टी-एजेंसी जांच का हिस्सा है, जिसमें CBI भी शामिल है। CBI यस बैंक द्वारा जारी AT-1 बॉन्ड में रिलायंस कैपिटल के मालिकाना हक वाली फर्म्स द्वारा किए गए लगभग 2,850 करोड़ रुपये के क्यूमुलेटिव निवेश की पड़ताल कर रही है। दिसंबर 2024 में मनीकंट्रोल ने बताया था कि निप्पॉन लाइफ इंडिया एमएफ राणा कपूर परिवार के मालिकाना हक वाली कंपनी मॉर्गन क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड के नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर्स (NCDs) में 950 करोड़ रुपये का निवेश करने के लिए CBI जांच के दायरे में है।