Manmohan Singh Death: आर्थिक सुधारों के प्रणेता पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का गुरुवार (26 दिसंबर) रात निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। सिंह ने भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 2004 से 2014 तक 10 वर्षों तक देश का नेतृत्व किया। उनके परिवार में पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं। उनके अस्पताल में भर्ती होने की खबर मिलते ही कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाद्रा और सोनिया गांधी अस्पताल पहुंचीं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे सिंह को दुनिया भर में उनकी आर्थिक विद्वता तथा कार्यों के लिए सम्मान दिया जाता था।
मनमोहन सिंह को मई 2004 में देश की सेवा करने का एक और मौका मिला और इस बार वह देश के प्रधानमंत्री बने। अगले 10 वर्षों तक उन्होंने देश की आर्थिक नीतियों और सुधारों को मार्गदर्शन देने का काम किया। उनके कार्यकाल में ही 2007 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर नौ प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंची और दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया।
वह 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) लेकर आए और बिक्री कर की जगह मूल्य वर्धित कर (वैट) लागू हुआ। इसके अलावा डॉ सिंह ने देश भर में 76,000 करोड़ रुपये की कृषि कर्ज माफी और ऋण राहत योजना लागू कर करोड़ों किसानों को लाभ पहुंचाने का काम किया।
उन्होंने 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी के समय भी देश का नेतृत्व किया और मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए एक विशाल प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की। उनके कार्यकाल में ही भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के माध्यम से ‘आधार’ की शुरुआत हुई।
इसके अलावा उन्होंने वित्तीय समावेशन को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया और प्रधानमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान देश भर में बैंक शाखाएं खोली गईं। भोजन का अधिकार और बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे अन्य सुधार भी उनके कार्यकाल में हुए।
RTI, RTE और NREGA की पहल
अगर मनमोहन सिंह को आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने वाले वित्त मंत्री के रूप में याद किया जाता है, तो वे ऐसे प्रधानमंत्री भी थे, जिनके कार्यकाल में यूपीए सरकार ने सामाजिक क्षेत्र में कई ऐतिहासिक पहल कीं। इनमें सूचना के अधिकार (RTI) से लेकर शिक्षा के अधिकार (RTE) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGA) तक शामिल है। पहलों की अवधारणा सरकार के भीतर से नहीं आई, बल्कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से आई, जिसकी अध्यक्षता सोनिया गांधी करती हैं। इसमें नागरिक समाज के कार्यकर्ता सदस्य हैं। आश्चर्य की बात नहीं है कि इन योजनाओं का श्रेय भी गांधी और उनकी टीम को मिला। लेकिन मनमोहन सिंह के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
प्रमुख योजनाओं को कानून का समर्थन प्राप्त था, जिसमें आरटीआई और नरेगा 2005 में लागू होने वाली पहली योजनाएं थीं। सिंह के पहले कार्यकाल में शिक्षा में ओबीसी कोटा की शुरुआत भी हुई। यह कदम तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह द्वारा उठाया गया था, जिसका उनके कई कैबिनेट सहयोगियों ने विरोध किया, लेकिन बाद में वे मान गए। कोटा की घोषणा के बाद सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में सीटों की संख्या में विस्तार की घोषणा की। यूपीए के पहले कार्यकाल के अंत में केंद्र ने एक मेगा कृषि कर्ज पैकेज की भी घोषणा की, जिसे 2009 में गठबंधन की सत्ता में वापसी में एक महत्वपूर्ण कारक माना गया।
2009 में जब मनमोहन सरकार सत्ता में वापस आई, तो इसने आरटीई को लागू किया और इसके बाद भूमि अधिग्रहण अधिनियम, और भोजन का अधिकार या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया। जबकि भूमि कानून को उद्योगों के लिए एक बड़ी बाधा माना जाता है, जिसे एनडीए ने अपने पहले कार्यकाल में उलटने की कोशिश की थी। लेकिन उसे योजनाओं को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। एनएफएसए को कभी भी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया।
परमाणु समझौता
वर्ष 2008 में अमेरिका के साथ भारत का ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता विदेश नीति के क्षेत्र में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल का गौरवशाली क्षण बना रहेगा। इस ऐतिहासिक समझौते ने न केवल देश के साथ परमाणु भेदभाव को समाप्त किया। बल्कि वैश्विक पटल पर एक अनुकूल भू-राजनीतिक संरचना का भी निर्माण किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस ऐतिहासिक समझौते के भविष्य के परिणामों के बारे में इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने इसे मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प दिखाया। हालांकि इस परमाणु समझौते को लेकर संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनकी सरकार का अस्तित्व दांव पर लगा हुआ था।
असैन्य परमाणु समझौते ने अमेरिका के साथ भारत के समग्र संबंधों को बदल दिया। जुलाई 2005 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ मनमोहन सिंह की वार्ता के बाद भारत और अमेरिका ने घोषणा की कि वे असैन्य परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग करेंगे।
अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को 19 जुलाई को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग की आवश्यकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने परमाणु अप्रसार में भारत के बेदाग रिकॉर्ड के बारे में भी बताया था।